पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में बीते दिनों वक्फ कानून के खिलाफ हुई हिंसा की वजह वहां के स्थानीय लोगों को जो दर्द मिला वो उसे अभी तक नहीं भूल पाए हैं. हिंसा के दौरान स्थिति इस कदर बिगड़ गई थी कि इन लोगों को मजबूरन अपना घर छोड़कर शरणार्थी शिविरों में शरण लेनी पड़ी. मुर्शिदाबाद छोड़कर बाहर गए लोगों में से कई लोग मालदा स्थित शरणार्थी शिविर में रुके हुए हैं.इस शिविर में रह रहे लोगों में खासतौर पर महिलाएं शामिल हैं. NDTV की मनोज्ञा लोइवाल ने इन लोगों का दर्द जानने की कोशिश की. मुर्शिदाबाद से आई सप्तमी मंडल ने NDTV ने उस खौफनाक दिन को याद करते हुए कहा कि हम तो बस किसी तरह से बचकर निकले हैं. अगर हम पांच मिनट भी देरी करते तो शायद आज हम जिंदा नहीं होते. उन्होंने कहा कि मैं यहां अपने छह दिन के बच्चे के साथ रहने को मजबूर हूं. मेरे पति कोलकाता में रोजी रोटी कमाते हैं.
आज भी महिलाओं में है डर
मालदा के शरणार्थी शिविर में रह रही एक अन्य महिला ने कहा कि हमें संदेश है कि अगर हम तुरंत वहां लौटे तो हम सुरक्षित बचेंगे या नहीं. हालांकि, हमे सरकार ने भरोसा दिया तो है लेकिन कल क्या होगा इसका कुछ मालूम नहीं है. हमने जो कुछ देखा है वो हम इतनी जल्दी नहीं भूल सकते. हमारे सामने हमारे घरों को आग के हवाले कर दिया गया. पुलिस कुछ मदद नहीं कर रही थी. हम कैसे अपनी जान बचाकर निकले हैं इसका अंदाजा आप नहीं लगा सकते.
पुलिस पर नहीं है भरोसा
शरणार्थी शिविर में रह रहे लोगों का स्थानीय पुलिस औऱ कानून व्यवस्था पर से भरोसा उठ सा गया है. मालदा के शिविर में रह रहे लोगों के अनुसार जिस तरह से हिंसा के दौरान पुलिस ने कार्रवाई की और उनकी सुरक्षा सुनश्चित करने के लिए कदम उठाए उससे इतना तो साफ है कि स्थानीय पुलिस और प्रशासन पर हम अपनी सुरक्षा के लिए भरोसा नहीं कर सकते हैं. हमें काफी वक्त लगेगा, इस सदमे से निकलने में. वहां पुलिस के सामने सब कुछ हुआ था. पर किसी ने कुछ नहीं किया.