लोकसभा चुनावों (Lok Sabha Elections 2024) को लेकर राजनीतिक सरगर्मी काफी बढ़ गई है. इसका असर इंटरनेट पर भी देखने को मिल रहा है. यहां पर चुनाव प्रचार काफी तेज हो गया है. महज Google प्लेटफार्म पर जनवरी-मार्च 2023 के मुकाबले जनवरी-मार्च 2024 के दौरान राजनीतिक विज्ञापनों (Political Ads) में 11 गुना का इजाफा हुआ है. साथ ही गूगल प्लेटफार्म पर ऐसे राजनीतिक विज्ञापनों की संख्या लगातार बढ़ रही हैं. लगभग हर राजनीतिक दल तस्वीरों और वीडियो कंटेंट के जरिए मतदाताओं तक पहुंचने की जद्दोजहद में जुटा है.
Google Ads Transparency Centre के मुताबिक, चुनावी विज्ञापनों में तेजी आई है. एक जनवरी 2023 से 18 मार्च 2023 के बीच राजनीतिक विज्ञापनों पर कुल खर्च 8.45 करोड़ रुपये था. वहीं एक जनवरी 2024 से 18 मार्च 2024 के बीच राजनीतिक विज्ञापनों पर कुल खर्च 101.54 करोड़ रुपये तक पहुंच गया यानी चुनाव करीब आते ही इस साल राजनीतिक विज्ञापन करीब 11 गुना तक बढ़ चुके हैं.
जाहिर है कि अगर एक्स, फेसबुक और इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफॉर्म्स को गूगल के साथ जोड़कर देखा जाए तो राजनीतिक विज्ञापनों पर खर्च इससे कई गुना ज्यादा हो चुका है.
एडीआर के संस्थापक प्रो. जगदीप छोकर ने एनडीटीवी से कहा, "राजनीतिक विज्ञापन गूगल के अलावा दूसरे सोशल मीडिया प्लेटफार्म जैसे फेसबुक, ट्विटर और दूसरे प्लेटफॉर्म पर भी होगा. इतने बड़े स्तर पर कंटेंट की मॉनिटरिंग और उसे रेगुलेट करना बहुत बड़ा काम होगा. इसके लिए बहुत बड़े स्तर पर संसाधन चाहिए. मुझे नहीं मालूम वह संसाधन किसके पास होंगे?"
साइबर लॉ विशेषज्ञ पवन दुग्गल ने कहा, "चुनाव आयोग के सामने चुनौती बढ़ने वाली है क्योंकि इन चुनावों में पिछले चुनावों के मुकाबले राजनीतिक विज्ञापनों में काफी इजाफा होने वाला है. ये चुनाव आयोग का दायित्व होगा कि इसकी कारगर तरीके से मॉनिटरिंग कराई जाए. देश में फ्री एंड फेयर इलेक्शन करने के लिए यह जरूरी है कि इलेक्शन से जुड़े कंटेंट को चुनाव आयोग सही तरीके से एग्जामिन करे".
दरअसल, हाल के चुनावों में सोशल मीडिया और इंटरनेट पर चुनावी विज्ञापनों के राजनीतिक कंटेंट को लेकर चर्चा होती रही है. 2024 के लोकसभा चुनावों के दौरान चुनाव आयोग के सामने चुनौती सभी दलों और उम्मीदवारों के लिए सोशल मीडिया और इंटरनेट पर एक लेवल प्लेइंग फील्ड सुनिश्चित करने की होगी.
आयोग को नए रेगुलेशंस लाने होंगे : दुग्गल
साइबर लॉ विशेषज्ञ पवन दुग्गल ने कहा, "बहुत सारा कंटेंट इस तरह का हो सकता है, जो फ्री एंड फेयर इलेक्शन के लिए बाधाएं खड़ी कर सकता है. चुनाव आयोग को कारगर तरीके से अपने अधिकारों का इस्तेमाल करने के लिए नए रेगुलेशंस लाने होंगे".
खास तरह की विशेषज्ञता की जरूरत : छोकर
प्रो. जगदीप छोकर के मुताबिक, "डिजिटल मीडिया स्पेस में सोशल मीडिया और इंटरनेट कंपनियां खुद ही कंटेंट को रेगुलेट करती हैं. उन्हें कहा जा सकता है कि किसी एक कंटेंट को हटा दो, लेकिन कई बार इंडिया में कंटेंट हटाया जाता है, लेकिन विदेश में दिखता रहता है, इसे विदेश में नहीं हटाया जाता, इसके लिए एक खास तरह की विशेषज्ञता की जरूरत होगी."
जाहिर है कि चुनाव आयोग के सामने डिजिटल स्पेस और इंटरनेट पर चुनाव से जुड़े राजनीतिक कंटेंट को कारगर तरीके से मॉनिटर करने की चुनौती बड़ी हो रही है.
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