जाति जनगणना से बदलेंगे कई समीकरण, आंकड़ों के ये होंगे 5 बड़े प्रभाव

केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने बुधवार को जातीय जनगणना कराने को मंजूरी दे दी. इसकी जानकारी केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में दी. सरकार के इस फैसले को बड़ा गेम चेंजर माना जा रहा है. आइए जानते हैं इस फैसले के क्या होंगे परिणाम.

विज्ञापन
Read Time: 5 mins
नई दिल्ली:

केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने जातीय जनगणना को मंजूरी दे दी है. इसकी जानकारी केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बुधवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में दी. उन्होंने कहा कि अगली जनगणना में जातियों की जनगणना भी होगी. मोदी सरकार ने यह एक ऐसा फैसला लिया है, जिसकी मांग देश में पिछले काफी सालों से की जा रही थी. जातीय जनगणना की मांग करने वालों में पक्ष-विपक्ष दोनों के नेता शामिल थे. माना जा रहा है कि जातीय जनगणना के आंकड़े आने के भारत में बहुत कुछ बदल जाएगा. इससे सबसे बड़ा जो बदलाव हो सकता है, वह है आरक्षण पर 50 फीसदी की सीमा को बढ़ाया जाना. अभी सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण पर 50 फीसदी का कैप लगा रखा है. इसकी वजह से आरक्षण 50 फीसदी से अधिक नहीं हो सकता है.

पता चलेगा किस जाति की कितनी जनसंख्या

जातीय जनगणना के आंकड़े सामने आने के बाद सबसे अधिक जोर जिस बदलाव पर होगा, वह है आरक्षण की सीमा. माना जाता है कि देश में सबसे बड़ा जातीय समूह अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी)की है.साल 1931 की जनगणना में पिछड़ी जातियों की आबादी 52 फीसदी से अधिक बताई गई थी. ओबीसी को जिस मंडल आयोग की सिफारिशों पर आरक्षण मिला था, उसने भी ओबीसी की आबादी 52 फीसदी ही मानी थी. बिहार के जातीय सर्वेक्षण में ओबीसी की गणना अति पिछड़ा वर्ग और पिछड़ा वर्ग के रूप में की गई.सर्वे के आंकड़ों के मुताबिक दोनों की संयुक्त आबादी बिहार में 63.13 फीसदी है. वीपी सिंह के नेतृत्व वाले जनमोर्चा सरकार ने ओबीसी के लिए 27 फीसदी आरक्षण दिया था.उसी समय से ओबीसी के साथ अन्याय की बात कही जाती है. एससी-एसटी को आरक्षण देते समय उनकी जनसंख्या देखी जाती है. लेकिन ओबीसी आरक्षण के साथ ऐसा नहीं है. यहां तक की गरीब सवर्णों को आरक्षण देते समय केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने उनकी जनसंख्या को लेकर कोई आंकड़ा नहीं पेश किया था. अब जातीय जनगणना होने से यह पता लगेगा कि देश में किस जाति की कितनी आबादी है. इसके बाद ओबीसी जातिया अपनी जनसंख्या के हिसाब से मांग कर सकती हैं. 

लोकसभा में नेता विपक्ष और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी ने नरेंद्र मोदी सरकार के इस फैसले का समर्थन किया है.

Advertisement

आरक्षण की सीमा खत्म होगी?

सुप्रीम कोर्ट के नौ न्यायाधीशों की एक संवैधानिक पीठ ने 1992 में इंदिरा साहनी बनाम भारत सरकार मामले में आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 फीसदी तय कर दी थी. यह फैसला देते हुए अदालत ने कहा था कि इससे ज्यादा आरक्षण संविधान की मूल भावना के खिलाफ होगा.यह फैसला आरक्षण पर एक महत्वपूर्ण फैसला था. अब जातीय जनगणना के आंकड़े आने के बाद ओबीसी की जातियां अपनी जनसंख्या के मुताबिक आरक्षण की मांग करेंगी. इससे सरकार को आरक्षण की इस सीमा को खत्म करने के प्रयास करने पड़ सकते हैं. इससे ओबीसी की जातियों को उनकी जनसंख्या के मुताबिक आरक्षण देने का रास्ता साफ होगा.

Advertisement

संसद और विधानसभाओं की बदली तस्वीर

जाति जनगणना हो जाने के बाद संसद और विधानसभाओं की तस्वीर भी बदली हुई नजर आ सकती है.जिन जातियों की संख्या अधिक होगी, वो लामबंद होंगी. इसके बाद राजनीतिक दल चुनावों में उनको अधिक सीटें दे सकते हैं. इसका असर संसद और विधानसभा में भी दिखाई देगा. ओबीसी जातियों की गोलबंदी 1990 में मंडल आयोग की सिफारिशें लागू होने के बाद नजर आई थी. मंडल आयोग की सिफारिशें लागू होने के बाद देश में सामाजिक न्याय की राजनीति करने वाले दलों का उदय हुआ था.समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल, सुभासपा, अपना दल जैसे दल इसी राजनीतिक के परिणाम हैं.इसका प्रभाव यह हुआ कि बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्यों में कांग्रेस का सूरज डूब गया. उनका वोट बैंक सामाजिक न्याय की राजनीति करने वाले दलों के साथ चला गया है. अपने खोए हुए जनाधार को वापस पाने के लिए ही कांग्रेस जातीय जनगणना और संविधान पर खतरे का मुद्दा उठाती है.इसलिए कर्नाटक और तेलंगाना में कांग्रेस की सरकारों ने जातीय सर्वेक्षण कराए हैं.

Advertisement

स्कूल-कॉलेज और सरकारी दफ्तरों का गणित

जातीय जनगणना के आंकड़े सामने आने के बाद आरक्षण की सीमा बढ़ने के बाद स्कूल कॉलेजों में भी इसका असर दिखाई पड़ सकता है. अगर आरक्षण की 50 फीसदी की सीमा हटाई गई तो स्कूल कॉलेजों में पिछड़ी जातियों के छात्र-छात्राओं की संख्या अधिक दिखाई दे सकती है. वहीं आरक्षण की समय सीमा हटने के बाद से सरकारी नौकरियों में आरक्षण बदलेगा, इससे नई नौकरियों में उन जातियों की संख्या अधिक हो सकती है, जिन जातियों की संख्या सरकारी नौकरियों में कम है, उनकी संख्या बढ़ सकती है.

Advertisement

नरेंद्र मोदी सरकार ने जातीय जनगणना कराने का फैसला ऐसे समय लिया है, जब पहलगाम आतंकी हमले को लेकर देश में माहौल गर्म है.

समाज में जातियों के बीच मतभेद 

जातिगत जनगणना के फायदों के साथ नुकसान भी हैं. इससे सामाजिक-राजनीतिक चुनौतियां पैदा हो सकती हैं. जातीय जनगणना के आंकड़े समाज में नए विभाजन पैदा कर सकते हैं. इससे समाज का जातिगत विभाजन और गहरा हो सकता है. यह विभाजन हिंसक भी साबित हो सकता है. क्योंकि ओबीसी आरक्षण लागू किए जाते समय 1990 में देश में बड़े पैमाने पर आंदोलन हुआ था. कई जगह लोगों से मारपीट की गई थी और कुछ लोगों ने आत्मदाह का भी प्रयास किया था. इस विभाजन का इस्तेमाल राजनीतिक दल अपना वोट बैंक बढ़ाने के लिए भी कर सकती हैं.

ये भी पढ़ें: राहुल गांधी ने जाति जनगणना का किया 100% सपोर्ट, लेकिन मोदी सरकार से पूछी टाइमलाइन

Featured Video Of The Day
Pahalgam Attack: हमले के पीछे पाकिस्तानी सेना का कमांडर Hashim Musa | Khabron Ki Khabar
Topics mentioned in this article