लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election 2024) को लेकर एनडीटीवी नेटवर्क का खास कार्यक्रम 'NDTV इलेक्शन कार्निवल' (NDTV Election Carnival) दिल्ली, हरिद्वार और मेरठ होते हुए मैनपुरी पहुंचा. मैनपुरी के लोगों ने कहा कि पहले रोजगार के लिए हम बैंक के पास जाते थे. हमें अपना जमीन और सोना बंधक रखना पड़ता था. पीएम मोदी की सरकार में करोड़ों युवाओं को मुद्रा योजना से लाभ मिला. वहीं कुछ लोगों ने स्वास्थ्य और शिक्षा की खराब स्थिति को लेकर सवाल उठाए. महिलाओं ने कहा कि पीएम मोदी के शासन में महिला सुरक्षित महसूस कर रही हैं. पहले ऐसे हालत नहीं थे.
2019 के चुनाव में मुलायम सिंह यादव को लोकसभा सीट में मौजूद कुल मतदाताओं में से 30.46 प्रतिशत का समर्थन प्राप्त हुआ था, जबकि इस सीट पर डाले गए वोटों में से 53.66 प्रतिशत उन्हें दिए गए थे. लोकसभा चुनाव 2019 के दौरान इस सीट पर BJP प्रत्याशी प्रेम सिंह शाक्य दूसरे स्थान पर रहे थे, जिन्हें 430537 वोट मिले थे, जो संसदीय सीट के कुल मतदाताओं में से 24.98 प्रतिशत का समर्थन था, और उन्हें कुल डाले गए वोटों में से 44.01 प्रतिशत वोट मिले थे. इस सीट पर आम चुनाव 2019 में जीत का अंतर 94389 रहा था.
2014 के चुनाव में भी हारी भाजपा
मैनपुरी लोकसभा सीट पर वर्ष 2014 में हुए आम चुनाव के दौरान 1653058 मतदाता दर्ज थे. उस चुनाव में SP पार्टी के प्रत्याशी मुलायम सिंह यादव ने कुल 595918 वोट हासिल कर जीत दर्ज की थी. उन्हें लोकसभा क्षेत्र के कुल मतदाताओं में से 36.05 प्रतिशत ने समर्थन दिया था, और उन्हें उस चुनाव में डाले गए वोटों में से 59.63 प्रतिशत वोट मिले थे. उधर, दूसरे स्थान पर रहे थे BJP पार्टी के उम्मीदवार शत्रुघ्न सिंह चौहान , जिन्हें 231252 मतदाताओं का समर्थन हासिल हो सका था, जो लोकसभा सीट के कुल वोटरों का 13.99 प्रतिशत था और कुल वोटों का 23.14 प्रतिशत रहा था. लोकसभा चुनाव 2014 में इस संसदीय सीट पर जीत का अंतर 364666 रहा था.
मुलायम के न रहने से सपा को दिक्कत
मैनपुरी सीट पर साल 1996 से समाजवादी पार्टी लगातार जीत रही है. जाहिर है इस सीट पर समाजवादी पार्टी को हराना भाजपा के लिए टेढ़ी खीर है लेकिन अब मुलायम सिंह यादव नहीं रहे. 2024 के लोकसभा चुनाव में डिंपल यादव को उम्मीदवार बनाया गया है. बीजेपी की तरफ से इस बार जयवीर सिंह ठाकुर को उम्मीदवार बनाया है. ठाकुर राज्य सरकार में मंत्री भी हैं. ऐसे में समाजवादी पार्टी को अपने गढ़ को बचाए रखने के लिए मशक्कत तो करनी ही पड़ेगी. साथ ही समाजवादी पार्टी राज्य की सत्ता में भी नहीं हैं. ऐसे में वोटरों में एक फिक्र यह भी दिखी कि सत्ताधारी दल को हराकर क्षेत्र का विकास कैसे होगा?