आजादी के बाद पहली बार ऐसा... संघ पर जारी डाक टिकट और सिक्के में ऐसा क्या खास, पीएम मोदी ने बताया

RSS की स्थापना 1925 में नागपुर में केशव बलीराम हेडगवेर द्वारा की गई थी, अपने स्वयंसेवक-आधारित सामाजिक और सेवा कार्यों के लिए जाना जाता है.

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  • PM मोदी ने RSS के 100 वर्ष पूरे होने पर विशेष डाक टिकट और 100 रुपये का स्मारक सिक्का जारी किया
  • 100 रुपये के सिक्के पर भारत माता की तस्वीर और संघ का बोधवाक्य अंकित है, जो स्वतंत्र भारत में पहली बार हुआ है
  • PM ने कहा कि संघ के विरुद्ध लगे प्रतिबंध और झूठे मामलों के बावजूद उनके सामाजिक समर्पण में कमी नहीं आयी
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नई दिल्ली:

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के 100 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विशेष रूप से डिज़ाइन किया गया डाक टिकट और 100 रुपये का स्मारक सिक्का जारी किया. यह आयोजन दिल्ली के डॉ. अम्बेडकर अंतर्राष्ट्रीय केंद्र में RSS शताब्दी समारोह के दौरान हुआ.  RSS, जिसकी स्थापना 1925 में नागपुर में केशव बलीराम हेडगवेर द्वारा की गई थी, अपने स्वयंसेवक-आधारित सामाजिक और सेवा कार्यों के लिए जाना जाता है. संगठन ने शिक्षा, स्वास्थ्य, आपदा राहत, और सामाजिक सेवा में कई योगदान दिए हैं.  स्मारक टिकट और सिक्का इन्हीं योगदानों का प्रतीक है.

स्मृति डाक टिकट की भी अपनी महत्ता है. हम सभी जानते हैं 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के परेड की कितनी अहमियत होती है. 1963 में आरएसएस के स्वयंसेवक भी 26 जनवरी की उस राष्ट्रीय परेड में शामिल हुए थे. उन्होंने आन बान शान से राष्ट्रभक्ति की धुन पर कदमताल किया है. इस टिकट में उसी ऐतिहासिक क्षण की स्मृति है.संघ के स्वयंसेवक जो अनवरत देश की सेवा में जुटे हैं, समाज को सशक्त कर रहे हैं, इसकी भी झलक डाक टिकट में है.

- PM Modi

पीएम मोदी ने कहा कि भारत सरकार ने विशेष डाक टिकट और स्मृति सिक्के जारी किए हैं. 100 रुपये के सिक्के पर एक ओर राष्ट्रीय चिह्न है और दूसरी ओर सिंह के साथ वरद् मुद्रा में भारत माता की भव्य छवि और समर्पण भाव से उसे नमन करते स्वयंसेवक दिखाई देते हैं.

भारतीय मुद्रा पर भारत माता की तस्वीर संभवत स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है. इस सिक्के के ऊपर संघ का बोध वाक्य भी अंकित है-राष्ट्राय स्वाहा, इदं राष्ट्राय इदं न मम.

संघ को मुख्य धारा में आने से रोकने के अनेक प्रयास हुए पीएम मोदी

पीएम मोदी ने कहा कि संघ को मुख्य धारा में आने से रोकने का अनगिनत प्रयास हुए, गुरुजी को झूठे केस में फंसाया गया उन्हें जेल तक भेज दिया लेकिन जब पूज्य गुरुजी बाहर आए, उन्होंने सहज रूप से कहा, कभी-कभी जीभ दांतों के नीचे आकर दब जाती है, कुचल भी जाती है लेकिन हम दांत नहीं तोड़ देते. क्योंकि दांत भी हमारे हैं और जीभ भी हमारी है.

पीएम मोदी ने कहा कि चाहे संघ पर प्रतिबंध लगे चाहे षडयंत्र हुए संघ के स्वयंसेवकों ने कभी कटुता को स्थान नहीं दिया क्योंकि वो जानते हैं कि हम समाज से अलग नहीं है, समाज हम सबसे ही तो बना है, जो अच्छा है वो भी हमारा है, जो कम अच्छा है वो भी हमारा है, और दूसरी बात जिसने कभी कटुता को जन्म नहीं दिया वो है प्रत्येक स्वयंसेवक को लोकतंत्र और संवैधानिक संस्था में विश्वास, जब देश में आपातकाल थोपी गई तभी इस विश्वास ने स्वयंसेवकों को आगे बढ़ाया, समाज के अनेक थपेड़े झेलते हुए भी संघ आज तक विराट वट वृक्ष की तरह अडिग खड़ा है.

प्रधानमंत्री ने कहा कि आज महानवमी है.आज देवी सिद्धिदात्रि का दिन है. कल विजयादशमी का महापर्व है. अन्याय पर न्याय की जीत, असत्य पर सत्य की जीत, अंधकार पर प्रकाश की जीत... विजयादशमी भारतीय संस्कृति के इस विचार और विश्वास का कालजयी उद्घोष है. ऐसे महान पर्व पर 100 साल पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना कोई संयोग नहीं था.यह हजारों सालों से चली आ रही परंपरा का पुर्नउत्थान था. इस युग में संघ उसी अनादि राष्ट्रचेतना का पुण्य अवतार है. 

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यह हमारी पीढ़ी के स्वयंसेवकों का सौभाग्य है कि हमें संघ के शताब्दी वर्ष जैसा महान अवसर देखने को मिल रहा है. भारत सरकार ने विशेष डाक टिकट और स्मृति सिक्के जारी किए हैं. 100 रुपये के सिक्के पर एक ओर राष्ट्रीय चिह्न है और दूसरी ओर सिंह के साथ वरद् मुद्रा में भारत माता की भव्य छवि और समर्पण भाव से उसे नमन करते स्वयंसेवक दिखाई देते हैं. भारतीय मुद्रा पर भारत माता की तस्वीर संभवत स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है. इस सिक्के के ऊपर संघ का बोध वाक्य भी अंकित है-राष्ट्राय स्वाहा, इदं राष्ट्राय इदं न मम.

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पीएम मोदी ने कहा कि ऊंच-नीच की भावना हिंदू समाज की बहुत बड़ी चुनौती रही, ये ऐसी गंभीर चिंता है जिसपर संघ बड़ा काम करता रहा है, एक बार महात्मा गांधी ने वर्धा में संघ के शिविर में गए थे वहां सम भाव की काफी तारीफ की थी. संघ ही हर महान विभूति हर सरसंघचालक ने भेदभाव के खिलाफ लड़ाई लड़ी है, न हिंदू पतितो भवेत.. यानी हर हिंदू एक परिवार है, कोई भी हिंदू पतित नहीं हो सकता है.

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