उत्तर प्रदेश (UP) के लव जिहाद अध्यादेश (Love Jihad Ordinance) पर अब कई वरिष्ठ अधिकारियों और पूर्व जजों ने जवाबी पत्र लिखा है. कुछ दिनों पहले आए पूर्व आईएएस और आईपीएस अधिकारियों के खुले पत्र का जवाब दिया गया है. उन्होंने पत्र में कहा है कि इन लोगों ने लोकतांत्रिक ढंग से चुने गए व्यक्तियों और उनके पद पर हल्की टिप्पणी की. उन्होंने यह भी कहा है कि यह ग्रुप राजनीति से प्रेरित है.
वरिष्ठ अधिकारियों और पूर्व जजों ने पत्र में लिखा है कि यूपी के मुख्यमंत्री को संविधान दोबारा सीखने की सलाह देना गैरजिम्मेदाराना बयान है जो कि लोकतांत्रिक संस्थानों का अपमान करता है. ऐसा पहली बार नहीं है जब इस ग्रुप ने संसद, चुनाव आयोग, यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट की छवि को धक्का पहुंचाने का काम न किया हो.
उन्होंने कहा है कि यूपी का अध्यादेश सभी धर्मों के लोगों पर लागू होता है. यह सही प्रावधान है कि अगर धर्मांतरण के उद्देश्य से विवाह किया गया हो तो इसे पारिवारिक न्यायालय या किसी एक पक्ष की याचिका पर खारिज किया जा सकता है. यह अध्यादेश महिला के सम्मान की रक्षा करता है. केवल एक घटना के आधार पर टिप्पणी करना गलत है. ऐसे कई मामले हैं जहां पीड़ित महिला की अंतरधर्म विवाह में हत्या कर दी गई.
उन्होंने लिखा है कि 104 पूर्व अधिकारियों को ऐसी टिप्पणियों से बचना चाहिए था. इस कानून के संदर्भ में गंगा-जमुनी तहजीब का गलत ढंग से जिक्र किया गया. यह तहजीब कला, संस्कृति, भाषा आदि के सह अस्तित्व की अवधारणा पर है न कि आपराधिक इरादे से गैर कानूनी ढंग से किए गए धर्म परिवर्तन पर जिसमें कि महिलाओं की प्रताड़ना, शोषण, छल और हत्या तक होती हो.
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अधिकारियों ने लिखा है कि हम सेक्यूलर भारत को मानते हैं जहां सभी धर्मों के लोग साथ रहें और गैरकानूनी धर्मपरिवर्तन को सांप्रदायिक सौहार्द के लिए खतरा मानें. पत्र में पूर्व जजों, पूर्व आईएएस, आईपीएस, आईएफएस अधिकारियों के दस्तखत हैं.