बीजेपी ने महिला आदिवासी नेता द्रौपदी मुर्मू को एनडीए की ओर से राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित किया है. झारखंड की पूर्व गवर्नर द्रौपदी मुर्मू का जीवन बेहद सादगी भरा रहा है और दूसरों की मदद के लिए वो हमेशा तैयार रहती हैं, फिर वो चाहे कितनी ही ऊंचे पद पर क्यों नहीं रही हों. ऐसा ही कुछ कोरोनाकाल में देखने को मिला, झारखंड के गवर्नर रहने के दौरान द्रौपदी मुर्मू के स्टॉफ के कई लोग संक्रमित हो गए. लेकिन उन्होंने अपने ज्यादातर स्टॉफ को संकट की घड़ी में छुट्टी दे दी और यहां तक कि वो अपना भोजन भी खुद बनाया करती थीं. एक गवर्नर के लिए ऐसी बात मिसाल कायम करती है. आलीशान राजभवन में भी वो सिर्फ तीन कमरों का ही इस्तेमाल करती थीं. द्रौपदी मुर्मू के सभी राजनीतिक दलों के नेताओं के साथ अच्छे संबंध रहे हैं. राज्यपाल के तौर पर उनके कार्यकाल के दौरान कोई विवाद भी सामने नहीं आया.
द्रौपदी मुर्मू का जन्म 20 जून 1958 को ओडिशा के मयूरगंज जिले के बैदपोसी गांव में हुआ. उनके पिता का नाम बिरांची नारायण टुडु है. वो आदिवासी जातीय समूह, संथाल से ताल्लुक रखती हैं. द्रौपदी का बचपन गरीबी और मुश्किलों के बीच बीता. ऐसे हालात में द्रौपदी ओडिशा के सिंचाई और बिजली विभाग में 1979 से 1983 तक जूनियर असिस्टेंट के तौर पर काम कर चुकी हैं. वर्ष 1994 से 1997 तक उन्होंने रायरंगपुर के श्री अरबिंदो इंटीग्रल एजुकेशन सेंटर में ऑनरेरी असिस्टेंट टीचर के तौर पर बिना वेतन बच्चों को पढ़ाया.
मुर्म 2000 और 2004 में बीजेपी के टिकट पर रायरंगपुर (Rairangpur) सीट से विधायक निर्वाचित हुई थीं. वो बीजेपी एसटी मोर्चा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में भी रह चुकी हैं. वर्ष 2007 में द्रौपदी को ओडिशा विधानसभा के सर्वोत्तम विधायक ऑफ द ईयर पुरस्कार से नवाजा गया था.
ओडिशा में बीजेडी और बीजेपी गठबंधन सरकार में वो मंत्री रह चुकी हैं. उन्होंने मार्च 2000 से कई 2004 तक राज्य के वाणिज्य और परिवहन था और मत्स्य और पशु संसाधन विकास विभाग के मंत्री का पद संभाला. द्रौपदी मुर्म झारखंड की ऐसी पहली राज्यपाल थीं, जिन्होंने वर्ष 2000 में इस राज्य के गठन के बाद पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा किया. उन्होंने वर्ष 2015 से 2021 तक झारखंड के गवर्नर का पद संभाला.