आसमां के पार निकला अपना NISAR, 12 दिनों में पूरी धरती की नब्‍ज चेक करके भेजेगा एक्‍सरे

निसार यानी नासा इसरो सिंथेटिक अर्पाचर रडार अब से कुछ देर में लॉन्‍च हो जाएगा. आंध्र प्रदेश से इस सैटेलाइट की लॉन्चिंग भारत के सैटेलाइट सेक्‍टर के लिए बहुत ही महत्‍वपूर्ण है.

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  • निसार सैटेलाइट को अमेरिका और भारत ने मिलकर बनाया है, जो हर 12 दिन में पूरी पृथ्वी की माप करेगा.
  • इस सैटेलाइट का वजन करीब 2,393 किलोग्राम है और इसे श्रीहरिकोटा से जीएसएलवी-एफ16 रॉकेट पर लॉन्च किया गया.
  • निसार का मिशन सूर्य-समकालिक कक्षा से पृथ्वी के वनों, ग्लेशियर्स, और भौगोलिक बदलावों का अध्ययन करना है.
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नई दिल्‍ली:

निसार यानी नासा इसरो सिंथेटिक अर्पाचर रडार बुधवार 30 जुलाई को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से लॉन्‍च हो गया. स्‍कूली बच्‍चों की मौजूदगी में लॉन्‍च हुआ निसार कई मायनों में महत्‍वपूर्ण है. ऐसे समय में जब धरती क्‍लाइमेट चेंज से गुजर रही है तो निसार कई तरह की जानकारियां मुहैया कराएगा. निसार हर 12 दिन में पूरी धरती को मापेगा और डाटा वैज्ञानिकों को भेजेगा. इस लो ऑर्बिट सैटेलाइट को अमेरिका और भारत ने मिलकर तैयार किया है. कई दशकों तक चली कोशिशों के बाद यह सैटेलाइट अब हकीकत बन गया है. निसार को ग्‍लोबल यूनिट और वैज्ञानिक श्रेष्‍ठता  का जीता-जागता प्रतीक करार दिया जा रहा है. इस सैटेलाइट का मकसद sun-synchronous orbit यानी सूर्य-समकालिक कक्षा से पूरी पृथ्वी की स्‍टडी करना है. निसार की लॉन्चिंग अंतरिक्ष के साथ ही भारत और अमेरिका के रिश्‍तों के लिए भी काफी महत्‍वपूर्ण मानी जा रही है. 

कैसे 12 दिन में पृथ्‍वी को मापेगा निसार 

सफल लॉन्चिंग के बाद निसार सैटेलाइट कम से कम तीन सालों तक पृथ्वी के चक्‍कर लगाएगा. साथ ही अपने एडवांस्‍ड रडार सिस्‍टम का प्रयोग करके पृथ्वी की लगभग पूरी भूमि और बर्फीली सतहों का हर 12 दिनों में दो बार स्कैन करेगा. नासा और इसरो मिलकर  इस अंतरिक्ष यान को ऑपरेट करेंगे. साथ ही अमेरिका और भारत दोनों के लिए हाई प्रयॉरिटी वाले विज्ञान को साथ ले आएंगे. 

एक साथ काम करते समय, सैटेलाइट के दोनों रडार समय और स्थान के साथ सिक्रोनाइज्‍ड डेटा इकट्ठा करेंगे. इससे सतह पर कई आकारों की वस्तुओं के प्रति माप की संवेदनशीलता बढ़ जाएगी. उदाहरण के लिए, एस-बैंड डेटा झाड़ियों और झाड़ियों जैसे छोटे पौधों का ज्‍यादा सटीक रूप से पता लगाने में सक्षम होगा. जबकि एल-बैंड डेटा पेड़ों जैसी लंबी वनस्पतियों का पता लगाएगा.

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यह अंतरिक्ष यान सूर्य-सिंक्रोनॉय ऑर्बिट में संचालित होगा. इसके रडार एक ऐसे कंफिगरेशन में होंगे जो अंटार्कटिका का अभूतपूर्व कवरेज भी प्रदान करेगा. यह अंटार्कटिक बर्फ की चादर की स्‍पीड, डिफॉर्मेशन, और पिघलने की स्‍टडी करने के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह टूटकर समुद्र में ताजा पानी जमा करती है. 

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1.5 अरब डॉलर का खर्च 

निसार के लॉन्‍च का काउंटडाउन 29 जुलाई को दोपहर 2 बजकर 10 मिनट पर शुरू हो गया था. इसरो के आधिकारिक बयान के अनुसार मिशन को लॉन्चिंग फेज,  डेप्‍लॉयमेंट फेज, कमीशनिंग फेज और साइंस फेज में क्‍लासीफाइड किया जाएगा. करीब 2,393 किलोग्राम वजन और लगभग 5 साल की उम्र के साथ, निसार को 51.7 मीटर लंबे, तीन चरण वाले, जीएसएलवी-एफ 16 रॉकेट पर बुधवार को शाम 5.40 बजे आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्‍पेस पोर्ट से लॉन्‍च किया जाएगा. लॉन्चिंग के बाद के पहले 90 दिन सैटेलाइट के कमीशनिंग के लिए होंगे ऑब्‍जर्वेटरी को बाकी वैज्ञानिक कार्यों के लिए तैयार किया जा सके. इस सैटेलाइट पर 1.5 अरब डॉलर खर्च होंगे. 

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हिमालय से लेकर अंटार्कटिका की स्‍टडी 

निसार को एक ऐसा सैटेलाइट करार दिया जा रहा है जो पृथ्‍वी की स्‍टडी करने के अलावा कई  तरह की अहम जानकारियां भी मुहैया कराएगा. इस सैटेलाइट का मुख्‍य मकसद धरती पर मौजूद वनों की स्थिति, पहाड़ों का अपनी जगह से खिसकना, हिमालय और अंटार्कटिका, नॉर्थ और साउथ पोल में ग्लेशियर्स पर पड़ने वाले मौसमों के बदलावों का अध्‍यन करना है. जहां नासा ने इसमें  साइंस डेटा के लिए हाई स्‍पीड कम्‍युनिकेशन सब-सिस्‍टम और जीपीएस रिसीवर मुहैया कराए हैं तो वहीं इसरो ने स्‍पेस क्राफ्ट, एस-बैंड रडार और लॉन्चिंग व्‍हीकल, जीएसएलवी-एफ16 प्रदान किया है. 

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मिलेगा 3डी व्‍यू 

निसार सैटेलाइट पृथ्वी पर भूमि और बर्फ का 3डी व्‍यू मुहैया कराएगा. साथ ही इससे भूकंप और लैंडस्‍लाइड प्रो जोन पर भी नजर रखी जा सकेगी. निसार की मदद से यह पता लग पाएगा कि धरती पर ग्लेशियर और बर्फ की चादरें कितनी तेजी से बदल रही हैं. निसार से मिला डेटा प्राकृतिक और मानवजनित खतरों के बारे में सरकारों को बता सकेगा. इस वजह से फैसला लेने में और सही नीति तैयार करने में भी मदद मिल पाएगी. भारत जो एक कृषि प्रधान देश है, वहां पर लकड़ी या फिर वुडी बायोमास और इसमें हो रहे बदलाव के बारे में भी जानकारी मिल पाएगी. इससे सक्रिय फसलों के विस्तार में क्‍या बदलाव हो रहे हैं और वेटलैंड्स के विस्‍तार के बारे में भी पता लगेगा. 

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