चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) ने बिहार (Bihar) में दो अक्टूबर से तीन हजार किलोमीटर की पदयात्रा पर निकलने का ऐलान किया है. उन्होंने कोई नया राजनीतिक दल गठित करने को लेकर हां या ना में जवाब नहीं दिया, लेकिन NDTV से बातचीत में उन्होंने लालू-नीतीश राज से लेकर बिहार की स्थिति को लेकर तमाम मुद्दों पर खुलकर अपनी बात रखी. प्रशांत किशोर ने कहा, सीएम नीतीश कुमार(Nitish Kumar) में परिवर्तन आया है, राजनीतिक शक्ति कम होने के साथ ऐसा साफ दिख रहा है. उन्होंने कहा, पदयात्रा से बात बनाने की नहीं है, चुनाव लड़ना होता तो मैं 6 महीने पहले बिहार आकर चुनाव लड़ सकता था. बिहार में 15 साल लालू जी और 15 साल नीतीश जी के राज में काम हुआ है. लेकिन दूसरा पहलू है कि नीतीश और लालू जी के 30 साल के राज के बाद बिहार देश का सबसे पिछड़ा राज्य है. विकास के सारे मानदंडो में हम देश के सभी राज्यों में से सबसे नीचे है. ये बताता है कि अभी तक जो भी हुआ है, उससे हम बिहार के और राज्यों की श्रेणी में खड़ा नहीं कर सकते. हमें रास्ता बदलना होगा. अब बहस ये है कि वो नया सोच और प्रयास किसका हो. ये शक्ति किसी दल के पास नहीं है, ये सिर्फ बिहार के लोगों के पास है.
'आप पर कितना विश्वास किया जा सकता है?' NDTV के सवाल पर प्रशांत किशोर ने दिया यह जवाब
चुनावी रणनीतिकार ने कहा, ऐसे लोगों को अगर साथ में लाया जाए और ये साथ में अगर आते हैं और नई व्यवस्था बनाते हैं, तो एक पार्टी बनाई जाएगी. वो मेरी पार्टी नहीं होगी, वो लोग मिलकर बनाएगे, उसमें मैं एक मेंबर हो सकता हूं. अभी जितने लोग मेरे संपर्क में हैं, मैं उनके घर जाऊंगा और उनसे खुद बात करूंगा. मिलकर उनको जनस्वराज की अवधारणा से जोडूंगा. फिर साथ मिलकर आगे का रास्ता तय करेंगे. ये काम हम सितंबर तक पूरा कर लेंगे. हमें नहीं पता कि हम पार्टी ही बनाएं. इसके लिए सामूहिक प्रयास होना ज़रूरी है. लालू जी और नीतीश जी ने भी प्रयास किया होगा.लेकिन अगर कोई परिवर्तन नहीं है तो रास्ता बदलना होगा. वो लोगों के हाथ में हैं, लोग जो तय करेंगे मैं अपनी ताकत उसके साथ लगाना चाहता हूं. जहां तक पदयात्रा है, वो इसका दूसरा पहलू है, इसलिए उसको 2 अक्टूबर रखा है.
बिहार में 2 अक्टूबर से 3,000 किलोमीटर की पदयात्रा करूंगा : प्रशांत किशोर
बिहार की जनता को जनस्वराज के बारे में समझ आना चाहिए. अगर जनता स्कूल चाहती है और फ्लाईओवर बना रहे हैं, तो वो जनता के लिए गुड गवर्नेंस नहीं है. गुड गवर्नेंस जनता के हिसाब से ही हो. लोगों का जोड़ने के लिए गांव- गांव घर घर जाना होगा. मेरा प्रयास है कि पद यात्रा में 3000 किलोमीटर में बिहार के सारे शहर गांव में जाकर लोगों से बात करूं.मैं बिहार को बदलते हुए देखना चाहता हूं. मैं 10 साल से जो काम कर रहा था, उसमें मुझे सफलता मिली है. बंगाल की जीत के समय मैंने घोषणा कर दी थी कि मैं इस काम को छोड़ रहा हूं. आगे क्या करना है, वो सबको सुन के निर्णय लूंगा.
ऐसा काफी सोचने के बाद निर्णय लिया कि अब बिहार की बेहतरी के लिए काम करना है. मुझे पता है कि ये कठिन है, लेकिन किसी को तो प्रयास करना होगा.
बिहार के लोगों को ही करना होगा. निष्पक्ष भाव से बता रहा हूं. भागीदारी किसी नेता की नहीं होगी. इसमें भागीदारी बिहार के लोगों की होगी. अगर पार्टी बनी तो मैं नहीं बनाऊंगा, उसमें भी शामिल हूंगा. ये कांग्रेस का बड़प्पन है कि मेरे जैसे साधारण व्यक्ति को उन्होने बुलाया मेरी बात सुनी. मुझे जो लगा कि कांग्रेस की क्या स्थिति है, इस पर मैंने उनके सामने विचार करके. अब उनका अधिकार है कि उस पर अमल करें ये न करें. कांग्रेस को किसी प्रशांत किशोर की ज़रूरत नहीं है. अगर कांग्रस में आगे जाने की चाह है, तो उस पार्टी में बहुत नेता हैं जो मुझसे बेहतर समझ वाले हैं. अनुभव बेहतर हैं और मुझसे बड़ी काबिलियत है. उनके ऑफर का मैं शुक्रगुज़ार हूं. मुझे लगा कि जो वो चाह रहे हैं उसमें मैं बहुत नहीं दे पाउंगा.
ऐसा नहीं है कि मैं चाहता था कि मुझे सारी जिम्मेदारी मिले. मैं तो हमेशा से ही ग्रुप के कामों में विश्वास रखता हूं. मुझे लगा कि अगर संवैधानिक नैतिकता नहीं है, तो आने वाले समय में विरोधाभास होगा, क्योकि कांग्रेस इतनी बड़ी पार्टी है
तो अगर आप भविष्य में कोई अलग ग्रुप बना देते हैं तो स्वाभाविक है कि आगे खींचतान होगी. मुझे लगा शायद यहां गया तो उनका नुकसान हो जाएगा.
राहुल गांधी बहुत बडे़ आदमी है, मेरा उनसे कोई ट्रस्ट डेफिट (भरोसा खोने की बात) नहीं हुई है. उन्होंने बलाया तो मैंने मिल कर बात की. वो कहेंगे आपसे बात नहीं कर सकते तो नहीं होगी. मेरी और राहुल गांधी की बराबरी नहीं हो सकती तो बहुत बड़े आदमी हैं.
नीतीश कुमार यहां के सीएम हैं, वो बुलाएंगे तो जाना होगा. उन्होंने बुलाया, उस दिन किसी काम में फंस गया था, इसलिए जा नही पाया. पहले भी उनसे दिल्ली में मिला हूं. वो जब भी बुलाएंगे, मैं जाउंगा. मेरा उनसे सारे ऱिश्ते अच्छे हैं. व्यक्तिगत संबंध अच्छे हैं. नीतीश कुमार ने 2017 में यूटर्न लिया. आज के नीतीश 2017 के नीतीश से अलग हैं. 2015 के नीतीश वो यहां से शक्तिशाली राजनेता थे. उनका पार्टी के पास बहुमत था.
लेकिन आज उनके पास पर्याप्त एमएलए भी नहीं रहे तो स्वाभाविक है कि अंतर आया है. जो दिख रहा है, वो ये है कि नीतीश जितने लोकप्रिय थे, वो आज नहीं हैं. शायद आगे वो अपनी जगह पहले जैसी बना लें. मैंने कोई पार्टी नहीं बनाई है. मेरी एक सोच है, जिसे लेकर मैं जनता के बीच में जाना चाहता हूं. इसमें कोई वैल्यू एडिशन नहीं होगा.मैं जनता की सोच के लिए काम करूंगा. नई व्यवस्था बनाने के लिए मैं समर्पित हूं. सफलता मिलना या न मिलना मेरे हाथ में नहीं है.