एम एफ हुसैन के जीवन और कार्य को समर्पित संग्रहालय कतर में स्थापित होगा

पेंटिंग, फिल्में, टेपेस्ट्री, फोटोग्राफी, कविता और अधिष्ठापन को मिलाकर बने एक स्थायी संग्रह को चित्रों, वीडियो आदि मल्टीमीडिया के उपयोग से कहानी की तरह प्रदर्शित किया जाएगा.

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(फाइल फोटो)
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  • लाव्ह वा कलाम: एम एफ हुसैन नामक संग्रहालय दोहा में 28 नवंबर को कतर फाउंडेशन द्वारा खोला जाएगा
  • यह संग्रहालय एम एफ हुसैन की 1950 से 2011 तक की कलात्मक यात्रा और दर्शन को समर्पित होगा
  • संग्रहालय में पेंटिंग, फिल्म, टेपेस्ट्री, फोटोग्राफी, कविता, मल्टीमीडिया के माध्यम से उनकी कला प्रदर्शित होगी
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नई दिल्ली:

‘सेरू फि अल अर्द' एम एफ हुसैन की एक अद्वितीय कलाकृति और अंतिम उत्कृष्ट रचना है, जिसे 20 मिनट के शो के प्रारूप में प्रस्तुत किया गया है. यह आधुनिकतावादी कलाकार के जीवन, रचना कर्म और दर्शन को समर्पित दुनिया के पहले संग्रहालय के मुख्य आकर्षणों में से एक होगी. कतर फाउंडेशन ने बुधवार को घोषणा की कि 'लाव्ह वा कलाम: एम एफ हुसैन' नाम का यह संग्रहालय देश की राजधानी दोहा में 28 नवंबर को खुलेगा.

यह संग्रहालय 1950 के दशक से लेकर 2011 में उनकी मृत्यु तक हुसैन की कलात्मक यात्रा को समर्पित होगा. कतर फाउंडेशन के सामुदायिक सहभागिता मामलों के कार्यकारी निदेशक खुलूद एम अल-अली ने एक बयान में कहा, 'मकबूल फिदा हुसैन दुनिया के सबसे महान आधुनिकतावादियों में से एक थे, एक ऐसे कलाकार जिनकी दृष्टि विभिन्न संस्कृतियों से उभरी और उन सबमें गूंजी, जिसमें कतर भी शामिल है, जहां वह आकर रहे और अपनी रचनाशीलता को नया आयाम दिया.'

पेंटिंग, फिल्में, टेपेस्ट्री, फोटोग्राफी, कविता और अधिष्ठापन को मिलाकर बने एक स्थायी संग्रह को चित्रों, वीडियो आदि मल्टीमीडिया के उपयोग से कहानी की तरह प्रदर्शित किया जाएगा. यह संग्रहालय आगंतुकों को हुसैन की दुनिया में कदम रखने और उन प्रभावों और दर्शन को जानने के लिए आमंत्रित करेगा जिन्होंने उनके कलात्मकता को आकार दिया.

प्रदर्शित होने वाले कार्यों में कतर फाउंडेशन के अध्यक्ष शेख मोजा बिन्त नासिर द्वारा प्रस्तुत पेंटिंग्स की एक श्रृंखला होगी, जो अरब सभ्यता से प्रेरित हैं. हुसैन ने 2011 में अपनी मृत्यु से पहले इनमें से 35 से अधिक पेंटिंग्स पूरी की थीं और वे संग्रहालय की दीर्घाओं में प्रदर्शित होंगी.

3,000 वर्ग मीटर से अधिक में फैले इस संग्रहालय का डिजाइन हुसैन द्वारा बनाए गए एक स्केच से प्रेरित है, जिसमें उस वास्तुशिल्प अवधारणा को दर्शाया गया है जिसकी उन्होंने कल्पना इस इमारत के लिए की थी. उन्होंने इस इमारत को अपने आप में एक कलाकृति के रूप में देखा, जो उनके प्रयोग और कई विषयों में उनकी कलात्मकता को दर्शाती है.

अल-अली ने कहा, 'यह सम्मान की बात है कि हम उनके काम को इस पैमाने के एक समर्पित संग्रहालय में प्रस्तुत कर रहे हैं, एक ऐसा स्थान जहां दर्शक उनके जीवन, उनकी कला और उनकी स्थायी वैश्विक विरासत के साथ गहराई से जुड़ सकते हैं.' हुसैन को 2010 में कतर की मानद नागरिकता दी गई थी, जहां उन्होंने 2006 से 2011 तक अपने जीवन के अंतिम वर्ष बिताए. इस दौरान वह लंदन में भी प्रवास करते रहे.

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