शिशु को जन्म देना या न देना व्यक्तिगत स्वतंत्रता, एक मामले में दिल्ली हाईकोर्ट की टिप्पणी

अदालत ने 31 दिसंबर को जारी आदेश में यह भी कहा कि शिशु को प्रसव के दौरान और जन्म के बाद भी स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है, जो उसके जीवन की गुणवत्ता को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करेगा.

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दिल्ली हाईकोर्ट ने एक गर्भवती महिला को मेडिकल गर्भपात कराने की अनुमति दी है. (प्रतीकात्मक तस्वीर)
नई दिल्ली:

दिल्ली हाईकोर्ट ने एक गर्भवती महिला को भ्रूण में अधिक विकृति रहने के चलते मेडिकल गर्भपात कराने की अनुमति दी है और कहा कि शिशु को जन्म देने का विकल्प चुनना व्यक्तिगत स्वतंत्रता का एक आयाम है, जो संविधान के अनुच्छेद 21 में निहित है. महिला को 28 हफ्ते का गर्भ है. जस्टिस ज्योति सिंह ने गर्भपात कराने की महिला की याचिका स्वीकार करते हुए कहा कि गर्भावस्था जारी रखने की अनुमति देने से याचिकाकर्ता के मानसिक स्वास्थ्य पर नुकसानदेह असर पड़ेगा और मेडिकल बोर्ड की राय के मद्देनजर उसे गर्भावस्था जारी रखने या नहीं रखने का फैसला लेने की स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जा सकता.

अदालत ने कहा कि मेडिकल विशेषज्ञों के मुताबिक भ्रूण के एक स्वस्थ और सामान्य जीवन जीने की संभावना बहुत कम है. जन्म के बाद शिशु को जीवन के शुरूआती समय में हृदय की सर्जरी कराने और किशोरावस्था या युवावस्था में फिर से यह सर्जरी कराने की जरूरत होगी, जिससे उसका पूरा जीवन चिकित्सकीय परिस्थिति और चिकित्सकीय देखभाल पर निर्भर हो जाएगा.

अदालत ने 31 दिसंबर को जारी आदेश में यह भी कहा कि शिशु को प्रसव के दौरान और जन्म के बाद भी स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है, जो उसके जीवन की गुणवत्ता को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करेगा.

(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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