काठमांडू: नेपाल और भारत के सीमा विवाद को दोनों देशों के बीच ‘‘एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा'' बनाने के बजाय इसे ‘‘बातचीत के माध्यम से सौहार्दपूर्ण तरीके'' से हल किया जा सकता है क्योंकि दोनों देश साझी संस्कृति में एक साथ बंधे हुए हैं. नेपाल के विदेश मंत्री एन.पी. सऊद ने शनिवार को यह बात कही. सऊद शुक्रवार को मनाए गए भारत के 75वें गणतंत्र दिवस के अवसर पर यहां नेपाल-भारत मैत्री सोसायटी द्वारा आयोजित एक संवाद कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित कर रहे थे.
नेपाल को नयी दिल्ली के लिए एक महत्वपूर्ण देश माना जाता है क्योंकि यह पांच भारतीय राज्यों - सिक्किम, पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के साथ 1,850 किलोमीटर से अधिक की सीमा साझा करता है.
काठमांडू द्वारा 2020 में एक नया राजनीतिक मानचित्र प्रकाशित करने के बाद दोनों देशों के बीच संबंधों में तनाव आ गया था. इस मानचित्र में तीन भारतीय क्षेत्रों - लिम्पियाधुरा, कालापानी और लिपुलेख - को नेपाल के हिस्से के रूप में दिखाया गया था. भारत ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए इसे ‘‘एकतरफा कृत्य'' बताया और काठमांडू को आगाह किया कि क्षेत्रीय दावों का ऐसा ‘‘कृत्रिम विस्तार'' उसे स्वीकार्य नहीं होगा.
सऊद ने कहा, ‘‘चूंकि, नेपाल और भारत के बीच 1,800 किलोमीटर से अधिक लंबी मुक्त सीमा है, इसलिए दोनों पड़ोसियों के बीच सीमा से संबंधित कुछ विवाद और बहस अपरिहार्य है. लेकिन, दोनों देशों की संयुक्त तकनीकी समिति ने अधिकांश विवादों को सुलझा लिया है.'' उन्होंने कहा, ‘‘सुस्ता और कालापानी-लिपुलेख ही दो सीमा बिंदु हैं, जिन्हें हल करने की जरूरत है.'' विदेश मंत्री ने कहा, ‘‘दोनों देश एक साथ बैठकर बातचीत के जरिए मतभेदों को सौहार्दपूर्ण तरीके से सुलझा सकते हैं.''
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