NDTV Battleground: बंगाल में लोकसभा चुनाव का पूरा खेल 22 सीटों पर अटका

बैटलग्राउंड एट एनडीटीवी में डेटा साइंटिस्ट पॉलिटिकल एनालिस्ट अमिताभ तिवारी ने कहा कि पिछले लोकसभा चुनाव में बंगाल की 22 सीटों पर बहुत कम मतों से हार-जीत हुई थी.

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डेटा साइंटिस्ट पॉलिटिकल एनालिस्ट अमिताभ तिवारी ने कहा कि बंगाल में कुछ सीटों पर बहुत करीबी मुकाबला होता है.

नई दिल्ली:

Lok Sabha Elections 2024: पश्चिम बंगाल में 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी (BJP) और तृणमूल कांग्रेस (TMC) के बीच बहुत करीबी मुकाबला हुआ था. करीब 22 सीटें हैं जिनमें जीत का अंतर 10 प्रतिशत से कम वोटों का था, यानी कि करीब एक लाख वोटों से कम का अंतर था. इन 22 में से बीजेपी 11 सीटों पर जीती थी और 11 पर टीएमसी जीती थी. बंगाल में यह बड़ा चुनावी खेल है जिसका फैसला इन 22 सीटों पर अटका हुआ है. डेटा साइंटिस्ट पॉलिटिकल एनालिस्ट अमिताभ तिवारी ने बैटलग्राउंड एट एनडीटीवी (battleground at NDTV) में एनडीटीवी के एडिटर इन चीफ संजय पुगलिया के एक सवाल के जवाब में यह बात कही. 

किन-किन फैक्टर को लेकर पश्चिम बंगाल पर लोगों का नजरें टिकी हैं?  इस सवाल पर अमिताभ तिवारी ने कहा कि, ''पिछली बार नरेंद्र मोदी और बीजेपी को यह लगा था कि नॉर्थ में नुकसान हो सकता है तो सबसे ज्यादा रैलियां यूपी के बाद बंगाल और ओडिशा में हुई थीं. 15 सीटों का फायदा बंगाल में और आठ सीटों का फायदा ओडिशा में मिला. अब इस बार अगर 400 पार का नारा है तो यहां से लगभग 30 सीटें जीतना बहुत जरूरी है.'' 

अमिताभ तिवारी ने कहा कि, ''अब देखना पड़ेगा कि पिछली बार काफी क्लोज कॉन्टेस्ट थे. लगभग 22 सीटें हैं जहां पर 10 प्रतिशत से कम मार्जिन था, यानी कि लगभग एक लाख से कम अंतर था. 11 में भाजपा जीती थी और 11 में टीएमसी जीती थी. तो यहां पर कहीं ना कहीं यह जो पूरा खेल है इसका फैसला इन 22 सीटों पर अटका हुआ है.'' 

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बंगाली अस्मिता एक बहुत बड़ा मुद्दा

उन्होंने कहा कि, ''लीडरशिप एक बहुत बड़ा फैक्टर है. प्रधानमंत्री मोदी को राहुल गांधी के खिलाफ दूसरे राज्यों में एक एडवांटेज मिलता है.. यहां पर क्योंकि ममता बनर्जी एक बहुत स्ट्रांग लीडर हैं, वो एडवांटेज कहीं ना कहीं न्यूट्रलाइज होता है. तो फिर बच जाता है आपका संगठन और लोकल कैंडिडेट पर फोकस आ जाता है. बंगाली अस्मिता, बंगाली प्राइड एक बहुत बड़ा इशू है. 1971 के बाद कभी भी कोई राष्ट्रीय पार्टी यहां पर ज्यादा सीटें नहीं जीत पाई है... और एक भीतरी बनाम बाहरी, ये एक जो नारा है, ममता बनर्जी का, वह भी कहीं ना कहीं चलता है.'' 

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भीतरी बनाम बाहरी के मुद्दे पर वरिष्ठ पत्रकार और पूर्व सांसद स्वपन दासगुप्ता ने कहा कि, ''लोकल फेस कितना चाहिए या नहीं चाहिए, यह नतीजे ही बतलाएंगे लेकिन यह बात साफ है कि यह एक राष्ट्रीय चुनाव है. ममता बनर्जी की कोशिश जितना संभव हो इसे लोकल बनाने की है, उनकी यही रणनीति है. अगर लोकलाइज्ड हो जाए तो उनका उनका ही फायदा होगा. उनका जमीनी संगठन है, काउंसलर्स हैं, पंचायत है.. बीजेपी को चाहिए एकदम ऊपर राष्ट्रीय, इंटरनेशनल स्ट्रांग लीडरशिप, अर्थव्यवस्था... बीजेपी में एक-दो मूर्ख हैं जो चाहते हैं कि एकदम लोकलाइज कर दें. यह दो अलग-अलग तरह के दृष्टिकोण हैं.'' 

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स्टॉक मार्केट का क्या अनुमान?

स्टॉक मार्केट क्या रीड कर रहा है? इस सवाल पर सोशल एक्टिविस्ट और स्टॉक मार्केट वाचर मुदार पाथेरिया ने कहा कि, ''स्टॉक मार्केट ने फैक्टर पहले ही कर लिया है कि नरेंद्र मोदी की अगले टर्म के लिए वापसी हो रही है. तो ये तो निष्कर्ष निकाल लिया है. मैं यह भी कहता हूं कि अगर मोदी जीत गए और भाजपा जीत गई तो  स्टॉक मार्केट के रिएक्शन पर सरप्राइज न हों, यानी कि यह थोड़ा नीचे भी गिर सकता है क्योंकि यह तो आलरेडी फैक्टर है. इसमें अब कोई रहस्यमयी घटना नहीं है. अब तो यह इशू है कि 300 पार, 350 पार या 400 पार.. गेम उसका है.'' 

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