सरकारी सूत्रों ने एनडीटीवी को बताया कि केंद्र सरकार ने उल्फा के वार्ता समर्थक गुट के साथ एक शांति समझौते को लगभग अंतिम रूप दे दिया है और समझौते पर 29 दिसंबर को हस्ताक्षर होने की संभावना है. इसे पूर्वोत्तर में उग्रवाद की दशकों पुरानी समस्या को हल करने में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार की बड़ी सफलता के रूप में देखा जा रहा है. सूत्रों ने कहा कि एक वित्तीय पैकेज, अवैध अप्रवासियों के मुद्दे पर नागरिकता सूची की समीक्षा, भूमि आरक्षण के नए उपाय और असम के स्थानीय समुदायों के अधिकार अंतिम सौदे में शामिल हो सकते हैं. उन्होंने कहा कि इसके अलावा, स्थानीय समुदायों के लिए राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक सुरक्षा उपायों के नए प्रावधानों को सौदे में जगह मिलेगी.
अनूप चेतिया और शशधर चौधरी के नेतृत्व में वार्ता समर्थक शीर्ष उल्फा नेता गृह मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ समझौते को अंतिम रूप देने के लिए दिल्ली में हैं. पिछले हफ्ते, उल्फा नेता उस समय राष्ट्रीय राजधानी में थे, जब असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा शहर में डेरा डाले हुए थे.अपने दिल्ली प्रवास के दौरान, हिमंत बिस्वा सरमा ने इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) के निदेशक तपन कुमार डेका और राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) के महानिदेशक दिनकर गुप्ता से मुलाकात की. सरमा के करीबी सहयोगी ने एनडीटीवी को बताया कि आईबी के पूर्व विशेष निदेशक एके मिश्रा और वर्तमान में पूर्वोत्तर मामलों के सलाहकार और उल्फा शांति वार्ता के वार्ताकार ने भी मुख्यमंत्री से मुलाकात की.
उल्फा के वार्ता समर्थक गुट ने केंद्र को 12 सूत्री मांगों का चार्टर सौंपा है. शांति वार्ता 2011 में शुरू हुई थी और जिन 12 व्यापक समूहों के तहत बातचीत शुरू करने का प्रस्ताव था, उनमें लापता उल्फा नेताओं और कैडरों पर एक स्थिति रिपोर्ट और लंबित मामलों पर सामान्य माफी का मुद्दा तैयार किया गया था.
संवैधानिक और राजनीतिक व्यवस्थाएं और सुधार, असम की स्थानीय स्वदेशी आबादी की पहचान और भौतिक संसाधनों की सुरक्षा, असम के लिए वित्तीय और आर्थिक पैकेज, पूर्वव्यापी प्रतिपूरक आधार पर तेल सहित खानों/खनिजों पर सभी रॉयल्टी का निपटान और भविष्य में सतत आर्थिक विकास के लिए स्वतंत्र उपयोग के अधिकार अन्य प्रमुख मांगें थीं.
इसके साथ ही अवैध प्रवासन, इसका प्रभाव और आवश्यक उपाय, अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं को सील करना, नदी पर गश्त और सीमाओं पर निगरानी रखने के लिए एक देसी बल का विकास की मांग भी शामिल है. परेश बरुआ के नेतृत्व वाला उल्फा (स्वतंत्र) गुट शांति वार्ता का विरोध करता है और भारत-म्यांमार सीमा क्षेत्र से काम कर रहा है.