यमन में निमिषा की फांसी टली... जानिए आखिरी वक्‍त पर भारत सरकार और सूफी लीडर के प्रयासों की इनसाइड स्‍टोरी

भारत सरकार ने भी अपनी तरफ से हरसंभव प्रयास किए, लेकिन यमन की जटिल और अस्थिर स्थिति के कारण ज़्यादा कुछ कर पाना मुश्किल लग रहा था. ऐसे में, 94 वर्षीय सूफी विद्वान कंथापुरम एपी अबूबकर मुसलियार ने मोर्चा संभाला.

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  • यमन में भारतीय मूल की नर्स निमिषा प्रिया को 16 जुलाई को फांसी की सजा सुनाई गई है, जिसके खिलाफ अंतिम प्रयास किए जा रहे हैं.
  • सूफी नेता कंथापुरम एपी अबूबकर मुसलियार की पहल पर यमनी नागरिक तलाल अब्दो महदी के परिवार से बातचीत शुरू हुई है.
  • निमिषा प्रिया पर 2017 में तलाल अब्दो महदी की हत्या का आरोप लगा था, जिस केस में यमन की अदालत ने 2020 में फांसी दी थी.
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कोझिकोड:

यमन में कैद भारतीय मूल की नर्स निमिषा प्रिया, जिस वक्‍त फांसी के फंदे से थोड़ी ही दूर थी, इसी बीच सूफी नेता की पहल ने एक बार फिर जिंदगी की उम्‍मीद जगा दी है. निमिषा को 16 जुलाई को फांसी होनी थी. घड़ी की सुइयां तेजी से भाग रही हैं और हर बीतता पल उम्मीदों को और भी ज्‍यादा कसौटी पर कस रहा था. ऐसे मोड़ पर, जब सारी उम्मीदें धूमिल होती दिख रही थीं, सुन्नी मुस्लिम नेता कंथापुरम एपी अबूबकर मुसलियार ने एक नई आस जगाई. फिलहाल खबर है कि 16 जुलाई को होने वाली फांसी टल गई है. 

इससे पहले फांसी को रुकवाने के लिए सूफी विद्वान की अगुवाई में प्रयास किए जा रहे थे. समाचार एजेंसी पीटीआई ने सूत्रों के हवाले से, प्रमुख विद्वान और सूफी नेता शेख हबीब उमर बिन हाफिज के प्रतिनिधियों और यमनी नागरिक तलाल अब्दो महदी के परिवार के बीच मंगलवार को धमार में होने वाली बैठक के बारे में बताया.  

इस पहल को सिर्फ निमिषा प्रिया की जिंदगी बचाने का प्रयास नहीं, बल्कि दो देशों और दो संस्कृतियों के बीच एक मानवीय पुल बनाने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है.   

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एक दुखद अतीत, एक भयानक फैसला

कहानी शुरू होती है 2017 से, जब निमिषा प्रिया पर अपने यमनी व्यापारिक साझेदार तलाल अब्दो महदी की हत्या का आरोप लगा. यह घटना यमन में हुई थी और कानूनी प्रक्रिया के बाद 2020 में उसे फांसी की सजा सुनाई गई. उसकी अंतिम अपील भी 2023 में खारिज हो चुकी थी. पलक्कड़, केरल की ये नर्स अब यमन की राजधानी सना की एक जेल में बंद है और उसका परिवार, हर पल-हर सांस उसकी रिहाई की दुआ कर रहा है.

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मुसलियार का अभूतपूर्व हस्तक्षेप

भारत सरकार ने भी अपनी तरफ से हरसंभव प्रयास किए, लेकिन यमन की जटिल और अस्थिर स्थिति के कारण ज़्यादा कुछ कर पाना मुश्किल लग रहा था. सुप्रीम कोर्ट को केंद्र सरकार ने सोमवार को बताया था कि वे 'हरसंभव कोशिश' कर रहे हैं, लेकिन यमन की ज़मीनी हकीकत चुनौतियों से भरी है.

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ऐसे में, 94 वर्षीय सूफी विद्वान कंथापुरम एपी अबूबकर मुसलियार ने मोर्चा संभाला. उनकी पहल पर, एक और प्रमुख सूफी नेता, शेख हबीब उमर बिन हाफिज के प्रतिनिधियों ने महदी के परिवार से संपर्क साधा. ये अपने आप में एक बड़ी सफलता थी, क्योंकि तलाल की हत्या केवल उसके परिवार के लिए ही नहीं, बल्कि धमार क्षेत्र के कबाइलियों और निवासियों के लिए भी एक बेहद संवेदनशील और भावनात्मक मुद्दा था और अब तक कोई भी परिवार से सीधे बात नहीं कर पाया था. मुसलियार के गहरे आध्यात्मिक प्रभाव के कारण ही यह पहली बार संभव हो पाया.

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निर्णायक बैठक और आखिरी उम्मीद

मंगलवार को यमन के स्थानीय समयानुसार सुबह 10 बजे, धमार में महदी के परिवार और शेख हबीब उमर बिन हाफिज के प्रतिनिधियों के बीच एक महत्वपूर्ण बैठक हुई. सूत्रों के अनुसार, तलाल का एक करीबी रिश्तेदार, जो हुदैदा स्टेट कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश और यमन की शूरा काउंसिल का सदस्य भी है, इस बैठक में शामिल हुआ. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वह शेख हबीब उमर के सूफी संप्रदाय का अनुयायी है, जिससे परिवार को मनाने की उम्मीदें बढ़ गई हैं.

इस बैठक का मुख्य उद्देश्य मुआवजा स्वीकार करने के संबंध में अंतिम निर्णय तक पहुंचना था. दूसरी ओर मुसलियार ने यमन के अधिकारियों से 16 जुलाई को होने वाली फांसी को अस्थायी रूप से स्थगित करने का भी अनुरोध किया था. इन कोशिशों ने निमिषा और उसके परिवार की उम्‍मीदें बढ़ा दी हैं. 

भारत सरकार के प्रयासों का भी असर 

विदेश मंत्रालय के सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, भारत सरकार (GoI) इस मामले में शुरुआत से ही हरसंभव मदद कर रही थी. हाल के दिनों में, भारत सरकार ने निमिषा प्रिया के परिवार को दूसरी पार्टी (मृतक के परिवार) के साथ कोई आपसी सहमति वाला समाधान निकालने के लिए और समय दिलाने के लिए खास प्रयास किए थे. इस मामले की संवेदनशीलता के बावजूद, भारतीय अधिकारी लगातार स्थानीय जेल अधिकारियों और अभियोजक कार्यालय के संपर्क में थे. इस बीच निमिषा प्रिया की फांसी को फिलहाल टाल दिया गया है.

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