ट्रेन यात्रा के दौरान अब यात्रियों को मिलेंगे हरित बेड-रोल बैग, जानिए क्‍या होगा लाभ

15 अगस्त को पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे ने अपनी सभी ट्रेनों में यात्रियों को लिनेन के पारंपरिक बैगों की जगह पर पर्यावरण-अनुकूल हरे बेड-रोल बैग दिए. ऐसे करीब 40 हजार बैग 25 ट्रेनों में वितरित किए गए. 

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  • भारतीय रेलवे ने ट्रेनों में पर्यावरण के अनुकूल हरे बेड रोल बैगों को प्रदान करना शुरू किया है.
  • पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे ने असम, पश्चिम बंगाल, बिहार, त्रिपुरा और अरुणाचल की 25 ट्रेनों में 40 हजार बैग बांटे.
  • आईआईटी गुवाहाटी के प्रोफेसर विमल कटियार के नेतृत्व में विकसित ये बैग बायोप्लास्टिक से बने हैं.
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गुवाहटी:

भारतीय रेलवे ने सुरक्षित पर्यावरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है. इसके तहत अब ट्रेनों में यात्रियों को लिनेन के पारंपरिक बैगों की जगह पर अब पर्यावरण के अनुकूल हरे बैग में बेड रोल दिए जा रहे हैं. ये बैग ज्यादा साफ–सुथरे, आकर्षक और यात्रियों को बेहतर अनुभव देंगे. फिलहाल इसकी शुरूआत पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे (NFR) जोन में की गई. 15 अगस्त को पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे ने अपनी सभी ट्रेनों में यात्रियों को लिनेन के पारंपरिक बैगों की जगह पर पर्यावरण-अनुकूल हरे बेड-रोल बैग में दिए.

ऐसे करीब 40 हजार बैग असम, पश्चिम बंगाल, बिहार, त्रिपुरा और अरुणाचल प्रदेश के टर्मिनलों से चलने वाली 25 ट्रेनों में वितरित किए गए. 

यात्रियों ने पहल को सराहा 

पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे की पहल को यात्रियों ने भी सराहा है. सुनंदा नाम की महिला यात्री ने कहा, " यह बहुत अच्छा इनोवेशन है और पर्यावरण के लिए भी सुरक्षित है, जिस तरीके से आईआईटी के छात्रों ने इसको बनाया है, वह बताता है कि हमारा देश कितनी सही दिशा में आगे जा रहा है."

एक अन्य यात्री ने कहा, " प्लास्टिक का कम से कम प्रयोग करने की जरूरत है और इसीलिए सरकार की पहल को सराहा जाना चाहिए. नया बैग ना सिर्फ देखने में आकर्षक है बल्कि हाइजीन के लिहाज से भी बेहतर है."

आईआईटी गुवाहाटी के छात्रों ने बनाया बैग

प्रोफेसर विमल कटियार के नेतृत्व में आईआईटी गुवाहाटी के आंतरिक अनुसंधान एवं विकास केंद्र में इन बैगों को विकसित किया गया है. यह आईएसओ 17088 अनुरूप बायोप्लास्टिक कम समय में कम्पोस्ट में विघटित हो जाता है. एनएफआर के महाप्रबंधक चेतन कुमार श्रीवास्तव ने कहा, " मैं आईआईटी गुवाहाटी को बधाई देना चाहता हूं. हम पारंपरिक प्लास्टिक के स्थान पर बायोडिग्रेडेबल और कम्पोस्टेबल सामग्री को अपनाने की दिशा में काम कर रहें हैं. यह बैग पर्यावरण अनुकूल समाधानों को बढ़ावा देता है और प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने में भी मदद करता है.  यह पहल कार्बन फुटप्रिंट घटाने और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण में योगदान देगी."

आत्मनिर्भर भारत की दिशा में रेलवे ने बढ़ाए कदम 

पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी (NFR CPRO) कपिंजल किशोर शर्मा ने कहा, "ये यूनिक पहल है और ऐसा पहली बार हो रहा है. फिलहाल हमने बायो डिग्रेडेबल बैग का इस्तेमाल अपनी ट्रेनों में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर शुरू किया है. हमारी कोशिश है कि रेलवे में नॉन फूड आइटम्स में जहां-जहां प्लास्टिक का प्रयोग हो रहा है उसे खत्म करें." उन्होंने कहा कि यह कदम आत्मनिर्भर विकसित भारत के लिए टिकाऊ चीजों के इस्तेमाल की दिशा में एक महत्वपूर्ण शुरुआत है. इससे लोकल टैलेंट को बढ़ावा मिलने के साथ ही पर्यावरण को भी लाभ होगा.

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आईआईटी गुवाहाटी के प्रोफेसर विमल कटियार ने कहा,  "आजकल बाजार में जो पारंपरिक पैकेजिंग बैग मिलते हैं, वे पॉलीइथिलीन (PE) से बने होते हैं. ये बहुत लंबे समय तक खराब नहीं होते और इन्हें गलने में सैकड़ों साल लग जाते हैं. इसी वजह से ये पर्यावरण के लिए नुकसानदायक हैं. इसका एक बेहतर विकल्प है – बायोडिग्रेडेबल बैग, जो पॉलिलैक्टिक एसिड (PLA) और स्टार्च आधारित पॉलीब्यूटिलीन एडिपेट-को-टेरेफ्थेलेट (PBAT) से बनाए जाते हैं." 

PLA लैक्टिक एसिड से बनता है, जो गन्ने की खोई, मक्का जैसी प्राकृतिक चीजों से मिलता है. लैक्टिक एसिड हमारे शरीर में भी स्वाभाविक रूप से बनता है.

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बायोडिग्रेडेबल बैग का क्या लाभ?

प्रोफेसर कटियार ने बताया कि इन नए बैगों का कार्बन फुटप्रिंट कम होता है, यानी ये प्रदूषण कम फैलाते हैं. इनमें एस्टर लिंकेज नाम की विशेषता होती है, जिससे इन्हें अलग-अलग तरह के उत्पाद बनाने में इस्तेमाल किया जा सकता है, जैसे लचीले उत्पाद: बैग, रैप्स, खेती और पैकेजिंग की फिल्में और कठोर उत्पाद: बोतलें, कप और खाने की पैकेजिंग (जहां पारदर्शिता ज़रूरी हो).

उन्होंने कहा, "दोनों पॉलिमर (PLA और PBAT) को मिलाने से इन बैगों में लचीलापन और मजबूती आती है. इसके अलावा, इन बैगों में जल वाष्प और ऑक्सीजन रोधक गुण बेहतर होते हैं. इनमें एंटीमाइक्रोबियल गुण होते हैं, जो इन्हें ज्यादा स्वच्छ और सुरक्षित बनाते हैं. ये बैग इस्तेमाल के बाद आसानी से खाद (कम्पोस्ट) में बदल जाते हैं."

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प्रोफेसर कटियार ने बताया कि आईआईटी गुवाहाटी के सेंटर ऑफ सस्टेनेबल पॉलिमर (CoE-SuSPol) में इन बैगों को बनाने, गुणवत्ता जांच करने, बड़े स्तर पर तैयार करने, उनका विघटन और उपयोग पर काफी शोध किया गया है.

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