राजनीति में मुलायम सिंह यादव का न कोई दोस्त था, न दुश्मन..

1996 में मुलायम सिंह रक्षा मंत्री बने. रक्षा मंत्री के रूप में उन्होंने ये फैसला लिया कि यदि कोई जवान शहीद होता है तो उसका पार्थिव शरीर उसे घर उसके गांव तक जाएगा. इससे पहले ये नियम नही था. पहले शहीद होने पर जवान का अंतिम संस्कार वहीं उसी जगह पर होता था जहां वो शहीद हुआ है. मुलायम सिंह तीन बार यूपी के सीएम रहे. 

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 मुलायम सिंह यादव ने बंधे हुए पैटर्न की राजनीति नहीं की
नई दिल्ली:

समाजवादी पार्टी के संरक्षक और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव का सोमवार को निधन हो गया. 82 साल की उम्र में गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में उन्होंने आखिरी सांस ली. सपा संरक्षक के निधन पर देशभर में शोक की लहर है.  मुलायम सिंह ने कोई बंधे हुए पैटर्न की राजनीति नहीं की थी. वो लोहियावादी रहे, सामजवादी नेता रहे, समाजवाद को मानते गरीबों के लिए काम किया. सियासत में न कोई उनका दोस्‍त था और न दुश्‍मन. चंद्रशेखर को मुलायम सिंह अपना आदर्श मानते रहे.

80 के दशक में जब पीएम बनाने की बात आई तो मुलायम सिंह ने देवीलाल के साथ मिलकर के वीपी सिंह को पीएम बना दिया. विश्वनाथ सिंह के सात मोहभंग हुआ तो वो वापस चंद्रशेखर के पास चले गए. 2002 में  एनडीए के राष्ट्रपति उम्मीदवार एपीजे अब्‍दुल कलाम को वोट दे दिया. 2008 में परमाणू समझौते पर लेफ्ट सरकार से अलग हो गए. स्पीकर सोमनाथ को लेफ्ट ने पार्टी से निकाल दिया. वो फिर लेफ्ट के साथ नहीं गए. अमर सिंह के साथ मिल कर मनमोहन सरकार को समर्थन दिया और सरकार बच गई. 2019 से चुनाव में भी कहा कि वो चाहते हैं कि पीएम मोदी बने. मुलायम सिंह यादव दिल की सुनते थे, जो अच्छा लगता था वो करते थे. राजनीति में न को ई दोस्त न दुश्मन था.

1998 का एक किस्सा है. अटल सरकार गिरने के बाद कहा था कि कांग्रेस को समर्थन देंगें. सोनिया गांधी ने कह दिया था कि उनके पास 272 हैं. अडवाणी ने अपनी किताब माई कंट्री माई लाइफ में कहा कि उनको एक फोन आया कि आप आइए आपसे एक विपक्ष के नेता मिलना चाहते हैं और आपको जया जेटली जी के घर आना होगा और वो देखते हैं कि मुलायम सिंह यादव वहां है. उन्होंने कहा कि मैं किसी को समर्थन नहीं दे रहा हूं आपको भी नहीं. सरकार बने रहने दीजिए चुनाव होने दीजिए.1996 में मुलायम सिंह रक्षा मंत्री बने. रक्षा मंत्री के रूप में उन्होंने ये फैसला लिया कि यदि कोई जवान शहीद होता है तो उसका पार्थिव शरीर उसे घर उसके गांव तक जाएगा. इससे पहले ये नियम नही था. पहले शहीद होने पर जवान का अंतिम संस्कार वहीं उसी जगह पर होता था जहां वो शहीद हुआ है. मुलायम सिंह तीन बार यूपी के सीएम रहे.

उस समय यूपी मे काफी कुछ चल रहा था. 30 अक्टूबर 1990 को उन्होंने कार सेवकों पर गोली चलवा दी. जिसमें कई कारसेवक मर गए. उन्होंने कहा कि देश की एकता के लिए उन्होंने ऐसा किया है. यहीं से उनका नाम मौलाना मुलायम सिंह यादव पड़ गया. 91 में सरकार चली गई. 92 में बाबरी मस्जिद नहीं रही. बीजेपी को रोकने के लिए उन्होंने बसपा से हाथ मिला लिया. बीजेपी 177 पर सिमट गई और गठबंधन की सरकार बनी. लेकिन ये सरकार चल नहीं पाई. इसके बाद गेस्ट हाउस कांड होता है जिसमें मायावती के उपर सपा के कार्यकर्ताओं ने हमला कर दिया था. इसके बाद मुलायम मायावती के रिशते कराब हो गए कि कभी ठीक नहीं हो पाए. अखिलेश ने इसे ठीक करने की कोशिश की. लेकिन मुलायम ने काशीराम और मायावती पर भरोसा नहीं किया, ना हि उन्होंने मुलायम पर किया.

1989 में मुलायम सिंह सीएम बने थे. चौधरी चरण सिंह बमार हो गए थे. वीपी सिंह pm बन गए थे. चरण सिंह के बेटे अजीत सिंह अमेरिका में इंजीनियर थे. वो उस नौकरी को छोड़ कर आए. सबका मानना था कि वहीं सीएम बनेंगे. लेकिन मुलायम सिंह के पास एक अलग दाव था. पहलवानी किया करते थे. उन्होंने कहा कि मैं भी सीएम के लिए उम्मीदवार हूं. फिर सीकरेट बैलेट हुआ, जिसमें वीपी सिंह ने सुनिश्चित किया कि सीकरेट बैलेट हो. वहीं, वीपी सिंह जिन्हें मुलायम ने सम्थन देकर पीएम बनाया था. फिर सीकरेट बैलेट हुआ और मुलायम सिंह ने अजीत सिंह के समर्थकों को तोड़ दिया और वो 1989 में पहली बार सीएम बने. 2003 से 2007 तक CM रहे. 2012 में पूर्ण बहुमत मिला. लेकिन इस बार अखिलेश को ताज सौंप दिया.

मुलायम सिंह और अमर सिंह की दोस्ती भी काफी किस्से थे.  2003 को जब उन्होंने तीसरी बार सीएम पद की शपथ ली, तब तक अमर सिंह से गहरी दोस्ती हो गई. वो उन्हें राज्य सभी में भी लेकर आए. उनकी इस दोस्ती के वजह से बेनी प्रसाद वर्मा जैसे कई सपा नेता खुश नहीं थे और अलग हो गए. अमर सिंह ने मुलायम से दोस्ती निभाई. लेकिन बाद में उनके रिश्ते अखिलेश से ज्यादा अच्छे नहीं रहे. आपातकाल के समय वो जेल भी गए. जब वो जेल से आए तो भारत में वोटिंग सिस्टम बदल गया था. कांग्रेस की वोट बैंक तितर बितर हो गया था.

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मुलायम सिंह ने ओबीसी और मुसलमानों को एक करके नया वोट बैंक तैयार किया. बिहार और यूपी में तख्ता पलट दिया और पहली बार राम नरेश यादव 1977 में सीएम बने से उसमें भी मुलायम मंत्री थे. 1980 में कांग्रेस की सरकार दोबारा बनी. उसमें भी वो मंत्री बने थे. 1977 के बाद जो पिछड़ी जोति और मुसलमानों का ध्रुविकरण हुआ तो वो गेम चेंजर रहा. उसका असर अभी भी बिहार और यूपी में आज भी है. मुलायम सिंह ने राजनीति में किसी पर भरोसा नहीं किया. लेकिन वो अखिलेस के लिए एक लीगेसी छोड़ गए हैं जिसे संभालना अखिलेश के लिए चुनौती होगी. 

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