MP के 'लव जिहाद' कानून के पांच साल: ज्यादातर मामलों में बरी, कम दोषसिद्धि से उठते हैं सवाल

विधानसभा में मंगलवार को मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की सरकार ने जो आंकड़े रखे, वे चौंकाने वाले हैं. इस कानून के तहत प्रदेश भर में कुल 283 मामले दर्ज हुए, जिनमें से 197 मामले हैं.

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  • मध्यप्रदेश में धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम लागू होने के साढ़े पांच वर्षों में कुल 283 मामले दर्ज किए गए हैं
  • 86 मामलों में पुलिस जांच पूरी हुई, जिनमें से 50 मामलों में आरोपियों को बरी कर दिया गया है
  • बरी होने के प्रमुख कारणों में सबूतों की कमी और पीड़िताओं के गवाही बदलना शामिल है
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भोपाल:

मध्यप्रदेश में धर्मांतरण पर रोक लगाने वाले सख्त कानून जिसे राजनीतिक हलकों में अक्सर ‘लव जिहाद' कानून कहा जाता है के पहले साढ़े पांच साल का लेखा-जोखा चौंकाने वाला है. जनवरी 2020 में लागू हुए मध्यप्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता अध्यादेश 2020 और उसके बाद बने मध्यप्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम 2021 को आए साढ़े पांच साल पूरे हो चुके हैं, लेकिन इन सालों में सजा से ज्यादा बरी होने के मामले सामने आए हैं.

डॉ. मोहन यादव की सरकार ने रखे चौंकाने वाले आंकड़ें

विधानसभा में मंगलवार को मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की सरकार ने जो आंकड़े रखे, वे चौंकाने वाले हैं. इस कानून के तहत प्रदेश भर में कुल 283 मामले दर्ज हुए, जिनमें से 197 मामले हैं. ये सभी मामलें अब भी अदालतों में लंबित हैं. बाकी 86 मामलों में पुलिस जांच पूरी हो चुकी है और या तो अदालत ने फैसला सुना दिया है, या दोनों पक्षों में समझौता हो गया है.

86 मामलों में से 50 में आरोपियों को किया गया बरी

असली कहानी यहां शुरू होती है कि इन 86 मामलों में से 50 मामलों में आरोपियों को बरी कर दिया गया. सजा सिर्फ 7 मामलों में हुई है. एक मामला ऐसा भी था, जो दोनों पक्षों के ‘राजीनामे' के साथ खत्म हो गया. सजा वाले सात मामलों में अगर-मालवा के नलखेड़ा थाने का एक मामला ऐसा था, जिसमें अदालत ने उम्रकैद की सजा सुनाई, जबकि मंदसौर जिले के एक मामले में बलात्कार की धारा भी लगी थी, जिसमें आरोपी को 10 साल जेल हुई. 

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इस वजह से बरी हो जाते हैं आरोपी

पुलिस सूत्रों के मुताबिक, इन मामलों में बरी होने की सबसे बड़ी वजह सबूतों की कमी और पीड़िताओं का गवाही के दौरान पलट जाना रहा है. कई बार महिलाएं अदालत में कहती हैं कि उन्होंने दूसरी धर्म के व्यक्ति से अपनी मर्ज़ी से रिश्ता बनाया, शादी की और वे बिना किसी डर, दबाव या लालच के उनके साथ रह रही हैं. नाबालिग पीड़िताओं से जुड़े कई मामलों में यह भी सामने आया कि परिवार ने समाज के दबाव में आकर एफआईआर दर्ज कराई थी, लेकिन बाद में पीड़िता और परिजन बयान बदल देते थे, जिससे आरोपी बरी हो जाता था.

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283 मामलों में 18 साल से कम उम्र की थीं 71 पीड़िताएं

दर्ज हुए 283 मामलों में 71 पीड़िताएं 18 साल से कम उम्र की थीं. सबसे ज़्यादा मामले पश्चिमी और दक्षिण-पश्चिमी मध्यप्रदेश के मालवा-निमाड़ क्षेत्र से आए, जो आदिवासी बहुल और सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील इलाका है. अकेले इंदौर जिले में 74 मामले दर्ज हुए, जो कुल मामलों का 26 प्रतिशत है. भोपाल में 33 मामले आए, जबकि धार में 13, मुख्यमंत्री के गृह जिले उज्जैन और खंडवा में 12-12, छतरपुर में 11 और खरगोन में 10 मामले दर्ज हुए.

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2025 में एसआईटी का किया गया गठन

सरकार ने विधानसभा को यह भी बताया कि मई 2025 में एक राज्य स्तरीय विशेष जांच दल (SIT) गठित की गई है, जो अब तक दर्ज सभी मामलों की गहन जांच कर रही है. इस कानून के तहत किसी भी धर्मांतरण के लिए 60 दिन पहले जिला कलेक्टर को सूचना देना अनिवार्य है और जबरदस्ती, धोखे, लालच, दबाव या विवाह के माध्यम से धर्मांतरण कराना अपराध है, जिसके लिए सख्त सजा और जुर्माने का प्रावधान है. इस कानून के तहत जबरन धर्मांतरण पर 1 से 5 साल की सजा और 25 हजार रुपए तक जुर्माना है. नाबालिग, महिला या एससी/एसटी के मामलों में सजा 2 से 10 साल और जुर्माना 50 हजार रु. तक हो सकता है. यदि कोई अपना धर्म छिपाकर विवाह करता है, तो उसे 3 से 10 साल की सजा और 50 हजार रुपए जुर्माना हो सकता है. सामूहिक धर्मांतरण के मामलों में 5 से 10 साल की सजा और 1 लाख रुपए जुर्माना हो सकता है.

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कुछ दिनों पहले मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने कहा था कि सरकार मप्र धार्मिक स्वतंत्रता कानून में लव जिहाद पर अब फांसी की सजा का प्रावधान करेंगी.

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