जानें दिल्ली के रामलीला मैदान में मुगलकालीन रामलीला के विवादों और संघर्षों का इतिहास

श्री रामलीला कमेटी के महासचिव राजेश खन्ना तीसरी पीढ़ी के रूप में इस रामलीला से जुड़े हुए हैं. राजेश खन्ना ने बताया कि "जब अंग्रेज भारत छोड़ कर चले गए और देश का विभाजन हो गया और उस दौरान  हिंदू मुस्लिम विवाद के चलते 1948 में इस रामलीला का आयोजन रोक दिया गया.

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आज से लगभग 220 वर्षों पूर्व दिल्ली में मुगल फौज के हिंदू सैनिक मिलकर रामलीला का मंचन किया करते थे.
नई दिल्ली:

नवरात्रि के मौके पर दिल्ली में आयोजित रामलीलाओं ने दिल्ली को राममय कर दिया है. दिल्ली की रामलीलाओं का इतिहास बहुत पुराना है. दिल्ली के ऐतिहासिक रामलीला मैदान में आयोजित रामलीला बहादुर शाह के जमाने से चली आ रही है. इसको मुगलकालीन रामलीला के नाम से भी जाना जाता है. आज से लगभग 220 वर्षों पूर्व दिल्ली में मुगल फौज के हिंदू सैनिक मिलकर रामलीला का मंचन किया करते थे. भारत की आजादी के बाद इस रामलीला के आयोजन के लिए श्री धार्मिक रामलीला कमेटी गठित की गई .

श्री रामलीला कमेटी के महासचिव राजेश खन्ना तीसरी पीढ़ी के रूप में इस रामलीला से जुड़े हुए हैं. राजेश खन्ना ने बताया कि "जब अंग्रेज भारत छोड़ कर चले गए और देश का विभाजन हो गया और उस दौरान  हिंदू मुस्लिम विवाद के चलते 1948 में इस रामलीला का आयोजन रोक दिया गया. उस वक्त की तत्कालीन सरकार में प्रधान मंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू थे और गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल थे . उन्होंने इस मामले में मीटिंग बुलाई और श्री रामलीला कमेटी के अधिकारियों को रामलीला का आयोजन करने का आदेश दिया और अपनी तरफ से पूरी पुलिस और सेना द्वारा सुरक्षा देने की बात कही. 

इसके पीछे सरकार की डिप्लोमेटिक नीति थी, यदि इस रामलीला के न होने के कारण हिंदू मुस्लिम विवाद सामने आता तो भारत की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर छवि खराब होती और आजाद भारत में बनी नई सरकार की योग्यता पर भी सवाल खड़े होते.

राजेश खन्ना ने बताया कि "इस रामलीला के साथ कई बड़े विवाद जुड़े हैं.  1986 में भी इस रामलीला की झांकियों के रूट को लेकर पुलिस और पब्लिक में बड़ा विवाद हुआ जिसमें पुलिस को आंसू गैस और हवाई फायरिंग करनी पड़ी. उस वक्त की DCP किरण बेदी हुआ करती थी . सैंकड़ों वर्षों से जिस पुरानी दिल्ली के मार्गों से रामलीला की झांकियां निकलती थी उस रूट को पुलिस ने बदल दिया जिसको लेकर लोगों में गुस्सा भड़क गया था और लोग झांकी के रथों के आगे सड़क पर लेट गए. उनको हटाने के लिए पुलिस ने बल प्रयोग किया और बहुत से लोगों को हिरासत में लेकर जेल भेज दिया.

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कमेटी के लोगों ने उस वक्त के दिल्ली पुलिस कमिश्नर अरुण भगत से इस मामले को सुलझाने के लिए गुहार लगाई थी. बाद में प्रधान मंत्री राजीव गांधी को इस विवाद का पता चला. राजीव गांधी उस वक्त जर्मनी के दौरे पर गए हुए थे.  राजीव गांधी ने खुद हस्तक्षेप करते हुए तत्कालीन गृहमंत्री बूटा सिंह को इस विवाद को सुलझाकर रामलीला के आयोजन को जारी करवाने का दिया. इसके बाद गृह मंत्री बूटा सिंह और INB मिनिस्टर और कांग्रेस अध्यक्ष एच के एल भगत ने कई दिनों से रुके रामलीला के आयोजन को शुरू करवाया.

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श्री रामलीला कमेटी को उसी पुराने मार्ग पर झांकियों को निकालने की इजाजत मिल गई थी. तभी से आज भी उसी पुराने मार्ग से रामलीला की झांकियां आती और जाती है. 

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इस रामलीला के चेयरमैन अजय अग्रवाल ने NDTV को जानकारी देते हुए बताया कि "दिल्ली के रामलीला मैदान में होने वाली श्री रामलीला कमेटी की झांकियां पूरे रामलीला आयोजन के दौरान चांदनी चौक साइकिल मार्किट से चलकर पुरानी दिल्ली के बाजारों से निकलती हुई रामलीला मैदान में पहुंचती है और रात रामलीला मंचन के बाद को वापिस शान शौकत के साथ चांदनी चौक पहुंचती है. इस दौरान सड़कों के दोनो तरफ हजारों लोग देर रात  भगवान राम की झांकी का दर्शन करने के लिए खड़े होते हैं.

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