महबूबा का बड़ा ऐलान: नहीं लड़ेंगी विधानसभा चुनाव, बोलीं- 'क्या मतलब ऐसे पद का जब...'

पीडीपी के चुनाव पूर्व किसी से गठबंधन नहीं करने के सवाल पर महबूबा मुफ्ती ने कहा, "हम हमेशा अकेले लड़े हैं. 1999 में पार्टी बनने के बाद से हमने लोगों की मदद से लड़ाई लड़ी है."

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नई दिल्ली:

पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की प्रमुख महबूबा मुफ्ती (PDP President Mehbooba Mufti) इस बार जम्मू-कश्मीर विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ेंगी. उन्होंने कहा कि अगर वो मुख्यमंत्री बन भी गईं तो भी वो केंद्र शासित प्रदेश में अपनी पार्टी का एजेंडा पूरा नहीं कर पाएंगी. महबूबा मुफ्ती की जगह उनकी बेटी इल्तिजा मुफ्ती इस बार चुनावी मैदान में उतर रही हैं.

पीडीपी अध्यक्ष ने कहा, "मैं बीजेपी के साथ एक सरकार की मुख्यमंत्री रही हूं, जिसने 2016 में 12,000 लोगों के खिलाफ प्राथमिकी वापस ली थी. क्या हम अब ऐसा कर सकते हैं? मैंने प्रधानमंत्री मोदी के साथ सरकार की मुख्यमंत्री के रूप में अलगाववादियों को बातचीत के लिए आमंत्रित करने के लिए एक पत्र लिखा था. क्या आप आज ऐसा कर सकते हैं? मैंने जमीनी स्तर पर संघर्ष विराम लागू करवाया. क्या आप आज ऐसा कर सकते हैं? अगर आप मुख्यमंत्री के तौर पर प्राथमिकी वापस नहीं ले सकते, तो ऐसे पद का क्या मतलब है?"

पीडीपी अध्यक्ष से पूछा गया था कि क्या चुनाव लड़ने को लेकर उनका इरादा बदला है, क्योंकि उनके धुर विरोधी नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने जम्मू-कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश बने रहने तक चुनाव में भाग नहीं लेने के अपने रुख से पलटी मार ली है.

पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा, "उमर ने खुद कहा कि चपरासी के तबादले के लिए उन्हें लेफ्टिनेंट गवर्नर के दरवाजे पर जाना पड़ेगा. मुझे चपरासी के तबादले की चिंता नहीं है, लेकिन क्या हम अपना एजेंडा लागू कर सकते हैं?"

उमर अब्दुल्ला ने जम्मू-कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश बने रहने तक विधानसभा चुनावों में भाग नहीं लेने का संकल्प व्यक्त किया था, लेकिन मंगलवार को पार्टी द्वारा घोषित 32 उम्मीदवारों की सूची में उनका नाम भी शामिल था.

पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला गांदेरबल से चुनाव लड़ेंगे, जहां से उन्होंने 2008 में जीत हासिल की थी.

जम्मू-कश्मीर चुनाव के लिए नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस के बीच गठबंधन पर पीडीपी अध्यक्ष ने कहा कि दोनों पार्टियां हमेशा सत्ता के लिए एक साथ आती हैं.

सीएम ने कहा, "जब हमने 2002 में कांग्रेस के साथ गठबंधन किया था, तो हमारा एक एजेंडा था. हमने सैयद अली गिलानी को जेल से रिहा करवाया था. क्या आप आज ऐसा करने के बारे में सोच सकते हैं? जब हमने 2014 में भाजपा सरकार के साथ गठबंधन किया था, तो हमारे पास गठबंधन का एक एजेंडा था, जिसमें हमने लिखित में कहा था कि अनुच्छेद 370 को छुआ नहीं जाएगा, आफ्स्पा को निरस्त किया जाएगा, पाकिस्तान और हुर्रियत के साथ बातचीत की जाएगी, बिजली परियोजनाओं को वापस लाया जाएगा. हमारा एक एजेंडा था. हालांकि, जब कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस गठबंधन बनाते हैं, तो ये सत्ता के लिए होता है."

पीडीपी के चुनाव पूर्व किसी से गठबंधन नहीं करने के सवाल पर महबूबा मुफ्ती ने कहा, "हम हमेशा अकेले लड़े हैं." उन्होंने कहा, "1999 से जब से हमारी पार्टी बनी है, हम अकेले लड़े हैं. हमने लोगों की मदद से लड़ाई लड़ी. लोगों की मदद के लिए ही हम कांग्रेस के साथ थे."

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वहीं बारामुला से लोकसभा सदस्य शेख अब्दुल राशिद और वरिष्ठ अलगाववादी नेता शब्बीर अहमद शाह को चुनाव से पहले जेल से रिहा किए जाने की संभावना पर उन्होंने कहा कि ये एक अच्छी बात होगी. महबूबा ने सरकार से आग्रह किया कि वो उन कम चर्चित लोगों को भी रिहा करने पर विचार करे, जो जमानत के हकदार हैं, लेकिन उन्हें इससे वंचित रखा गया है.

अपने चुनावी घोषणापत्र में, पीडीपी ने अनुच्छेद 370 और 35ए को बहाल करने के प्रयासों का वादा किया है, जिसने राज्य को विशेष दर्जा दिया था. साथ ही भारत और पाकिस्तान के बीच राजनयिक वार्ता शुरू करने और कश्मीर घाटी में कश्मीरी पंडितों की सम्मानजनक वापसी सुनिश्चित कराने की भी बात कही है.

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जम्मू-कश्मीर में 2014 के विधानसभा चुनाव में नेशनल कॉन्फ्रेंस ने 15 और कांग्रेस ने 12 सीटें जीतीं थी. वहीं पीडीपी ने 28 सीटों पर कब्जा किया था और बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाई थी, लेकिन 2018 में अलग विचारधारा वाली दोनों पार्टियों के बीच गठबंधन टूट गया और जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया.

इसके बाद 2019 में, संविधान के तहत दिए गए राज्य के विशेष दर्जे को ख़त्म कर दिया गया और इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया गया.

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