महाराष्ट्र में हिंदी भाषा को लेकर राजनीतिक गर्मी बनी हुई है. मनसे पूरे महाराष्ट्र में हिंदी थोपे जाने के खिलाफ स्कूलों के बाहर हस्ताक्षर अभियान चला रही है. मनसे के कार्यकर्ता हिंदी थोपे जाने के खिलाफ अभिभावकों के पास पत्र लेकर पहुंच रहे हैं और उनके हस्ताक्षर ले रहे हैं. इसी के बीच मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने राज्य में तीन भाषा फार्मूले की समीक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण बैठक भी की.
मनसे पूरे महाराष्ट्र में हिंदी थोपे जाने के खिलाफ स्कूलों के बाहर हस्ताक्षर अभियान चला रही है. वो राज्य में लागू की जा रही तीन भाषा नीति का विरोध कर रही है और आरोप लगा रही है कि तीसरी भाषा के नाम पर हिंदी थोपी जा रही है. राज ठाकरे का कहना है कि राज्य में केवल दो भाषा नीति होनी चाहिए. मराठी और अंग्रेजी भाषा छात्रों के लिए पर्याप्त है.
मनसे ने सरकार को धमकी दी है कि अगर सरकार उनके विरोध और अभियान पर ध्यान नहीं देती है तो वे सड़कों पर उतरेंगे. महाराष्ट्र के सांस्कृतिक मंत्री आशीष शेलार ने कहा कि भाजपा हमेशा से मराठी और छात्र कल्याण की प्रबल समर्थक रही है. महाराष्ट्र में केवल मराठी को अनिवार्य बनाया गया है. कोई अन्य भाषा नहीं थोपी गई है. पहले कक्षा 5 से 8 तक हिंदी अनिवार्य थी, लेकिन अब यह अनिवार्यता हटा दी गई है. हिंदी अब कक्षा 1 से 5 तक केवल वैकल्पिक तीसरी भाषा के रूप में उपलब्ध है, और चयन में विकल्प के साथ.
हस्ताक्षर करने वाले एक अभिभावक ने कहा कि हम हिंदी के खिलाफ नहीं हैं. हम चाहते हैं कि हमारा बच्चा हिंदी सीखे, लेकिन पहली कक्षा से नहीं. यह एक अतिरिक्त बोझ होगा. एक छात्र की मां ने कहा कि हमें गर्व है कि हम महाराष्ट्रीयन हैं. हमारी मातृभाषा और अंग्रेजी ही काफी है. सरकार को अपनी 3 भाषा नीति पर पुनर्विचार करना चाहिए. एक अभिभावक की राय भी अलग थी, उन्होंने कहा कि मैं चाहता हूं कि मेरा बच्चा पहली से पांचवीं कक्षा तक मराठी और अंग्रेजी के साथ हिंदी भी सीखे.
साने गुरुजी स्कूल में हस्ताक्षर अभियान चलाने वाले मनसे नेता यशवंत किलेदार ने कहा कि हस्ताक्षर अभियान के माध्यम से अभिभावकों से हमें अच्छी प्रतिक्रिया मिल रही है. हमने शिक्षा क्षेत्र के लोगों से भी संपर्क किया है ताकि इसे केवल राजनीतिक अभियान तक सीमित न रखते हुए सामाजिक अभियान बनाया जा सके. किलेदार ने सरकार को धमकी दी है कि अगर उसने मनसे के अभियान पर ध्यान नहीं दिया तो मनसे सड़कों पर उतरेगी. उन्होंने कहा, "हमें तीसरी भाषा नहीं चाहिए. दो भाषाएं पर्याप्त हैं. हम सरकार तक अपनी बात पहुंचाने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं. लेकिन अगर सरकार इस पर ध्यान नहीं देती है तो मनसे सड़कों पर उतरेगी.
दरअसल, ये मुद्दा अब मराठी अस्मिता का मामला बन चुका है. अब इसपर हो रही रजनीति से किस्को लाभ होगा ये देखना दिलचस्प है. वहीं, मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस ने राज्य में त्रिभाषा फार्मूले की समीक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण बैठक की.