नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली है.उन्हें उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई.उमर अब्दुल्ला केंद्र शासित राज्य जम्मू कश्मीर के पहले मुख्यमंत्री हैं. नेशनल कॉन्फ्रेंस की गठबंधन सहयोगी कांग्रेस उमर अब्दुल्ला सरकार में शामिल नहीं हुई है. कांग्रेस उमर की सरकार को बाहर से समर्थन दे रही है. उमर अब्दुल्ला के साथ पांच और मंत्रियों ने शपथ ली है.नौशेरा में बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष रविंद्र रैना को हराने वाले सुरेंद्र कुमार चौधरी को उपमुख्यमंत्री बनाया गया है. इस तरह से नेशनल कॉन्फ्रेंस ने हिंदू-मुस्लिम के बीच संतुलन बनाने की कोशिश की है. उमर अब्दुल्ला ने ऐसे समय मुख्यमंत्री पद की शपथ ली है, जब जम्मू कश्मीर कई तरह की चुनौतियों का सामना कर रहा है. आइए जानते हैं कि उमर अब्दुल्ला की चुनौतियां क्या हैं.
क्या जम्मू कश्मीर में भी होगा सीएम और एलजी का तकरार
जम्मू कश्मीर अब एक केंद्र शासित राज्य है. इसमें उप राज्यपाल के पास बहुत ताकत है. मुख्यमंत्री को उप राज्यपाल के तहत ही काम करना होगा.मुख्यमंत्री को हर काम के लिए उप राज्यपाल पर निर्भर रहना होगा.ऐसे में आने वाले दिनों में उप राज्यपाल मनोज सिन्हा और मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के बीच उठापटक भी देखने को मिल सकती है.ठीक वैसे ही जैसा इन दिनों दिल्ली में आम आदमी पार्टी और उप राज्यपाल विनय कुमार सक्सेना के बीच देखने को मिल रहा है.वहां बीजेपी उप राज्यपाल के जरिए दिल्ली पर शासन करने की कोशिश करती नजर आती है.
अगस्त 2019 के बाद से जम्मू कश्मीर को उपराज्यपाल के दफ्तर से चलाया जा रहा था. राज्य के लोग उप राज्यपाल को अपना नुमाइंदा नहीं मान पाए. लोगों को लगा कि सत्ता और उनके बीच में दूरी है.चुनाव प्रचार के दौरान नेशनल कॉन्फ्रेंस ने कश्मीर के लोगों के अधिकारों के लिए लड़ने और उनके लिए रोजगार की व्यवस्था करने का वादा किया था.ऐसे में उमर को ऐसे काम करने होंगे, जिससे लगे कि राज्य में एक ऐसी सरकार चल रही है,जिसे उनकी चिंता है. वो उनके लिए काम करती हैं.उमर अब्दुल्ला को युवाओं के रोजगार और पढ़ाई के अवसर पैदा करने होंगे.
मुख्यमंत्री के अधिकारों में कटौती
विभाजन से पहले भी उमर अब्दुल्ला 2009 में जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री थे. वह पूर्ण राज्य जम्मू कश्मीर था. उस समय गृह विभाग मुख्यमंत्री के तहत आता था. लेकिन केंद्र शासित जम्मू कश्मीर में ऐसा नहीं होगा. गृह विभाग पर मुख्यमंत्री का कोई अधिकार नहीं होगा. गृह विभाग ही राज्य की पुलिस को नियंत्रित करता है. इस स्थिति से निपटना भी उमर की बड़ी चुनौतियों में एक होगा.
दरअसल बहुत से कानूनी और प्रशासनिक शक्तियां उपराज्यपाल के अधिकार क्षेत्र में हैं. इसे जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 की धारा 55 के उप-नियम 2(ए) के तहत 'कारोबार के लेन-देन' नियमों में संशोधन के तहत किया गया है.इसके मुताबिक आईएएस और आईपीएस अधिकारियों के तबादले, जम्मू-कश्मीर पुलिस, कानून-व्यवस्था और एडवोकेट-जनरल सहित न्यायिक अधिकारियों की नियुक्ति का अधिकार उपराज्यपाल के पास है.नए नियमों में भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो,जेल और अभियोजन और अपील दायर करने पर उपराज्यपाल के नियंत्रण को भी बढ़ाया गया है.
मुख्यमंत्री के अधिकारों में की गई कटौती का एहसास उमर अब्दुल्ला को भी है.इसकी चर्चा वो चुनाव प्रचार के दौरान अपने भाषणों में भी कर चुके हैं.इसके बाद भी उन्होंने लोगों से वादा किया है कि नेशनल कॉन्फ्रेंस और उसके गठबंधन सहयोगी विधानसभा को फिर से शक्तिशाली बनाएंगे.
अनुच्छेद-370 और 35-ए पर क्या होगा उमर अब्दुल्ला का रुख
चुनाव प्रचार के दौरान नेशनल कॉन्फ्रेंस ने वादा किया था कि वो अनुच्छेद-370 और 35-ए को बहाल करवाएगी और राज्य का दर्जा बहाल करने का प्रयास करेंगे. यह एक बहुत ही पेचिदा मामला है. इसे उमर अब्दुल्ला भी समझते हैं. इसलिए उन्होंने चुनाव जीतने के बाद ही कह दिया था कि वो नरेंद्र मोदी सरकार के साथ मिलकर काम करेंगे. इसका मतलब यह हुआ कि वो केंद्र के साथ किसी विवाद में नहीं पड़ेंगे.वो अनुच्छेद-370 और 35-ए की बहाली पर भी अपनी बात रख चुके हैं. उनका कहना है कि वो उन्हीं लोगों से अनुच्छेद-370 और 35-ए की बहाली की मांग नहीं कर सकते हैं, जिन्होंने उसे हटाया है. जहां तक रही जम्मू कश्मीर के पूर्ण राज्य के दर्जे की तो इसका वादा केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह भी कर चुके हैं. उन्होंने कई अवसरों पर यह कहा है कि उनकी सरकार जम्मू कश्मीर को उसका पूर्ण राज्य का दर्जा वापस देगी. लेकिन सरकार ने इसको लेकर कोई समय-सीमा नहीं बताई है.
ये भी पढ़ें: डूबे न कार, फ्लाईओवर पर भयंकर कतार! देखिए बारिश के डर से चेन्नई वालों ने ढूंढ निकाला जुगाड़