झारखंड में कम क्यों हो रही है आदिवासियों की आबादी, कहां जा रहे हैं आदिवासी

अगर जनगणना के आंकड़ों पर नजर दौड़ाए तो पता चलता है कि झारखंल से लोगों का बड़े पैमान पर पलायन हो रहा है. वहीं उससे अधिक संख्या में लोग दूसरे राज्यों से झारखंड आ रहे हैं. आइए जानते हैं कि इसकी वजह क्या है.

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नई दिल्ली:

झारखंड में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं. इस चुनाव में बीजेपी सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा और उसके सहयोगियों की सरकार को हटाने के लिए भरपूर कोशिश कर रही है. इसी को ध्यान में रखते हुए उसने घुसपैठ का मुद्दा उठाया है. वह सत्तारूढ़ गठबंधन पर बांग्लादेशी घुसपैठियों को बढ़ावा देने का आरोप लगाया है. उसका आरोप है कि इस घुसपैठ की वजह से राज्य के आदिवासी बहुल इलाके में जनसंख्या की प्रकृति में बदलाव आ रहा है. उसका कहना है कि पश्चिम बंगाल और बिहार से लगते संथाल परगना इलाके में आदिवासियों की जनसंख्या कम हुई है.आइए देखते हैं कि इस दावे में सच्चाई कितनी है.

झारखंड की राजनीति में आदिवासी

झारखंड की 81 सदस्यों वाली विधानसभा में आदिवासियों के लिए 28 सीटें आरक्षित हैं. हालांकि राज्य में 39 सीटें ऐसी हैं, जहां आदिवासी वोट निर्णायक स्थिति में हैं.सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि आजादी से पहले और बाद में राज्य की आदिवासी जनसंख्या में बदलाव आया है. लेकिन इस बदलाव का सबसे बड़ा कारण लोगों का पलायन है. 

बीजेपी इस चुनाव में बांग्लादेश से होने वाली कथित घुसपैठ को मुद्दा बना रही है.

बिहार से 2000 में अलग कर झारखंड राज्य का गठन किया गया था. अंग्रेजी अखबार 'इंडियन एक्सप्रेस' के मुताबिक अंगरेजी राज्य  में 1881 तक की जनगणना से पता चलता है कि इस इलाके में आदिवासी कभी भी बहुमत में नहीं रहे. आजादी से पहले 1881 से 1941 तक की जनगणना में दक्षिण बिहार के छोटानागपुर इलाके में आदिवासियों की सबसे अधिक जनसंख्या 1911 में 38.42 फीसदी दर्ज की गई थी. इस तरह से सबसे कम जनसंख्या 1941 में 30.89 फीसदी दर्ज की गई. आजाद भारत में सबसे पहली जनगणना 1951 में की गई. उसमें आदिवासी आबादी 35.38 फीसदी दर्ज की गई थी. इस जनगणना में आदिवासी और गैर आदिवासी के रूप में लोगों की गणना की गई थी. उस वक्त झारखंड अलग राज्य नहीं बना था, इसलिए इसमें शामिल जिलों की  जनसंख्या के आधार पर यह आंकड़ा निकाला गया.

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झारखंड में घटती आदिवासी जनसंख्या

झारखंड के अलग राज्य बनने से पहले 1991 में कराई गई जनगणना में इस इलाके में आदिवासियों की आबादी 27.66 फीसदी थी. चार दशक के इस अंतराल में आदिवासियों की आबादी 1.42 फीसदी सालाना की दर से बढ़ी. जबकि इस अवधि में अनुसूचित जाति की जनसंख्या में बढ़ोतरी की रफ्तार 2.89 फीसदी थी. साल 1952 में अनुसूचित जाति की आबादी 8.41 फीसदी थी.साल 1991 में यह बढ़कर 11.85 फीसदी हो गई थी.

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झारखंड में आदिवासी रोजगार की तलाश में पलायन करते हैं.

वहीं साल 2001 में झारखंड में आदिवासियों की आबादी 26.3 फीसदी दर्ज हुई और 2011 की जनगणना में यह 26.21 फीसदी दर्ज की गई.साल 2011 के बाद अब तक जनगणना नहीं कराई गई है. अंतिम जनगणना के मुताबिक देश में अनुसूचित जनजाति की आबादी 8.61 फीसदी थी. 

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आजादी से पहले आदिवासी की घटती जनसंख्या के पीछे जिन कारणों की पहचान की गई, उनमें कम जन्मदर और और उच्च मृत्यु दर, काम की तलाश में दूसरे राज्यों में पलायन के साथ-साथ आदिवासियों की जमीन और प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर शहरीकरण और औद्योगीकरण के प्रतिकूल प्रभाव भी शामिल थे. 

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झारखंड में कितने लोग बाहर से आए

साल 2001 की जनगणना के मुताबिक झारखंड के 14.72 लाख लोगों ने पलायन किया. इनमें आदिवासी और गैर आदिवासी दोनों शामिल थे.यह राज्य की कुल आबादी का 5.46 फीसदी के बराबर था.इसके मुताबिक इस दौरान राज्य में 1.8 लाख लोग दूसरे राज्यों से आकर बसे.वहीं साल 2011 में झारखंड से पलायन करने वाले लोगों की संख्या बढ़कर 17.61 लाख हो गई. यह राज्य की आबादी के 5.34 फीसदी के बराबर थी.वहीं 22.65 लाख लोग दूसरे राज्यों से आकर बसे. यह राज्य की कुल आबादी का 6.87 फीसदी के बराबर था.

साल 2011 की जनगणना के मुताबिक एक राज्य से दूसरे राज्य की पलायन की दर 12.06 फीसदी थी. वहीं झारखंड में यह दर 18.66 फीसदी थी. वहीं झारखंड के पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ में यह दर 8.41 फीसद और ओडिशा में 8.07 फीसदी थी. झारखंड के लोगों की पहली पसंद है पश्चिम बंगाल. जनगणना के 2011 के आंकड़ों के मुताबिक 4.59 लाख लोगों ने बंगाल का रुख किया. वहीं4.34 लाख लोग बिहार गए तो 1.67 लाख लोग ओडिशा, 1.11 लाख लोग छत्तीसगढ़, 1.1 लाख लोग उत्तर प्रदेश, एक लाख लोगों ने महाराष्ट्र का रुख किया तो 69 हजार से अधिक लोगों ने दिल्ली की राह चुनी.   

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