जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं. राज्य में शांति का वातावरण बनाने में उप राज्यपाल मनोज सिन्हा का अहम रोल रहा है. जम्मू कश्मीर के लोगों में लोकसभा चुनाव में जैसा उत्साह देखने को मिला क्या वैसा उत्साह विधानसभा चुनाव में भी देखने को मिलेगा? NDTV ने जम्मू कश्मीर के उप राज्यपाल मनोज सिन्हा से विभिन्न मुद्दों पर बातचीत की.
पार्लियामेंट के चुनाव में जम्मू कश्मीर का औसत वोटिंग प्रतिशत 58.4 था. अगर मैं कश्मीर वैली की बात करूं तो यहां 50.6 था. तो मोटे तौर पर मैं कह सकता हूं कि देश के बाकी हिस्सों में जिस तरह से लोगों ने उत्साह के साथ लोकतंत्र के पर्व में हिस्सा लिया, उसी तरह से जम्मू कश्मीर में भी यहां के आम मतदाता ने भाग लिया. जम्मू कश्मीर के लिए यह उपलब्धि के तौर पर देखा जाता है, क्योंकि 35 वर्षों में इतना मतदान नहीं हुआ था. अब उसके अर्थ क्या निकलते हैं? पहला कि लोकतंत्र की जड़ें यहां भी गहरी हैं और यहां की आवाम ने लोकतंत्र और लोकतांत्रिक मूल्यों में आस्था व्यक्त की है.
उन्होंने कहा कि, स्वाभाविक है कि इसके कारण कई रहे हैं पिछले चार-पांच वर्षों में... जो यहां शांति हुई है, प्रगति हुई है, विकास हुआ है, समृद्धि हुई है. एक हमारा पड़ोसी जो लगातार गुमराह करता था यहां के लोगों को.. मुझे लगता है कि अब यहां के लोगों को यह विश्वास हो गया है कि हमारा भविष्य भारत के साथ है, उस देश के साथ नहीं हो सकता जो अपने नागरिकों को न्यूनतम नागरिक सुविधाएं भी नहीं दे पा रहा है. तो मैं मानता हूं कि यह अच्छी उपलब्धि है. युवा हो, महिला हो, किसान हो, बुजुर्ग हो सबने बढ़चढ़कर हिस्सा लिया. विधानसभा के चुनाव में मैं जो अनुमान कर रहा हूं, जो मैं देख रहा हूं, उससे ज्यादा भागीदारी लोगों की दिख रही है. मुझे पूरा यकीन है कि असेंबली चुनाव में वोटिंग परसेंट लोकसभा चुनाव से ज्यादा होगा.
देश में किसी को चुनाव लड़ने से नहीं रोका जा सकता
चुनाव में जमात ए इस्लामी की भागेदारी दिख रही है. वह निर्दलीय उम्मीदवारों का समर्थन कर रहे हैं, खुले तौर पर प्रचार कर रहे हैं. उनकी 1987 के बाद पहली रैली भी दिख रही है. यह वही लोग हैं जो हुर्रियत के साथ चुनाव का बहिष्कार करते थे. जमात के इस चुनाव में शामिल होने को आप कैसे देखते हैं? इस सवाल पर मनोज सिन्हा ने कहा कि, केवल जमात नहीं है, कई इस तरह के तत्व हैं जो चुनाव के मैदान में हैं.. जो पहले चुनाव के बहिष्कार का नारा देते थे. पाकिस्तान जो कॉल देता था उसके साथ जुड़े हुए थे.. ऐसे बहुत सारे लोग हैं. मेरी उसमें रुचि नहीं है. मुझे लगता है कि बात हमें ये समझनी चाहिए कि हमारा देश संविधान और कानून से चलता है. भारत का निर्वाचन आयोग एक संवैधानिक संस्था है. लोकसभा चुनाव में भी कुछ लोग इस तरह के चुनकर आए जिस पर चर्चा देश में हुई. मुझे लगता है कि जम्मू कश्मीर में भी इस तरह के अनेक उम्मीदवार हैं. मुझे ऐसा लगता है कि इस पर एक सर्वसहमति देश की राजनीतिक पार्टियों को बनानी चाहिए. देश की संसद में इस पर बहस होनी चाहिए. और अगर ऐसे तत्वों को रोकना है तो एक सर्वानुमति से कानून बनाना चाहिए भारत निर्वाचन आयोग को सबकी सहमति के आधार पर.. जब तक इस तरह का कोई कानून नहीं बनता है, मुझे लगता है कि इस देश में किसी को चुनाव लड़ने से नहीं रोका जा सकता है. जो शर्तें हैं उनके अनुसार ही चुनाव हो सकता है.
जम्मू कश्मीर में चुनाव को लेकर भ्रांतियां रहीं
इस बार 44 प्रतिशत उम्मीदवार निर्दलीय हैं. निर्दलीय इतने ज्यादा क्यों हैं? सवाल पर उप राज्यपाल सिन्हा ने कहा कि, उसको दो तरह से आप देख सकती हैं. सैद्धांतिक रूप से हम बात करें तो स्वस्थ लोकतंत्र यह है कि चार-पांच राजनीतिक पार्टी नेशनल लेवल और स्टेट लेवल पर होनी चाहिए...लेकिन जम्मू कश्मीर के परिप्रेक्ष्य में देखेंगी तो यहां चुनाव को लेकर भ्रांतियां रही हैं. जब यहां पहला चुनाव हुआ विधानसभा का, तो एक उस समय एक पार्टी की सभी 75 असेंबली सीटें थीं. तब लद्दाख जम्मू कश्मीर का हिस्सा था. तो एक पार्टी के 30 लोग निर्विरोध जीत गए. उस समय यहां चर्चा होती थी कि दो तरह के एमएलए हैं.. एक जनता के चुने हुए एमएलए हैं और एक कलेक्टर साहब के एमएएलए हैं. तो यहां के लोगों ने कभी स्वतंत्र, निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव देखा ही नहीं था. पहली बार 1977 में मोरारजी भाई जब प्रधानमंत्री बने तो जो चुनाव हुआ तब यहां के लोगों ने स्वच्छ मतदान देखा. यहां लोगों की धारणा है कि अगर पहले निष्पक्ष चुनाव हुए होते तो शायद इस दिशा में जम्मू कश्मीर न जाता.
उन्होंने कहा कि गुरेज एक असेंबली सीट है. सन 1996 में 2700 से थोड़ी ज्यादा वोट पाकर एक आदमी एमएलए होता है और वह 700 वोट से जीतता है. तो ये कम मतदान को अगर आप एक दृष्टि से देखें तो वह भी एक तरह से धांधली का हिस्सा था.
जम्मू कश्मीर के लोग भी नए सपने देख रहे
मनोज सिन्हा ने कहा कि, ज्यादा उम्मीदवार होने के कई कारण हैं. एक तो अब यहां के लोगों की और खास तौर से युवाओं और महिलाओं की आकांक्षाएं भी देश के बाकी हिस्से के युवाओं और महिलाओं की आकांक्षाओं से मेल खाने लगी हैं. यहां के लोग भी नए सपने देख रहे हैं. तीन स्तरीय पंचायती राज व्यवस्था यहां लागू हुई, डीडीसी के चुनाव हुए.. पहली बार हुए, आजादी के बाद, तो 73-74 परसेंट से ज्यादा लोगों ने मतदान किया. उससे एक नई आकांक्षा आई और हम लोगों ने भी कोशिश की कि फंड, फंक्शन और फंक्शनरी ये तीनों चुने हुए प्रतिनिधियों को दिए जाएं तो डिस्ट्रिक्ट एपेक्स का जो बजट होता है, वह भी चुने हुए प्रतिनिधि यह डिसाइड करने लगे. तो एक नई आकांक्षा का जन्म हुआ है, लोकतंत्र में लोगों का विश्वास बढ़ा है और जम्मू कश्मीर के विकास में इन 32 हजार चुने हुए प्रतिनिधियों का बड़ा रोल रहा है. तो मुझे लगता है कि इसके कारण निर्दलीय उम्मीदवार भी अपना भाग्य आजमा रहे हैं. उन चुनाव में जो लोग जीतकर आए थे वे सोच रहे हैं कि हम वहां जीते तो हो सकता है कि विधानसभा में भी जीतें.
चार-पांच वर्षों में की गईं 42 हजार नियुक्तियां
हमेशा कहा जाता रहा कि दिल्ली और श्रीनगर की आकांक्षाएं मेल नहीं खाती हैं. यह पहले एक नरेटिव उन लोगों का था जो नौकरी, रोजगार, शिक्षा की चर्चा कर रहे थे. एक नजरिया है राजनीतिक दलों का, जो कहते हैं कि जो केंद्र सरकार बताती है कि कितना रोजगार सृजन हुआ है, वह सही नहीं है? इस सवाल पर उप राज्यपाल ने कहा कि, रोजगार पूरे देश में एक चुनौती है. युवा को रोजगार चाहिए और देश में ही नहीं दुनिया भर में विकसित देशों के सामने भी एक चुनौती आई है कि कैसे लोगों को रोजगार दिया जाए. जहां तक जम्मू कश्मीर का सवाल है तो रोजगार किस तरह के होते हैं, एक सरकारी नौकरी और दूसरा सरकारी नौकरी नहीं तो बाकी कैसे रोजगार मिलेगा. यहां चार लाख 80 हजार सरकारी पद हैं. जो रिक्तियां थीं पिछले चार-पांच वर्षों में, हमने 42 हजार नियुक्तियां की हैं सरकारी, क्लास 3, क्लास 4 की. और बाकी प्रशासनिक सेवा या पुलिस सेवा के अफसर भी नियुक्त किए हैं.
इंडस्ट्री लगाने के लिए सबसे अधिक इंसेंटिव जम्मू कश्मीर में
उन्होंने कहा कि, मैं बहुत जोर देकर यह बात कहना चाहता हूं, जम्मू कश्मीर और देश को बताना चाहता हूं कि 42 हजार नियुक्तियों में से एक नियुक्ति पर भी कोई ऊंगली नहीं उठा सकता है. जिसकी मेरिट थी वही सिलेक्ट हुआ है. पारदर्शिता के अलावा कोई दूसरा काम नहीं है. एक समय था जब यहां पर्चियों पर सिफारिश पर नौकरी मिलती थी.. वो जमाना लद गया. तो जो रिक्तियां बनती जा रही हैं उनको हम भरते जा रहे हैं, दूसरा कैसे लोगों को रोजगार से जोड़ा जाए.. जम्मू कश्मीर में क्या-क्या सेक्टर हो सकते हैं रोजगार के.. आपने भी इंडस्ट्री का जिक्र किया. जहां इंडस्ट्रियलाइजेशन हुआ है, स्वाभाविक रूप से रोजगार बढ़ा है. आजादी के बाद 1947 से 2021 तक कुल 14 हजार करोड़ का इनवेस्टमेंट प्राइवेट सेक्टर में आया है. न्यू इंडस्ट्रियल स्कीम भारत सरकार के सहयोग से माननीय प्रधानमंत्री जी ने यहां के लिए स्वीकृत की और मैं चुनौती के साथ ये बात कह रहा हूं कि देश के किसी राज्य में इतना इंसेंटिव इंडस्ट्री लगाने के लिए नहीं है जितना जम्मू कश्मीर में है.