अरावली पर रार, राजनीति घमासान.... राजस्‍थान वित्त आयोग के अध्‍यक्ष का पूर्व सीएम गहलोत पर वार

अरावली पर्वतमाला को लेकर राजस्‍थान में राजनीतिक बहस छिड़ गई है. अब राजस्थान राज्य वित्त आयोग के अध्यक्ष अरुण चतुर्वेदी ने इसे लेकर पूर्व मुख्‍यमंत्री अशोक गहलोत पर निशाना साधा है.

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  • अरुण चतुर्वेदी ने पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की अरावली खनन नीति पर राजनीतिक आरोपों की आलोचना की है.
  • चतुर्वेदी ने कहा कि गहलोत ने 2002 में मुख्यमंत्री रहते खनन मामले को मंजूरी दी थी और अब इसे मुद्दा बना रहे हैं.
  • सुप्रीम कोर्ट ने अरावली की 100 मीटर सीमा पर कोई अंतिम आदेश नहीं दिया और केंद्र से व्यापक कार्य योजना मांगी है.
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अजमेर:

राजस्थान राज्य वित्त आयोग के अध्यक्ष अरुण चतुर्वेदी ने अरावली पर्वतमाला  श्रृंखलाओं में खनन नीति पर पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के हालिया बयान की जमकर आलोचना की है और कहा है कि उन्होंने "इस न्यायिक मामले को राजनीतिक बहस में बदल दिया है." चतुर्वेदी ने गहलोत सरकार पर 2002 में इस मामले को हरी झंडी देने का भी आरोप लगाया.

अरुण चतुर्वेदी ने कहा, "मुझे आश्चर्य है कि गहलोत ने 2002 में मुख्यमंत्री रहते हुए और उनकी सरकार के सत्ता में रहते हुए खुद इस मुद्दे पर अपनी सहमति दी थी. आज वे इस मुद्दे को फिर से उठा रहे हैं और अनावश्यक रूप से बवाल खड़ा कर रहे हैं."

अरावली पर्वतमाला की '100 मीटर' की नई परिभाषा को केंद्र सरकार के मान्यता दिए जाने और विपक्ष के खनन के संभावित खतरे से जुड़े सवालों पर चतुर्वेदी ने कहा, "सुप्रीम कोर्ट ने अभी तक कोई आदेश जारी नहीं किया है. बल्कि उसने केंद्र सरकार से इस मामले को लेकर एक व्यापक कार्य योजना तैयार करने और प्रस्तुत करने को कहा है."

अरावली की रक्षा के लिए काम कर रही सरकारें: चतुर्वेदी

उन्होंने आगे कहा कि केंद्र और राज्य सरकारें अरावली की रक्षा के लिए लगातार काम कर रही हैं और अरावली के 98% हिस्से में खनन पर रोक है. उन्होंने कहा कि "इस स्तर पर मुद्दे का राजनीतिकरण करने का कोई औचित्य नहीं है..."

अरुण चतुर्वेदी का यह बयान राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के उन आरोपों के बाद आया है, जिसमें उन्होंने भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र और राज्य सरकार पर अरावली पर्वतमाला की सुरक्षा को कमजोर करके "राजस्थान के भविष्य को खतरे में डालने" का प्रयास करने का आरोप लगाया था. गहलोत ने कहा था कि यह कदम खनन माफिया को लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से उठाया गया था और न्यायिक आदेशों और स्थापित सरकारी रिकॉर्ड के विपरीत था.

अरावली के मुद्दे पर गहलोत ने क्‍या कहा?

गहलोत ने कहा कि 2003 में एक विशेषज्ञ समिति ने आजीविका के दृष्टिकोण से 100 मीटर की परिभाषा की सिफारिश की थी, जिसे राज्य सरकार ने बाद में 16 फरवरी 2010 को एक हलफनामे के जरिए सुप्रीम कोर्ट के सामने रखा था. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने 19 फरवरी 2010 को इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया.

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उन्होंने जोर देकर कहा कि कांग्रेस सरकार ने अदालत के आदेश का पूरी तरह से सम्मान किया और बाद में भारतीय वन सर्वेक्षण के माध्यम से अरावली पर्वतमाला की साइंटिफिक मैपिंग करवाई गई. उन्होंने अवैध खनन की गतिविधियों पर अंकुश लगाने के लिए अपनी सरकार द्वारा उठाए गए कदमों के बारे में भी बताया.

अरावली को कोई खतरा नहीं: केंद्र सरकार 

इस बीच केंद्र सरकार ने एक नए बयान में दावा किया है कि "भयभीत करने वाले दावों के विपरीत, अरावली की पारिस्थितिकी को कोई तत्काल खतरा नहीं है."

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सरकार ने बयान में कहा, “लगातार वृक्षारोपण, ईको-सेंसिटिव जोन नोटिफिकेशन और खनन एवं शहरी गतिविधियों की कड़ी निगरानी यह सुनिश्चित करती है कि अरावली पर्वतमाला देश के लिए एक प्राकृतिक धरोहर और पारिस्थितिक कवच बनी रहे. भारत का संकल्प स्पष्ट है: अरावली पर्वतमाला को वर्तमान और भविष्य की पीढ़ियों के लिए संरक्षित किया जाएगा, साथ ही संरक्षण और जिम्मेदार विकास के बीच संतुलन बनाए रखा जाएगा.”

सुप्रीम कोर्ट ने इसी साल नवंबर में दिए एक फैसले में पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के नेतृत्व में गठित एक समिति की सिफारिशों का समर्थन किया, जिसका गठन मई 2024 में माइनिंग रेगुलेशन के लिए अरावली पर्वतमाला की एक समान नीति परिभाषा तैयार करने के लिए किया गया था. समिति में दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात के वन विभाग के सचिवों के साथ भारतीय वन सर्वेक्षण, केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति और भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के प्रतिनिधि शामिल थे.

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