कैसे छोड़ दूं खेत..! बाढ़ में बचाने पहुंचे लोग तो अड़ गया बूढ़ा किसान, 'अन्नदाता' का यह दर्द देखिए

सरकार ने राज्य आपदा राहत कोष से 2,215 करोड़ रुपये जारी किए हैं और केंद्र से और वित्तीय सहायता की मांग की है. मगर, किसान का दर्द तो किसान ही जानता है.

विज्ञापन
Read Time: 4 mins
फटाफट पढ़ें
Summary is AI-generated, newsroom-reviewed
  • महाराष्ट्र के लातूर जिले में बाढ़ के बाद एक बुजुर्ग किसान अपने घर और खेत छोड़ने को तैयार नहीं थे.
  • बाढ़ के कारण लाखों किसान परिवारों के घर, फसलें और पशुधन भारी नुकसान से जूझ रहे हैं.
  • महाराष्ट्र सरकार ने परिवारों को वित्तीय सहायता और फसल तथा पशुधन के नुकसान का मुआवजा देने की घोषणा की है.
क्या हमारी AI समरी आपके लिए उपयोगी रही?
हमें बताएं।

बाढ़ एक किसान को किस कदर तोड़ती है, ये एक किसान ही जानता है या फिर एक मां. जिस तरह एक मां अपने बच्चे को नौ महीने गर्भ में रखकर जन्म देती है, उसी तरह एक किसान अपनी मेहनत से जमीन पर फसल बोता है. अपने साथ दूसरों का पेट भी भरता है. यही कारण है कि जब बाढ़ उसकी फसल को बर्बाद करती है तो वो तड़प उठता है. मगर कई बार ये तड़प इतनी गहरी होती है कि वो अपना आपा खो देता है.

वीडियो में क्या

ऐसा ही कुछ दिखा महाराष्ट्र में. एक वीडियो में बाढ़ के पानी के बीच फंसे एक बुजुर्ग व्यक्ति को उनके जानने वाले बचाने की कोशिश करते दिखे. बुजुर्ग अपना घर और खेत छोड़ने को तैयार नहीं थे. वो बचाने आए लोगों से वीडियो में कहते हैं, "मुझे यहीं रहने दो, गांव से बाहर जाकर भी क्या करूं? जीने का क्या फायदा?" ये बुजुर्ग लातूर के उजेद गांव के हैं. बाढ़ से किसान हताश हो गए. खेतों और मवेशियों की चिंता के कारण वो अपना घर छोड़ने को तैयार नहीं थे. पानी में फंसे किसान को दो लोगों ने समझा-बुझाकर बाढ़ के पानी से निकाल कर सुरक्षित जगह पर पहुंचाया. इस दौरान दोनों ने उनकी सुरक्षा को देखते हुए हल्की जबरदस्ती भी की. आपको बता दें कि लातूर ज़िला मंजारा और तेरना नदियों में आई बाढ़ से तबाह हो गया है. ये हाल सिर्फ इन बुजुर्ग किसान का नहीं है, बल्कि लाखों किसान परिवारों का है. बच्चे, बुजुर्ग, महिलाएं बेघर हैं. सब कभी लोगों का पेट भरते थे, अब खुद खाने को नहीं बचा है. सिर पर छत नहीं है. 

महाराष्ट्र सरकार क्या कर रही

महाराष्ट्र सरकार ने बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में राहत उपाय शुरू किए हैं, जिनमें मृतकों के परिजनों को वित्तीय सहायता, फसलों और पशुधन के नुकसान के लिए मुआवजा तथा क्षतिग्रस्त मकानों के लिए भी सहायता शामिल है. सरकारी घोषणा के अनुसार, बाढ़ में मारे गए लोगों के परिवार को चार लाख रुपये की सहायता दी जाएगी. पशुधन नुकसान के मामले में मवेशियों के लिए भी मुआवजा निर्धारित किया गया है. बकरियों, भेड़ों या सूअरों के लिए प्रति जानवर 4,000 रुपये की राहत प्रदान की जाएगी. प्रति परिवार तीन बड़े पशुओं और 30 छोटे पशुओं तक मुआवजे की सीमा निर्धारित की गई है. मुर्गीपालकों के लिए प्रति मुर्गी 100 रुपये की सहायता दी जाएगी, जिसकी अधिकतम सीमा प्रति परिवार 10,000 रुपये रखी गई है.

घाव पर लगेगा मलहम 

जिन परिवारों के घर नष्ट हो गए हैं, उन्हें झोपड़ी के लिए 8,000 रुपये और पूरी तरह ढहे चुके पक्के घर के लिए 12,000 रुपये का मुआवजा मिलेगा. क्षतिग्रस्त पशुशालाओं के लिए 3,000 रुपये तक की सहायता प्रदान की जाएगी. सरकार ने उन किसानों के लिए भी राहत की घोषणा की है, जिनकी फसलें बाढ़ से खराब हो गईं. उन्हें वर्षा-आधारित फसलों के लिए प्रति हेक्टेयर 8,500 रुपये, सिंचित फसलों के लिए 17,000 रुपये और बारहमासी फसलों के लिए 22,500 रुपये मिलेंगे. जिन मामलों में बाढ़ में कृषि भूमि बर्बाद हो गई है, वहां पुनर्स्थापित होने योग्य भूमि के लिए 18,000 रुपये प्रति हेक्टेयर दिए जाएंगे. सरकार के अनुसार, इस महीने राज्य के 31 जिलों में लगातार बारिश हो रही है. अब तक 50 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि और फसलें प्रभावित हुई हैं. सरकार ने राज्य आपदा राहत कोष से 2,215 करोड़ रुपये जारी किए हैं और केंद्र से और वित्तीय सहायता की मांग की है. मगर, किसान का दर्द तो किसान ही जानता है. मुआवजा उनके घाव पर मलहम तो लगा सकता है पर शायद उनके दुखों को समाप्त नहीं कर सकता.

Featured Video Of The Day
Leh Ladakh Protest: कर्फ्यू लगने के बाद कैसे हैं लेह के हालात, देखें Ground Report