पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के कई नेताओं से अच्छे संबंध थे लेकिन उन्होंने सतर्कतापूर्ण संगठन से व्यक्तिगत दूरी रखी. एक नयी किताब में यह दावा किया गया है. ‘हाउ प्राइम मिनिस्टर्स डिसाइड' नामक किताब के मुताबिक संघ नेताओं ने मदद के लिए इंदिरा गांधी से संपर्क किया और पूर्व प्रधानमंत्री ने अपने उद्देश्यों के लिए इन संबंधों का इस्तेमाल किया.
पत्रकार नीरजा चौधरी ने यह किताब लिखी है और उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्रियों के काम करने के तरीके का विश्लेषण उनके ऐतिहासिक महत्व के छह फैसलों के आधार पर किया है. इन छह निर्णयों में इंदिरा गांधी की आपातकाल के बाद 1980 में सत्ता में वापसी की रणनीति, शाह बानो मामला, मंडल आयोग, बाबरी मस्जिद की घटना, अटल बिहारी वाजपेयी की परमाणु परीक्षण की अनुमति और मनमोहन सिंह के कार्यकाल में भारत-अमेरिका परमाणु समझौता शामिल है.
किताब में दावा किया गया है कि आरएसएस ने पूरे आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी के साथ मित्रवत संबंध रखा. चौधरी लिखती हैं, ‘‘ आरएसएस प्रमुख बालासाहेब देवरस ने कई बार उन्हें पत्र लिखा. कुछ आरएसएस नेताओं ने कपिल मोहन के जरिये संजय गांधी से संपर्क किया. अब 1977 में उन्हें यह देखना है कि कैसे प्रतिक्रिया करनी है लेकिन उन्हें बहुत सतर्क होकर काम करना होगा.''
चौधरी ने किताब में कहा, ‘‘ जिस तरह से आरएसएस नेता मदद के लिये उनसे संपर्क में थे, उन्होंने भी अपने हित के लिए आरएसएस का इस्तेमाल किया लेकिन सतर्कतापूर्वक संगठन से दूरी बनाए रखी. आरएसएस के विरोध के बावजूद आपातकाल में वह उसका समर्थन पाने में सफल रहीं.'' उन्होंने लिखा कि कांग्रेस के प्रति मुसलमानों की नाखुशी का अहसास होने पर वह अपनी राजनीति का ‘हिंदूकरण' करना चाहती थीं और जानती थी कि आरएसएस का मौन समर्थन या यहां तक उसका तटस्थ रूख भी इसमें सहायक होगा.
लेखिका के मुताबिक उनकी किताब सत्ता और उच्चस्थ पदों पर बैठे लोगों द्वारा इसके इस्तेमाल को लेकर है. अध्यायों में यह दर्शाया गया है कि बहुमत वाली सरकारों में प्रधानमंत्री कैसे शक्ति का इस्तेमाल करते थे और गठबंधन वाली सरकार में उनका रुख कैसा होता था. किताब में दावा किया गया है कि 1980 में अटल बिहारी वाजपेयी अपनी छवि को धर्मनिरपेक्ष बनाने की कोशिश कर रहे थे जबकि इंदिरा गांधी कांग्रेस का चेहरा ‘हिंदूवादी' पार्टी के तौर पर पेश करने की कोशिश कर रही थीं.
किताब में इंदिरा गांधी के करीबी अनिल बाली के हवाले से कहा गया, ‘‘ आरएसएस ने 1980 में इंदिरा गांधी की सत्ता में वापसी में मदद की.'' बाली ने दावा किया, ‘‘ वह जानती थीं कि आरएसएस ने उनका समर्थन किया है लेकिन उन्होंने सार्वजनिक रूप से इसे कभी स्वीकार नहीं किया, वह निजी तौर पर स्वीकार करती थीं कि अगर आरएसएस ने समर्थन नहीं किया होता तो वह 353 सीट (लोकसभा में) नहीं जीत सकती थीं जो 1971 से एक सीट अधिक थी.''
उन्होंने कहा कि ‘मंदिर बार-बार जाने” पर आरएसएस नेतृत्व ने भी संज्ञान लिया. बाली से हवाले से चौधरी ने किताब में लिखा, ‘‘आरएसएस प्रमुख बालासाहेब देवरस ने एक बार एक चर्चा में टिप्पणी की थी कि ‘इंदिरा गांधी बहुत बड़ी हिंदू हैं.' बालासाहेब देवरस और उनके भाई इंदिरा गांधी को हिंदुओं के संभावित नेता के तौर पर देखते थे.''इस किताब को एलेफ बुक कंपनी प्रकाशित कर रही है और जल्द ही इसका विमोचन किया जाएगा. किताब के मुताबिक आरएसएस ने 1971 में बांग्लादेश बनाने और पाकिस्तान को कमजोर करने के लिए इंदिरा गांधी की प्रशंसा की थी.
किताब के मुताबिक, ‘‘ तत्कालीन आरएसएस प्रमुख महादेव सदाशिव गोलवलकर जिन्हें गुरुजी के नाम से जाना जाता हैं ने उन्हें लिखे पत्र में कहा था, ‘इस उपलब्धि के श्रेय का बड़ा हिस्सा आपको जाता है'. इंदिरा ने 1974 में एक बार फिर आरएसएस की प्रशंसा परमाणु विस्फोट कर प्राप्त की क्योंकि संगठन हमेशा से ही भारत को मजबूत सैन्य ताकत बनाने का पक्षधर रहा है.''
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