उत्तर प्रदेश के अयोध्या में नाबालिग बच्ची से रेप का मामला सामने आया है. इस मामले में आरोपी का समाजवादी पार्टी से नाता बताया जा रहा है. वहीं ये भी कहा जा रहा है कि आरोपी की फैजाबाद सांसद अवधेश प्रसाद से भी नजदीकियां है. जैसे ही ये खबरें बाहर आई वैसे ही इस मामले में राजनीति पर भी गरमा गई. यही वजह है कि अखिलेश यादव और उनकी पार्टी विरोधी दलों के निशाने पर आ गई. ऐसा पहली बार नहीं है कि जब किसी रेप के मामलों पर देश में सियासत देखने को मिल रही है. हाथरस मामला हो या फिर उन्नाव, हर मामले में सियासत होती आई है. अब 12 साल की बच्ची से रेप के मामले में एक तरफ समाजवादी पार्टी निशाने पर है. वहीं दूसरी ओर इस मामले में सपा प्रमुख अखिलेश यादव की चुप्पी को लेकर सवाल उठ रहे हैं. दरअसल उनकी पार्टी से जुड़े नेता मोईद पर 29 जुलाई को मुकदमा दर्ज हुआ था और 30 को उसकी गिरफ्तारी हुई. मोईद पर ढाई महीने तक लड़की से रेप करने और उसका वीडियो बनाने का आरोप लगा है. लेकिन अब इस मामले पर जो हो रहा है, उसे देख हर कोई निराश ही होगा.
क्यों आमने-सामने अखिलेश-मायावती
अखिलेश यादव ने अयोध्या में नाबालिग से रेप के आरोपी सपा कार्यकर्ता मोईद खान और उसके नौकर राजू खान का डीएनए परीक्षण कराने की शनिवार को मांग की थी, जिसे लेकर विवाद खड़ा हो गया था. अखिलेश यादव ने 'एक्स' पर कहा था, 'इस मामले में जिन पर भी आरोप लगे हैं, उनका डीएनए टेस्ट कराकर इंसाफ का रास्ता निकाला जाए, न कि केवल आरोप लगाकर सियासत की जाए. जो भी दोषी हो, उसे कानून के हिसाब से पूरी सजा दी जाए, लेकिन अगर डीएनए टेस्ट के बाद आरोप झूठे साबित हों, तो सरकार के संलिप्त अधिकारियों को भी न बख्शा जाए, यही न्याय की मांग है.' इसके बाद से अखिलेश यादव भी निशाने पर आ गए.
बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की प्रमुख मायावती ने अखिलेश के इस बयान पर सवाल किया था कि सपा शासन में ऐसे मामलों में कितने आरोपियों का डीएनए परीक्षण किया गया था. वहीं, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने आरोप लगाया था कि अखिलेश ने सपा से जुड़े आरोपी मोइद खान को 'क्लीन चिट' दे दी है. इस मामले को लेकर मायावती ने बीजेपी सरकार को घेरा. मायावती ने कहा कि यूपी में अपराध नियंत्रण व कानून-व्यवस्था में भी ख़ासकर महिला सुरक्षा व उत्पीड़न आदि को लेकर बढ़ती चिन्ताओं के बीच अयोध्या व लखनऊ आदि की घटनाएं अति-दुखद व चिन्तित करने वाली. सरकार इनके निवारण के लिए जाति-बिरादरी एवं राजनीति से ऊपर उठकर सख़्त कदम उठाए तो बेहतर होगा.
रेप के मामलों पर क्यो इतनी सियासत
ऐसा पहली बार नहीं है कि जब रेप मामले पर जमकर सियासत हो रही है. गौर करने वाली बात ये है कि जो पार्टी खुद को इंसाफ पसंद और महिलाओं के हक की आवाज उठाने वाली बताती है, वो भी ऐसे मुद्दे पर अपनी रोटी सेंकती नजर आती है. देशभर में तमाम रेप मामलो में पार्टी बस एक-दूसरे को कोसती नजर आई है. जबकि ऐसे मामले कितने संवेदनशील होते हैं, इसका ख्याल तक नहीं रखा जाता. बल्कि होना तो ये चाहिए कि ऐसे मामले में किसी भी तरह की राजनीति से खुद को दूर रखना चाहिए, लेकिन तमाम राजनैतिक दलों के लिए ऐसे मुद्दे सिर्फ एक-दूसरे की बखियां उधड़ने का जरिया बनते जा रहे हैं. सबसे जरूरी ये है कि पीड़ित के दर्द को समझा जाएं और इंसाफ दिलाने के साथ उसकी हरसंभव मदद करनी चाहिए. मगर होता ठीक इसके उलट है. ऐसे में पीड़ित पर क्या बीतती है, इसका अंदाजा तक लगाना मुमकिन नहीं. खासकर जब रेप के मामले में आरोपी किसी पार्टी से जुड़ा होता है, तो ऐसे में पार्टियां कहां चूकती है.
इस पूरे मामले में सपा के नेता का नाम और सीनियर नेताओं के साथ आरोपी की नजदीकी सामने आने के बाद शीर्ष नेतृत्व तक सवालों के घेरे में है. यूपी में पूर्व में आई इस प्रकार की घटनाओं को लेकर अखिलेश यादव का रुख हमेशा सख्त ही रहा है, वो अक्सर पूर्व की सरकारों को ऐसे मामलों में घेरते रहे हैं. लेकिन, अयोध्या रेप की घटना में सपा नेता का नाम आने के बाद से उनका रवैया डिफेंसिव दिख रहा है. बस इसी को लेकर उन पर सवाल उठाए जा रहे हैं. बच्ची से गैंगरेप की वारदात के मामले में सपा आरोपी पर खुलकर ज्यादा कुछ नहीं बोल रही. दिल्ली में मौजूद फैजाबाद सांसद अवधेश प्रसाद से जब मीडिया ने मोईद से संबंधों पर बात की तो वो भी इस मामले पर ज्यादा बोलने से बचते दिखे. यही वजह है कि इस मुद्दे पर अखिलेश यादव बसपा और बीजेपी के निशाने पर आ गए. बेहतर होता कि इस मामले में पार्टियां एक-दूसरे पर निशाना साधने की बजाय एक साथ मिलकर न्याय की मांग करते, मगर मौजूदा दौर की राजनीति की बिसात ही ऐसी हो चुकी है. जहां सही गलत मुद्दों की पहचान भी मुश्किल होती जा रही है. अगर इस मामले में राजनीति ना कर इंसाफ को प्राथमिकता दी जाए तो यकीनन सरकार और विरोधी दलों के प्रति जनता का विश्वास और मजबूत होगा.