मणिपुर में लगा राष्ट्रपति शासन, हाल ही में सीएम बीरेन सिंह ने दिया था इस्तीफा

राष्ट्रपति शासन के लिए राज्यपाल की तरफ से केंद्र सरकार को रिपोर्ट भेजा जाता है. पहले 6 महीने के लिए इसे लागू किया जाता है. जरूरत होने पर इसे एक साल तक के लिए बढ़ाया जा सकता है.

विज्ञापन
Read Time: 3 mins

मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लगाने का फैसला केंद्र सरकार ने लिया है. गौरतलब है कि हाल ही में मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने पद से इस्तीफा दे दिया था. बताते चलें कि मणिपुर में पिछले 2 साल से जातिगत हिंसा में सैकड़ों लोगों की मौत के कारण लंबे समय से मुख्यमंत्री के इस्तीफे की मांग की जा रही थी. एन बीरेन सिंह के इस्तीफे के बाद इस बात की चर्चा थी कि बीजेपी की तरफ से किसी अन्य विधायक को सीएम का पद दिया जा सकता है. बीजेपी प्रभारी संबित पात्रा ने राज्यपाल से मुलाकात भी की थी. हालांकि बाद में राज्यपाल के प्रस्ताव पर राष्ट्रपति शासन लगाने का फैसला लिया गया है. 

राष्ट्रपति शासन की क्या है प्रक्रिया? 
राष्ट्रपति शासन के लिए राज्यपाल की तरफ से केंद्र सरकार को रिपोर्ट भेजा जाता है. राज्यपाल की रिपोर्ट के आधार पर केंद्रीय मंत्रिमंडल की तरफ से सिफारिश की जाती है. राष्ट्रपति, केंद्रीय मंत्रिमंडल की सलाह पर राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने का निर्णय लेते हैं. राष्ट्रपति शासन 6 महीने के लिए लागू होता है. इसे संसद की दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) से मंजूरी लेनी पड़ती है. संसद की मंजूरी मिलने के बाद इसे एक साल तक बढ़ाया जा सकता है. 

राष्ट्रपति शासन से क्या-क्या बदलाव होते हैं? 
राष्ट्रपति शासन के लागू होने के साथ ही सभी प्रशासनिक और विधायी कार्य केंद्र सरकार के नियंत्रण में आ जाते हैं. यदि विधानसभा निलंबित होती है, तो वह केवल नाममात्र रूप से बनी रहती है, लेकिन यदि भंग हो जाती है, तो नए चुनाव कराए जाते हैं. साधारणत: हालत में सुधार के बाद चुनाव की तारीख की घोषणा की जाती है. 

Advertisement

क्या है मणिपुर में हिंसा की वजह 
मणिपुर में हिंसा के पीछे 2 वजहें रही है. पहली वजह है यहां के मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा राज्य सरकार की तरफ से दी गयी थी.मणिपुर में मैतेई समुदाय बहुसंख्यक वर्ग में आता है, लेकिन इन्हें अनुसचित जनजाति का दर्जा दे दिया गया था. बाद में हाईकोर्ट ने इस फैसले पर रोक लगा दी थी. मैतेई को एसटी के दर्जे मिलने के फैसले का कुकी और नागा समुदाय के लोगों की तरफ से विरोध किया गया था.कुकी और नागा समुदायों के पास आजादी के बाद से ही आदिवासी का दर्जा है.

Advertisement

हिंसा की दूसरी वजह है, सरकारी भूमि सर्वेक्षण. राज्य सरकार की तरफ से आरक्षित वन क्षेत्र खाली करवाने की बात कही गयी थी. आदिवासी ग्रामीणों से आरक्षित वन क्षेत्र खाली करवाने के फैसले का भी जमकर विरोध देखने को मिला इस कारण भी हिंसा की घटनाएं हुई. 

Advertisement

ये भी पढ़ें-: 

क्या डोनाल्ड ट्रंप के इस 'मिशन' में मदद कर सकते हैं पीएम नरेंद्र मोदी, रूस-यूक्रेन युद्ध कब खत्म होगा

Featured Video Of The Day
Germany News: Munich में भीड़ पर किसने और क्यों चढ़ा दी गाड़ी? | NDTV Duniya
Topics mentioned in this article