जबलपुर: मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि शादी नहीं निभाना और शारीरिक संबंध से इनकार करना मानसिक क्रूरता है और यह तलाक का वैध आधार है. न्यायमूर्ति शील नागू और न्यायमूर्ति विनय सराफ की खंडपीठ ने तीन जनवरी को एक व्यक्ति के तलाक को इस आधार पर मंजूर कर लिया कि वर्ष 2006 में विवाद के बाद से उसकी पत्नी ने शादी निभाने और शारीरिक संबंध बनाने से इनकार कर दिया था.
उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा, ‘‘शादी नहीं निभाना और शारीरिक संबंध से इनकार करना मानसिक क्रूरता के समान है.'' पति की ओर से याचिका के अनुसार उसने जुलाई 2006 में शादी की थी. हालांकि, उनकी पत्नी ने यह कहकर साथ रहने और शादी निभाने से इनकार कर दिया कि उसे विवाह के लिए मजबूर किया गया था.
महिला ने पति से कथित तौर पर कहा कि वह किसी और से प्यार करती है. उसने पति से उसके प्रेमी से मिलाने का अनुरोध भी किया. याचिकाकर्ता ने कहा कि वह उसी महीने काम के लिए अमेरिका चला गया. सितंबर में उसकी पत्नी अपने मायके चली गई और फिर कभी नहीं लौटी.
पति ने वर्ष 2011 में तलाक के लिए भोपाल की एक पारिवारिक अदालत के समक्ष एक आवेदन दायर किया, लेकिन वर्ष 2014 में अदालत ने इसे खारिज कर दिया. इसके बाद उन्होंने उच्च न्यायालय का रुख किया.
उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि कई मौकों पर महिला ने शादी को जारी रखने और पति के साथ शारीरिक संबंध बनाने से इनकार कर दिया. पीठ ने कहा, ‘‘हम समझते हैं कि बिना किसी शारीरिक अक्षमता या वैध कारण के लंबे समय तक शारीरिक संबंध बनाने से एकतरफा इनकार करना मानसिक क्रूरता हो सकता है.''
उच्च न्यायालय ने पारिवारिक अदालत के आदेश को गलत ठहराते हुए उसे रद्द कर दिया. उच्च न्यायालय ने कहा, ‘‘याचिकाकर्ता ने शादी संपन्न की. यह पहले से ही तय था कि वह जल्द ही भारत छोड़ देगा. इस अवधि के दौरान याचिकाकर्ता को उम्मीद कि थी पत्नी शादी निभाने के लिए तैयार हो जाएगा, लेकिन उसने ऐसा करने से इनकार कर दिया और निश्चित रूप से उसका यह कृत्य मानसिक क्रूरता के बराबर है.''