Odisha Train Accident: ओडिशा ट्रेन हादसे को रेल मंत्रालय के वॉर रूम ने कैसे किया हैंडल, जानें इनसाइड स्टोरी

Odisha Train Accident: रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव राजनीति में आने से पहले ओडिशा के बालासोर में कलेक्टर के तौर पर काम कर चुके हैं.

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दुर्घटनास्थल से बरामद 288 शवों में से 205 की पहचान कर ली गई है.
नई दिल्ली:

पिछले साल नवंबर में जर्मनी की राजधानी बर्लिन और हनोवर में दो मालगाड़ियों के बीच हुई टक्कर में रेलवे ट्रैक को 24 दिनों के बाद बहाल किया गया था. साइप्रस में दो ट्रेनों की आमने-सामने की टक्कर के बाद ट्रैक को बहाल करने में पांच हफ्ते लग गए थे. ओडिशा के बालासोर में शुक्रवार को हुए भीषण ट्रेन हादसे के बाद ट्रैक की मरम्मत और इसपर फिर से ट्रैफिक शुरू करना आसान नहीं था. भारत में ट्रेनों पर निर्भरता को देखते हुए इस काम में देरी की संभावना थी. यही वजह है कि रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बालासोर में ट्रेन त्रासदी के कुछ घंटों बाद ही ट्रैक की बहाली पर जोर दिया था. रेलवे की टीम ने ये काम बेहद दबाव में किया.

काम की लिस्ट
रेलवे ट्रैक की बहाली के लिए कई काम करने थे. इसकी एक लंबी लिस्ट थी. मसलन-
-कोचों को हटाना पड़ा.
-शवों को बोगियों से निकालकर उन्हें पोस्टमॉर्टम के लिए भेजा गया.
-लाशों को पटरियों के किनारे सफेद चादर से कवर करके रखना पड़ा.
-पटरियों को साफ किया गया. उनकी मरम्मत कराई गई.
-ओवरहेड केबल टूट गई थी, उसे ठीक किया जाना था.
-घायलों को कटक, भुवनेश्वर और कोलकाता के अस्पतालों में पहुंचाना पड़ा.
-जिन शवों पर दावा नहीं किया गया था, उने सुरक्षित रखने के लिए एंबामिंग की गई.
-ट्रेन सेवाओं को फिर से शुरू करने के लिए ट्रैक लाइन को बहाल करना पड़ा.
- जरूरी राहत और बचाव के साथ-साथ वीआईपी मूवमेंट यानी घटनास्थल पर नेताओं के दौरे को प्रबंधित करना पड़ा.
    

वॉर रूम
रेल मंत्रालय के वॉर रूम की निगरानी में लगभग 3000 लोगों ने 51 घंटे तक लगातार काम किया. ताकि समय पर ट्रैक को ठीक किया जा सके. शवों को हटाया जा सके. जहां एक्सीडेंट हुआ था, उस ट्रैक पर दोबारा ट्रेन चलाई जा सके. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, इस हादसे में 288 लोगों की जान चली गई. 1100 से ज्यादा लोग घायल हो गए. अब रेलवे के सामने सबसे बड़ी चुनौती है. वो ये है कि जिन लाशों की अभी शिनाख्त नहीं हो पाई है; उन्हें तब तक संरक्षित रखना जब तक कि कोई इनपर दावा न करे.

रेल मंत्रालय के दिल्ली वॉर रूम ने इन सभी कामों की मॉनिटरिंग की. इमरजेंसी स्टाफ ने शनिवार रात से 48 घंटे से अधिक समय ऐसे कामों में बिताया जिनका पैमाना व्यापक नहीं था, लेकिन इसमें सटीकता और संवेदनशीलता की बेहद दरकार थी.

रेल मंत्रालय के वॉर रूम में 50-70 लोगों की 8 टीमें थीं. इनमें से कम से कम तीन की निगरानी के लिए रेलवे बोर्ड के एक सदस्य के साथ एक डीआरएम या एक जीएम को 300-300 का प्रभार दिया गया था. दिल्ली के वॉर रूम में 5 कैमरों लगे थे, जो एक कम्यूनिकेशन सिस्टम बनाने के लिए था. ताकि यह पता चल सके कि किस टीम को साइट पर क्या चाहिए. साथ ही हर आठ घंटे के बाद मैन पावर और जरूरी चीजों का बैकअप सुनिश्चित भी किया जाना था.

रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष, डीजी स्वास्थ्य और एक वरिष्ठ अधिकारी को कटक के दो अस्पतालों और मुर्दाघर का प्रभार दिया गया था, जो त्रासदी के केंद्र में थे. 70 लोगों की स्पेशल टीम ने रेलवे ट्रैक और ओवरहेड बिजली के तारों की मरम्मत का काम किया, जो हादसे में टूट गए थे. वहीं एक टीम का काम सबसे गंभीर रूप से घायल 200 लोगों को कटक, भुवनेश्वर और कोलकाता के विशेष अस्पतालों में शिफ्ट करना था.

व्यक्तिगत अंदाज़
इत्तेफाक से रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव राजनीति में आने से पहले बालासोर के कलेक्टर के तौर पर सेवा दे चुके हैं. उन्होंने आपदा प्रबंधन में बड़े पैमाने पर काम किया है.     

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1999 में ओडिशा के सीएम नवीन पटनायक जब सुपर साइक्लोन के नुकसान से निपट रहे थे, तब उनके उपायों में अश्विनी वैष्णव की कोशिशें भी शामिल थी. इस सुपर साइक्लोन में लगभग 10,000 लोगों की जान गई. इसके बाद ही राज्य सरकार ने ओडिशा डिजास्टर रैपिड एक्शन फोर्स (ODRAF) तैयार की. ये देश में राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) से भी अपनी तरह की पहली एजेंसी थी. अधिकारियों के अनुसार, अश्विनी वैष्णव के काम को देखने वाले नवीन पटनायक के साथ उनके व्यक्तिगत समीकरण ने भी काम को तेजी से ट्रैक करने में मदद की.

रेलवे ट्रैक की बहाली
इन कोशिशों के कारण ही ओडिशा के बालासोर जिले के बहनगा बाजार स्टेशन में ट्रेन हादसे के दो दिन बाद ही ट्रैक को मरम्मत के बाद बहाल कर दिया गया. जहां तक ​​पटरियों की बहाली का सवाल है, रेल मंत्री इसे लेकर बिल्कुल डटे थे कि ट्रैक को जल्द से जल्द ठीक किया जाना चाहिए, ताकि जरूरी चीजों की सप्लाई और आवाजाही में दिक्कत न आए.

अश्विनी वैष्णव रेल हादसे के कुछ घंटे के अंदर ही स्पॉट पर पहुंच गए थे. इसके बाद वह लगातार तीन दिन तक रेस्क्यू ऑपरेशन और ट्रैक की बहाली के काम में लगे रहे. उन्होंने कहा कि सुरक्षा और संवेदनशीलता पर कोई समझौता नहीं किया जाना चाहिए. वहीं, पीएम नरेंद्र मोदी ने भी रेल दुर्घटना के कुछ घंटों के भीतर घटनास्थल का दौरा किया. पीएम मोदी दो दिनों के रेस्क्यू ऑपरेशन और ट्रैक की बहाली के दौरान रेल मंत्री और वरिष्ठ रेलवे अधिकारियों के संपर्क में थे.

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शवों की पहचान, लेप लगाना बड़ी चुनौती
रेल मंत्रालय के सामने अब सबसे बड़ी चुनौती बिना शिनाख्त हुए लाशों और शरीर के टुकड़ों को संरक्षित करने की है. दावा नहीं किए जाने तक इन शवों और कुछ लाशों के टुकड़ों को एंबामिंग के जरिए सुरक्षित रखा जाएगा. कुछ लाशों पर कई परिवारों ने दावा किया है. ऐसे में डीएनए जांच भी कराई जा रही है. इसके सैंपल लिए गए हैं. रिपोर्ट का इंतजार है.

केंद्र ने विशेष रूप से एम्स, लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज और राम मनोहर लोहिया अस्पताल से दिल्ली के डॉक्टरों की एक टीम को लाशों पर लेप लगाने (एंबामिंग) की प्रक्रिया में मदद करने के लिए ओडिशा भेजा है. कम से कम 200 शवों को रखने के लिए छह कंटेनर आकार के फ्रीजर को चैनलाइज किया गया है. जिन लाशों की अभी तक शिनाख्त नहीं हो पाई, ओडिशा सरकार ने उनकी पहचान के लिए सोमवार को 168 पन्नों का एक ऑनलाइन दस्तावेज़ जारी किया. इसमें मरने वालों की तस्वीरें और साथ ही अस्पतालों में इलाज करा रहे लोगों की लिस्ट भी थी.

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कोरोमंडल एक्सप्रेस में सफर कर रहे कई यात्रियों का रिजर्वेंशन नहीं था. इसलिए उनकी डिटेल निकालना मुश्किल है. ऐसे में  लाशों की पहचान के लिए रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव और दूरसंचार मंत्री ने नए उपाय तलाशने शुरू कर दिए हैं.

एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, "हमने लोगों की पहचान करने के लिए एआई डिवाइस, सिम कार्ड डिटेल्स, दूरसंचार मंत्रालय के कुछ डिवाइस और मुख्य रूप से सिम रिकॉर्ड का इस्तेमाल किया. शव सड़ रहे थे...आधार का इस्तेमाल करने के लिए उंगलियों के निशान स्पष्ट रूप से नहीं आ रहे थे...चेहरे की पहचान के विकल्प ने कुछ हद तक मदद की. हम 64 लाशों की शिनाख्त करने में कामयाब रहे. इससे हम वास्तव में 45 परिवारों तक पहुंचे और उन्हें यात्रा की सुविधा भी दी".

अधिकारी ने आगे बताया, "रेलवे ने पश्चिम बंगाल, झारखंड, छत्तीसगढ़ और बिहार में भी अपने अधिकारियों को शवों की पहचान के लिए परिवारों तक पहुंचने का निर्देश दिया है. केंद्र उनकी यात्रा की व्यवस्था कर रहा है. शवों को ले जाने के लिए एंबुलेंस की व्यवस्था की गई है. हमने उनसे कहा है कि अगर संभव हो तो फ्लाइट लें, इसका खर्चा सरकार उठाएगी."

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अधिकारियों ने कहा कि बचाव राहत का काम धीमा जरूर था, क्योंकि दुर्घटना के प्रभाव से ट्रेन के दो डिब्बे आपस में दब गए थे. कोरोमंडल एक्सप्रेस मालगाड़ी का सारा भार उठा रही थी. एक अधिकारी ने कहा, "यात्री कोचों में गहन तलाशी ली गई थी, ताकि कोई शव फंसा हुआ न रहे. कुछ लाशें कोच के टूटे हुए स्टील के पुर्जों में भी फंसे हो सकते हैं. इस तरह के हादसों में शरीर के टुकड़े ट्रेन के पार्ट में फंस जाते हैं, उन्हें अलग करना बेहद मुश्किल वाला काम है. इसलिए हमें न केवल मेडिकल प्रोफेशनल की जरूरत थी, बल्कि राज्यों से खुफिया मदद की भी जरूरत थी."

राज्यों ने काफी मदद की
हादसे का जायजा लेने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अलावा शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक भी घटनास्थल का दौरा कर चुके हैं.

यह केंद्र द्वारा समन्वित एक बहु-राज्य अभियान था. ट्रेन हादसे के कुछ घंटों के अंदर ओडिशा डिजास्टर रैपिड एक्शन फोर्स (ODRAF), ओडिशा फायर सर्विसेज और एनडीआरएफ के कर्मियों ने रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू कर दिया. पश्चिम बंगाल सरकार ने राहत कार्यों की निगरानी के लिए एक 24x7 कंट्रोल रूम स्थापित किया. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी बंगाल के मरीजों को आश्वस्त करने के लिए बालासोर और कटक का दौरा किया. उन्होंने अस्पतालों में डॉक्टरों और नर्सों को संकट के समय उनकी अनुकरणीय सेवा के लिए भी धन्यवाद दिया. हादसे में मारे गए ज्यादातर अज्ञात शव पश्चिम बंगाल के बताए जा रहे हैं. दो शीर्ष मंत्रियों, महिला एवं बाल विकास मंत्री डॉ. शशि पांजा और वित्त मंत्री चंद्रिमा भट्टाचार्य ने मंगलवार को भुवनेश्वर का दौरा किया. बंगाल सरकार के अधिकारी प्रक्रिया को यथासंभव सुचारू बनाने के लिए ओडिशा प्रशासन के साथ को-ऑपरेट करते देखे गए.

ओडिशा सरकार ने बालासोर ट्रेन हादसे के उन रोगियों के लिए फ्री ट्रांसपोर्ट की सुविधा दी है, जो अस्पताल से छुट्टी  लेकर घर लौट रहे हैं. तमिलनाडु सरकार ने फंसे हुए और घायल यात्रियों की वापसी सुनिश्चित करने की व्यवस्था की है. अधिकारियों के साथ मंत्रियों उदयनिधि स्टालिन और शिवशंकर सहित एक उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल को बचाव और राहत के काम की देखरेख के लिए बालासोर भेजा गया है.

आंध्र प्रदेश मॉडल की तारीफ
रेलवे अधिकारियों ने विशेष रूप से आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा अपने यात्रियों की पहचान करने के लिए अपनाए गए उपायों की तारीफ की. आंध्र सरकार के आईटी मंत्री जी अमरनाथ ने कहा कि राज्य ने दुर्घटना में घायल या मृत राज्य के लोगों की पहचान करने के लिए टेक्निकल डिवाइस और जमीनी समर्थन दोनों का इस्तेमाल किया गया.

आईटी मंत्री जी अमरनाथ ने कहा, "हमने सीएम जगन रेड्डी के साथ बैठक के तुरंत बाद एक समिति का गठन किया. इसमें तीन आईपीएस अधिकारी थे. हमें सबसे पहले यह जानने के लिए आरक्षण चार्ट मिला कि अगली सुबह तक यात्री कौन थे, और हमने 309 यात्रियों पर ध्यान दिया, जो कोरोमंडल पर सवार हुए थे. आंध्र प्रदेश से हावड़ा जाने के लिए 34 यात्री थे. इसलिए हमारे पास कुल 342 यात्रियों की एक सूची थी. हमने जिला प्रशासन से यात्रियों के परिवारों से संपर्क करने के लिए कहा. लगभग 58 लोगों की अभी तक पहचान नहीं हो पाई है."

उन्होंने कहा कि आंध्र प्रदेश सरकार ने घायल लोगों को अस्पतालों तक पहुंचाने में मदद के लिए यहां ओडिशा में 50 एंबुलेंस रखी हैं. जी अमरनाथ ने कहा, "हमने श्रीकाकुलम में राजस्व अधिकारियों और पुलिस को तैनात किया, जो कि ओडिशा और आंध्र प्रदेश की सीमा से लगा हुआ जिला है. यहां तेलुगू भाषी लोगों की मदद से हम हताहत और अन्य घायलों के बारे में सभी विवरण प्राप्त कर सकते हैं." 

आगे का रास्ता
रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव मंगलवार को बालासोर से दिल्ली लौट आए. इसके कुछ घंटों के भीतर उन्होंने रेल मंत्रालय में एक उच्च-स्तरीय बैठक की. इस मीटिंग में अधिकारियों से ट्रेनों में सुरक्षा प्रणालियों के अपग्रेडेशन को तेजी से ट्रैक करने पर बात हुई. ट्रैक मैनेजमेंट के बारे में चर्चा हुई. इस बीच सीबीआई ने ट्रेन हादसे की जांच शुरू कर दी है.

अधिकारियों ने कहा कि बालासोर में त्रासदी से उन्होंने जो सबक सीखा है, उससे उन्हें भविष्य में एसओपी निर्धारित करने और रेलवे से संबंधित किसी भी संकट से निपटने में मदद मिलेगी. अब तक, अधिकारियों ने कहा है कि दुर्घटनास्थल से बरामद 288 शवों में से 205 की पहचान कर ली गई है. उन्हें उनके परिवारों को सौंप दिया गया है.

(सौरभ गुप्ता के इनपुट्स के साथ)

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