नई दिल्ली:
संसद का यह मानसून सत्र कई लिहाज से खास था, लेकिन आज समाप्त हुए मॉनसून सत्र की ज्यादातर कार्यवाही हंगामे की भेंट चढ़ गई. हालांकि एक ओर देश के अंतरिक्ष कार्यक्रम की उपलब्धियों पर विशेष चर्चा हुई, वहीं ‘ऑपरेशन सिंदूर' जैसे संवेदनशील विषयों पर भी गंभीर विमर्श हुआ. कुल 14 सरकारी विधेयक पुनःस्थापित किए गए और 12 विधेयक पारित हुए. लेकिन उपलब्धियों के बीच एक गंभीर चिंता भी उभरकर सामने आई, जहां सत्र में हंगामे की वजह से जनता के हित के मुद्दे नहीं उठ सके, बल्कि लोकतंत्र की गरिमा और जनप्रतिनिधियों की जिम्मेदारी पर भी सवाल खड़े किए. लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने संसद के मॉनसून की समाप्ति पर क्या कुछ कहा, जानिए
- इस सत्र में 14 सरकारी विधेयक पुन:स्थापित किए गए तथा कुल 12 विधेयक पारित किए गए. दिनांक 28 और 29 जुलाई को ‘ऑपरेशन सिंदूर' पर विशेष चर्चा हुई, जिसका समापन माननीय प्रधानमंत्री जी के उत्तर के साथ हुआ. दिनांक 18 अगस्त, 2025 को भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम की उपलब्धियों पर विशेष चर्चा आरंभ की गई.
- इस सत्र में कार्यसूची में 419 तारांकित प्रश्न शामिल किए गए थे, किंतु लगातार नियोजित व्यवधान के कारण केवल 55 प्रश्न ही मौखिक उत्तर हेतु लिए जा सके. हम सभी ने सत्र के प्रारंभ में तय किया था कि हम इस सत्र में 120 घंटे चर्चा और संवाद करेंगे. बिजनेस एडवाइजरी कमेटी में भी इस पर सहमति थी. लेकिन लगातार गतिरोध व नियोजित व्यवधान के कारण हम मुश्किल से 37 घंटे ही इस सत्र में काम कर पाए.
- माननीय सदस्यगण, जनप्रतिनिधि के रूप में हमारे आचरण और कार्यप्रणाली को पूरा देश देखता है. जनता की हमसे बड़ी उम्मीद रहती है कि हम उनकी समस्याओं और व्यापक जनहित के मुद्दों पर, महत्वपूर्ण विधेयकों पर, संसद की मर्यादा के अनुरूप गंभीर और सार्थक चर्चा करें.
- लोकसभा अथवा संसद परिसर में नारेबाज़ी करना, तख्तियां दिखाना और नियोजित गतिरोध संसदीय मर्यादा को आहत करता है. इस सत्र में जिस प्रकार की भाषा और आचरण देखा गया, वह संसद की गरिमा के अनुकूल नहीं है. हम सभी का दायित्व है कि हम सदन में स्वस्थ परंपराओं के निर्माण में सहयोग करें. इस गरिमामयी सदन में हमें नारेबाज़ी और व्यवधान से बचते हुए गंभीर और सार्थक चर्चा को आगे बढ़ाना चाहिए. संसद सदस्य के रुप में हमें अपने कार्य और व्यवहार से देश और दुनिया के समक्ष एक आदर्श स्थापित करना चाहिए. सदन और संसद परिसर में हमारी भाषा सदैव संयमित और मर्यादित होनी चाहिए.
- सहमति और असहमति होना लोकतंत्र की स्वाभाविक प्रक्रिया है, किंतु हमारा सामूहिक प्रयास होना चाहिए कि सदन गरिमा, मर्यादा और शालीनता के साथ चले. हमें विचार करना होगा कि हम देश के नागरिकों को देश की सर्वोच्च लोकतांत्रिक संस्था के माध्यम से क्या संदेश दे रहे हैं. मुझे विश्वास है कि इस विषय पर सभी राजनीतिक दल और माननीय सदस्य गंभीर विचार और आत्म-मंथन करेंगे.
- माननीय सदस्यगण, अंत में, मैं इस सत्र की कार्यवाही में सहयोग हेतु माननीय प्रधानमंत्री जी, सभापति तालिका पर विराजमान सहयोगियों, केंद्रीय मंत्रिगणों, नेता प्रतिपक्ष, विभिन्न दलों के नेताओं, माननीय सदस्यों, प्रेस और मीडिया के प्रतिनिधियों, लोकसभा सचिवालय तथा सम्बद्ध एजेंसियों का हार्दिक धन्यवाद करता हूं.
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