Explainer: मोदी 3.0 के निर्णायक फैसलों की दास्तां, कहीं बदला वक्त तो कहीं दिखे मजबूत हौसले

सरकार बनने के बाद पहली कैबिनेट में ही किसानों के लिए बड़े ऐलान किए गए. फिर UPSC के जरिए लैटरल एंट्री को सरकार ने एग्जिट गेट दिखाया. उसके बाद वक्फ की जमीन मामले पर JPC बना दी, ताकि विवाद का निपटारा हो. केंद्रीय कर्मचारियों को पेंशन में राहत दी. अब मंगलवार को सरकार ने वो किया, जो रेलवे के 119 के इतिहास में कभी नहीं हुआ.

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नई दिल्ली:

मोदी सरकार (Modi Government) के तीसरे कार्यकाल को अभी ढाई महीने हुए हैं. इस दौरान सरकार ने ऐसे 5 बड़े फैसले लिए, जिसे मील का पत्थर माना जा रहा है. केंद्र सरकार के इन फैसलों से नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) की अगुवाई में NDA सरकार की एक अलग छवि सामने आई है. सरकार बनने के बाद पहली कैबिनेट में ही किसानों के लिए बड़े ऐलान किए गए. फिर UPSC के जरिए लैटरल एंट्री को सरकार ने एग्जिट गेट दिखाया. उसके बाद वक्फ की जमीन मामले पर JPC बना दी, ताकि विवाद का निपटारा हो. केंद्रीय कर्मचारियों को पेंशन में राहत दी. अब मंगलवार को सरकार ने वो किया, जो रेलवे के 119 के इतिहास में कभी नहीं हुआ. सरकार ने एक दलित अधिकारी को रेलवे का बॉस बना दिया है. सतीश कुमार रेलवे बोर्ड के चेयरमैन बनाए गए हैं.

सरकार के इन फैसले का असर ना सिर्फ राजनीतिक तौर पर होगा, बल्कि इसका सामाजिक तौर पर भी बड़ा असर दिखेगा. आइए जानते हैं हाल में मोदी सरकार ने ऐसे कौन-कौन से फैसले लिए, जिससे वक्त बदला और सरकार की एक मजबूत इमेज सामने उभरकर आई:-

सतीश कुमार की नियुक्ति से राहुल गांधी को दिया जवाब
दरअसल, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने मोदी सरकार पर बार-बार आरोप लगाया है कि सरकार दलितों को ब्यूरोक्रेसी में बड़े पदों पर पहुंचने नहीं देती है. अब मोदी सरकार के सारे नहलों पर एक दहला मारा है. रेलवे बोर्ड के 119 साल के इतिहास में ये पहला मौका है कि किसी दलित अधिकारी को इस बोर्ड का नेतृत्व करने का मौका मिलने जा रहा है. सतीश कुमार रेलवे बोर्ड के चेयरमैन और CEO बनाए गए हैं. वो जया वर्मा सिन्हा की जगह लेंगे. 

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कौन हैं सतीश कुमार?
सतीश कुमार भारतीय रेलवे मैकेनिकल इंजीनियर्स सेवा यानी IRMS के अधिकारी हैं. 1986 बैच के अधिकारी सतीश कुमार मौजूदा चेयरमैन जया वर्मा सिन्हा की जगह लेंगे. अभी वो रेलवे बोर्ड के सदस्य थे, जिसके तहत उन्हें ट्रैक्शन एंड रोलिंग स्टॉक का काम मिला हुआ था. इससे पहले सतीश कुमार उत्तर मध्य रेलवे प्रयागराज (North Central Railway) में GM के रूप में काम कर चुके हैं. रेलवे में सतीश कुमार ने फॉग सेफ डिवाइस पर अच्छा काम किया है. ये एक ऐसा इनोवेशन है, जो कोहरे की स्थिति के दौरान सुरक्षित ट्रेन ऑपरेशन सुनिश्चित करने में सहायक साबित हुआ है.

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सरकार का ये फैसला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उस प्रतिबद्धता को दिखाता है, जिसमें उन्होंने पहले सवा 100 दिन में ही उन्होंने बहुत आमूल-चूल बदलाव की बात की थी.

SC/CT रिजर्वेशन पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर लिया स्टैंड
दलितों के हितों का सवाल संविधान के हिसाब से सबको बराबरी दिलाने का सवाल है. ये सवाल कुछ दिनों पहले तब उठा था, जब सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को मिलने वाले आरक्षण में क्रीमी लेयर तय करने का सुझाव दिया था. यानी शीर्ष अदालत ने कोटा में कोटा की बात की. इसका खूब विरोध हुआ. दलित संगठनों ने भारत बंद किया. रैलियां और विरोध प्रदर्शन भी हुए. इन प्रदर्शनों को कई राजनीतिक दलों ने समर्थन दिया था. विरोधी दल ही नहीं, बल्कि सरकार का समर्थन करने वाले चिराग पासवान भी सुप्रीम कोर्ट के सुझाव के खिलाफ थे.

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हालांकि, काफी पहले ही मोदी सरकार ने सबसे बड़ी अदालत का सुझाव नामंजूर कर दिया था. मोदी सरकार ने SC/ST आरक्षण में क्रीमी लेयर का सुझाव नकार दिया था. लेकिन विरोध बढ़ने पर सरकार का स्टैंड बदल गया.
9 अगस्त को कैबिनेट की बैठक में फैसला लिया गया था कि SC/ST आरक्षण की व्यवस्था पहले की तरह ही चलती रहेगी.ऐसा इसलिए होगा कि संविधान में SC/ST आरक्षण में क्रीमी लेयर का प्रावधान नहीं है.

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सरकार की तरफ से केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा, "सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण के विषय पर एक जजमेंट दिया है. इस जजमेंट में सुप्रीम कोर्ट ने SC/CT के रिजर्वेशन के विषय में कुछ सुझाव दिया है. मोदी कैबिनेट में इस विषय में विस्तृत चर्चा हुई. NDA सरकार बाबासाहेब के बनाए संविधान के प्रावधानों के प्रति प्रतिबद्ध है. बाबा साहेब अंबेडकर जी के संविधान के अनुसार, SC और ST के रिजर्वेशन में क्रीमी लेयर का कोई प्रावधान नहीं है.

बता दें कि मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में ही 20 मार्च 2018 को SC-ST एक्ट के हो रहे दुरूपयोग के मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट ने शिकायत पर स्वत: FIR और गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी. लेकिन सरकार को सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला मंजूर नहीं था. इसीलिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश को पलटने के लिए संसद में कानून में संशोधन किया गया था.

OPS की काट के तौर पर ले आई UPS
ओल्ड पेंशन स्कीम यानी OPS मोदी सरकार पर चलाने के लिए विरोधियों के तरकश में एक और तीर था. विधानसभा चुनाव हो या लोकसभा चुनाव, हर बार विपक्ष ने इस मुद्दे को ज़ोर शोर से उठाया. पिछले दिनों मोदी सरकार ने OPS की काट के तौर पर UPS यानी यूनिफाइड पेंशन स्कीम को लॉन्च कर दिया. UPS सभी सरकारी कर्मचारियों को न्यूनतम पेंशन की गारंटी देती है.

वाजपेयी सरकार ने बदल दी थी ओल्ड पेंशन स्कीम
ओल्ड पेंशन स्कीम को वाजपेयी सरकार ने अपने आखिरी दिनों में बदल दिया था. उसकी जगह नेशनल पेंशन स्कीम (NPS) आई थी. वो स्कीम सरकारी के साथ ग़ैर-सरकारी कर्मचारियों के लिए भी एक विकल्प बनी. यानी निजी नौकरियां करने वाले लोग भी इसका फायदा उठा सकते थे. लेकिन, ये स्कीम मार्केट रिस्क के अधीन है. इसमें कर्मचारी को भी अपना कॉन्ट्रिब्यूशन देना होता है. लिहाजा इसकी काफी आलोचना की गई. 

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कई जगह ओल्ड पेंशन स्कीम को वापस लाने की मांग उठी. हिमाचल, राजस्थान, छत्तीसगढ़, पंजाब जैसे गैर-BJP शासित राज्यों में ओल्ड स्कीम लागू भी कर दी गई. इसके बाद सरकार ने शुक्रवार को UPS का ऐलान कर दिया.

सोमनाथन कमिटी की सिफारिश पर बना UPS
UPS 2023 में तत्कालीन वित्त सचिव टीवी सोमनाथन की अगुवाई में बनी एक कमेटी की सिफारिश पर बनी है. टीवी सोमनाथन अब कैबिनेट सचिव बन चुके हैं. उनकी कमेटी ने देश के अलग-अलग राज्यों में 100 से ज़्यादा बैठकों के आधार पर यूनिफ़ाइड पेंशन स्कीम की सिफारिश की. 

1 अप्रैल 2025 से लागू होगा UPS, 23 लाख लोगों को होगा फायदा
यूनिफाइड पेंशन स्कीम 1 अप्रैल 2025 से लागू होगा. इससे केंद्र के 23 लाख कर्मियों को फायदा होगा. अगर राज्यें भी लागू कर दें, तो ये संख्या 90 लाख हो सकती है. इसमें एक एक निश्चित पेंशन का आश्वासन दिया गया है. न्यूनतम 25 वर्ष सेवा के बाद रिटायरमेंट पूर्व के 12 महीने के औसत मूल वेतन का 50% मिलेगा.10 से 25 वर्ष के बीच सेवा होगी तो उसी अनुपात में पेंशन मिलेगी. लेकिन किसी भी हाल में वो पेंशन 10,000 रुपये से कम नहीं होगी.

UPS से कर्मचारी को और क्या-क्या हैं फायदे?
UPS आपको एश्योर्ड फैमिली पेंशन की सुविधा देता है. यानी कर्मचारी की मौत के समय उसकी जो पेंशन बनेगी, उसका 60% डिपेंडेंट फैमिली को मिलेगा. यही नहीं, अगर किसी की सर्विस 10 साल से कम है, तो भी एश्योर्ड मिनिमम पेंशन 10 हजार महीना है. DA को एड कर दें, तो आज की डेट में ये 15 हजार महीना हो जाती है. पेंशन, एश्योर्ड पेंशन और एश्योर्ड फैमिली पेंशन में DA भी लगेगा. DA ऑल इंडिया कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स फॉर इंडस्ट्रियल वर्कर्स पर बेस्ड होगा.

खास बात ये है कि कर्मचारियों को UPS या NPS में से किसी एक पेंशन स्कीम को चुनने का विकल्प होगा, लेकिन इस मुद्दे पर सियासत भी तेज हो गई है.

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लैटरल एंट्री को दिखाया एग्जिट गेट
मोदी सरकार के एक फैसले को लेकर पिछले दिनों खूब हल्ला हंगामा हुआ. वो फैसला उच्च सरकारी पदों पर लैटरल एंट्री का था. UPSC ने  17 अगस्त 2024 को 45 पदों की वैकेंसी निकाली थी, इन्हें लैटरल एंट्री से भरा जाना था. विपक्ष ने इसे आरक्षण पर आक्रमण करार दिया. जिसके बाद सरकार ने इस पर कदम पीछे खींच लिए. 20 अगस्त को मोदी सरकार ने UPSC को विज्ञापन वापस लेने को कह दिया. मोदी सरकार में रेलवे और सूचना प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने खुद इसका ऐलान किया था.

जीतेंद्र सिंह ने UPSC को लिखा लेटर
इस सिलसिले में केंद्रीय कार्मिक मामलों के मंत्री जीतेंद्र सिंह ने UPSC को लेटर लिखकर विज्ञापन वापस लेने का निर्देश दिया. लेटर के मुताबिक, प्रधानमंत्री मोदी ने निर्देश दिया कि नौकरशाही में वरिष्ठ पदों पर इन सीधी भर्तियों में सामाजिक न्याय और समता के सिद्धांतों का पालन होना चाहिए. वंचित समुदाय की प्रतिभाओं को मौका मिलना चाहिए. साथ ही लैटरल एंट्री से होने वाली भर्तियों में आरक्षण के प्रावधानों से कोई छेड़छाड़ नहीं होनी चाहिए. लेटर में ये भी कहा गया कि प्रधानमंत्री मोदी का पूरा ध्यान सामाजिक न्याय की ओर है. लैटरल एंट्री के विज्ञापन को वापस लेने के साथ ही मोदी सरकार ने एक विवाद को ज़्यादा बड़ा होने से रोक लिया है. 

साल 2018 में UPSC ने इस तरह से भर्तियां शुरू की थीं. तब अलग-अलग मंत्रालयों, विभागों में संयुक्त सचिव स्तर पर 9 नियुक्तियां 3 से 5 साल के लिए हुई थीं. 2021 में दूसरी बार भर्तियां हुईं. पिछले 5 साल में कुल 63 भर्तियां हुईं, जिनमें से 57 अधिकारी अभी भी काम कर रहे हैं. लेकिन अब आगे से ऐसी भर्तियां नहीं हो पाएंगी. 

खास बात ये है कि 2005 में जब कांग्रेस नेता वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता में द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग यानी ARC बना था, तो उसने प्रशासनिक सुधार आयोग ने लैटरल एंट्री की सिफ़ारिश की थी, लेकिन सत्ता से विपक्ष के सफर में कांग्रेस के सुर बदल गए.

वक्फ जमीन का मामला JPC को दिया
दूसरी तरफ, मोदी सरकार ने वक्फ संशोधन विधेयक लोकसभा में पेश करना चाहा, तो बवाल मच गया. इस विधेयक के इस प्रावधान पर सवाल उठा कि किसी संपत्ति को वक्फ या सरकारी भूमि के रूप में वर्गीकृत किया जाए या नहीं, इसका निर्धारण करने का अधिकार जिला कलेक्टर को दिया जाए. विपक्ष के विरोध पर ये मसला 31 सदस्यीय JPC को सौंप दिया गया, जिसकी अध्यक्षता BJP सांसद जगदंबिका पाल को सौंपी गई.

केंद्र सरकार का कहना है कि इस विधेयक का मकसद मस्जिदों के कामकाज में दखल देना नहीं है, लेकिन विपक्ष ने इसे मुसलमानों को निशाना बनाना और संविधान पर हमला बताया था.

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