मुंबई में अनोखी सर्जरी, 2 महीने के नवजात के हार्ट में बने छेद को डॉक्टरों ने बंद कर किया कमाल!

डॉक्टर मुंडे के मुताबिक ज्यादातर मामलों में बच्चे की उम्र और वजन बढ़ने का इंतजार किया जाता है लेकिन इस केस में बच्चे की तबीयत एकदम खराब हो रही थी. उसे सांस लेने में तकलीफ हो रही थी. वह ना तो दूध पी पा रहा था और न ही सो पा रहा था.

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ये सर्जरी की है मुंबई के जे जे अस्पताल के हृदय रोग विशेषज्ञ डॉक्टर कल्याण मुंडे ने.
मुंबई:

मुंबई (Mumbai) के जेजे अस्पताल (JJ Hospital) के डॉक्टरों ने कमाल कर दिया है. मात्र 2 महीने के शिशु के हृदय में बने छेद को बंद करने के लिए अनोखी सर्जरी की है. अमूमन ऐसे केस में ओपन हार्ट सर्जरी की जाती है लेकिन डॉक्टरों ने बीमार शिशु का वजन सिर्फ साढ़े तीन किलो देखकर ऐसी सर्जरी की है. ओपन सर्जरी के लिए कम से कम 10 किलो वजन जरूरी होता है, वरना जान का खतरा बना रहता है.

ये सर्जरी की है जेजे अस्पताल के हृदय रोग विशेषज्ञ डॉक्टर कल्याण मुंडे ने. डॉक्टर मुंडे ने बच्चे के पैर की बड़ी नस के जरिए कैथेटर डालकर हार्ट का छेद बंद कर दिया. भारत में ये अपने तरह का पहला ऑपेरशन बताया जा रहा है. डॉक्टर कल्याण मुंडे के मुताबिक ये बहुत चुनौतीपूर्ण था क्योंकि पहले कभी उन्होंने इतने छोटे शिशु पर इस तरह का ऑपरेशन नहीं किया था. डॉक्टर मुंडे के मुताबिक इस प्रक्रिया को वीएसडी डिवाइस क्लोजर नाम से जाना जाता है.

डॉक्टर के मुताबिक हार्ट के दो चैंबर के बीच छेद होने से खून शरीर की तरफ जाने के बजाय एक चैम्बर से दूसरे चैम्बर की तरफ जाता है. इसे वेंट्रिकुलर सेप्टल डिफेक्ट (ventricular septal defect) कहा जाता है.

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डॉक्टर मुंडे के मुताबिक ज्यादातर मामलों में बच्चे की उम्र और वजन बढ़ने का इंतजार किया जाता है लेकिन इस केस में बच्चे की तबीयत एकदम खराब हो रही थी. उसे सांस लेने में तकलीफ हो रही थी. वह ना तो दूध पी पा रहा था और न ही सो पा रहा था.

डॉक्टर मुंडे ने कहा, "ऐसे में ओपन हार्ट सर्जरी या कैथेटराइजेशन की प्रक्रिया में से एक ऑपरेशन जरूरी था लेकिन इतने छोटे और कम उम्र के बच्चे की ओपन हार्ट सर्जरी करने के लिए कोई तैयार नहीं होता है. इसलिए एक ही उपाय था VSD डिवाइस क्लोजर जिसमें बच्चे के पैर की बड़ी नस से उसके ह्रदय तक पहुँचते हैं और कैथेटर की मदद से उस छेद में एक बटन जैसा डिवाइस डालते हैं, जिससे वो छेद हमेशा के लिए बंद हो जाता है."

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2 महीने के कार्तिक के माता- पिता गरीब मजदूर हैं. उनके पास इलाज के लिए पैसे भी नहीं थे. कर्नाटक के रहने वाले दोनों माता-पिता कई अस्पतालों के चक्कर लगाने के बाद जे जे अस्पताल पहुँचे थे. जहां ना सिर्फ उनके बच्चे का इलाज हुआ बल्कि उन्हें पैसे भी नहीं देने पड़े. इलाज के लिए तक़रीबन 5 लाख का पूरा खर्चा महात्मा ज्योतिबा फुले योजना के तहत सरकार ने उठाया है.

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