- मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में कोल्ड्रिफ सिरप से बच्चों की मौत के बाद भी पोस्टमार्टम नहीं कराया गया था.
- तमिलनाडु की लैब ने 24 घंटे में जहरीली दवा की जांच कर कोल्ड्रिफ सिरप में डाईएथिलीन ग्लाइकॉल पाया था.
- एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार, बच्चों की मौत की संख्या बारह है जिनके लक्षण समान और जहरीली दवा से जुड़े थे.
छिंदवाड़ा के परासिया ब्लॉक से जो तस्वीर सामने आई है, उसने पूरे मध्य प्रदेश की सरकारी मशीनरी की पोल खोल दी है. 12 बच्चों की मौत हो चुकी है ( 1 बच्चे की बैतूल में), 6 अब भी मौत से जूझ रहे हैं, लेकिन किसी एक का भी पोस्टमार्टम नहीं हुआ. एनडीटीवी की पड़ताल में एक-एक कर ऐसे खुलासे हुए हैं, जो बताते हैं कि मध्य प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था से लेकर दवा नियंत्रण विभाग तक हर स्तर पर लापरवाही और लीपापोती हुई.
झूठ बेनकाब
परासिया के एसडीएम शुभम यादव ने मीडिया से कहा कि परिवारों से पोस्टमार्टम की अनुमति मांगी गई थी, लेकिन उन्होंने मना कर दिया. मगर जब एनडीटीवी ने उन्हीं परिवारों से बात की, सच सामने आ गया. उसैद खान के पिता यासीन ने बताया, “किसी ने हमसे पोस्टमार्टम के लिए पूछा ही नहीं. न अस्पताल ने, न प्रशासन ने.” अदनान के पिता अमीन खान ने कहा, “मेरे बेटे की मौत नागपुर मेडिकल कॉलेज में हुई , लेकिन किसी ने कभी पोस्टमार्टम की बात नहीं की.” संध्या भोसम के घरवालों ने भी यही कहा कोई अधिकारी आया ही नहीं. और दिव्यांश यदुवंशी के पिता ने बताया कि “हमें कोई आपत्ति नहीं थी, लेकिन प्रशासन ने पूछा ही नहीं.” यानि बच्चों की मौतें दर्ज हो गईं, लेकिन जांच का पहला कदम पोस्टमार्टम तक नहीं उठाया गया.
हर कदम पर लापरवाही
24 अगस्त को पहला संदिग्ध मामला आया. 4 साल के शिवम राठौरको 24.08.2025 को सर्दी, खांसी से पीड़ित होने पर डॉ. प्रवीण सोनी को दिखाया गया. 29.08.2025 को उसे नागपुर रेफर किया गया. 4 सितंबर को उसकी मौत हो गई. विधि, अदनान, उसैद, चंचलेश, विकास जैसे 9 बच्चो की सितंबर तक ही मृत्यु हो गई, लेकिन तब तक सब इसे “साधारण बुखार मानते रहे.” सितंबर के पहले दो हफ्तों में 6 बच्चों की मौत के बाद भी किसी ने चेतावनी नहीं दी. छिंदवाड़ा जिले में 29 सितंबर को जाकर कोल्ड्रिफ सिरप पर अस्थायी रोक लगी, लेकिन उसकी टेस्ट रिपोर्ट 4 दिन बाद 3 अक्टूबर को मिली .
तमिलनाडु ने कमाल कर दिया
1 अक्टूबर को जब उन्हें मध्यप्रदेश से खत मिला, उसी शाम जांच टीम फैक्ट्री पहुंच गई.1 और 2 अक्टूबर सरकारी छुट्टियां थीं, फिर भी तमिलनाडु की लैब ने 24 घंटे में जांच पूरी की और पाया कि कोल्ड्रिफ सिरप (बैच SR-13) में 48.6% डाईएथिलीन ग्लाइकॉल यानी ज़हर मिला है. 3 अक्टूबर को पूरे राज्य में बैन, फैक्ट्री पर ताला, और कंपनी श्रीसन फार्मास्यूटिकल्स के सभी प्रोडक्ट्स पर रोक लगा दी गई.
मगर मध्य प्रदेश?
डिप्टी ड्रग कंट्रोलर शोभित कोस्टा 1 अक्टूबर को तीर्थ यात्रा पर चले गए, और भोपाल की लैब नवरात्रि और दशहरा की छुट्टियों में बंद रही. यानि जब तमिलनाडु जांच कर रहा था, मध्यप्रदेश छुट्टी मना रहा था.
“रिपोर्ट आई तो कार्रवाई हुई” तब जब एनडीटीवी ने पत्र उजागर किया.
तमिलनाडु से जब 3 अक्टूबर को रिपोर्ट आई, जिसमें साफ लिखा था कि “दवा में 48.6% ज़हरीला डाईएथिलीन ग्लाइकॉल पाया गया”, तब भी मध्यप्रदेश चुप था. 4 अक्टूबर की सुबह एनडीटीवी ने रिपोर्ट सार्वजनिक की, तभी भोपाल में हड़कंप मच गया. पहले मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का बयान आया, “छिंदवाड़ा में बच्चों की मौत अत्यंत दुखद है. कोल्ड्रिफ सिरप और कंपनी के अन्य उत्पादों की बिक्री पूरे प्रदेश में प्रतिबंधित की गई है. रिपोर्ट तमिलनाडु से मिली है, और उसके आधार पर सख्त कार्रवाई की जा रही है.” शाम तक फूड एंड ड्रग कंट्रोलर दिनेश कुमार मौर्य ने पत्र जारी किया .. “कोल्ड्रिफ सिरप और कंपनी के सभी उत्पादों की बिक्री और वितरण पर तुरंत रोक लगाई जाती है.” लेकिन सवाल यह है अगर तमिलनाडु छुट्टियों के बीच 24 घंटे में जांच पूरी कर सकता है, तो मध्यप्रदेश को 12 मौतों के बाद होश क्यों आया?
एनडीटीवी की जांच: मौतें 9 नहीं, 12 हैं
एनडीटीवी की ग्राउंड रिपोर्टिंग में खुलासा हुआ कि मौतों की संख्या 9 नहीं बल्कि 12 हैं. इन सभी बच्चों में एक जैसे लक्षण थे बुखार, उल्टियां, और पेशाब बंद हो जाना. यानी वही ज़हर जो अब रिपोर्ट में साबित हो चुका है.
नागपुर की रिपोर्ट भी अनसुनी रही
नागपुर मेडिकल कॉलेज ने रीनल बायोप्सी में हफ्तों पहले ही लिख दिया था कि किडनी में “टॉक्सिक एलिमेंट” है, लेकिन छिंदवाड़ा स्वास्थ्य विभाग ने 29 सितंबर तक उस रिपोर्ट पर कोई कार्रवाई नहीं की. जबलपुर के स्टॉकिस्ट से कोल्ड्रिफ सिरप की सप्लाई दूसरे जिलों में जारी रही. अब भोपाल की लैब ने भी पुष्टि की है कि उसी बैच में 46.2% डाईएथिलीन ग्लाइकॉल है यानी सुरक्षित सीमा (0.1%) से 460 गुना ज़्यादा ज़हर.
डॉक्टर गिरफ्तार, अफसर आज़ाद
परासिया के शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. प्रवीण सोनी को गिरफ्तार किया गया है. लेकिन सवाल यह है कि जब रीनल बॉयोप्सी रिपोर्ट आ चुकी थी, तब उन्होंने अपने प्राइवेट क्लिनिक में वही दवा क्यों लिखी? उनकी पत्नी और भतीजे की मेडिकल स्टोर्स से वही दवा बेची जाती रही. एफआईआर में डॉक्टर और कंपनी का नाम है, लेकिन ड्रग कंट्रोलर और इंस्पेक्टरों का नाम नहीं. जो दवा की क्वालिटी जांचने के जिम्मेदार थे, वे अब भी दफ्तरों में हैं. परासिया की आबादी करीब 2.84 लाख है, जिनमें 25 हज़ार बच्चे पांच साल से छोटे हैं. अब स्वास्थ्य विभाग घर-घर जाकर सर्वे कर रहा है डर यही है कि कहीं और कोई बच्चा ज़हर की गिरफ्त में न हो. तमिलनाडु ने 24 घंटे में जांच कर दवा पर बैन लगा दिया. मध्यप्रदेश ने 40 दिन में फाइलें पलटीं, और बच्चे मरते गए. 12 बच्चों की मौत हो गई ( सरकारी रिकॉर्ड में अभी भी बैतूल के बच्चे का ज़िक्र नहीं है) 6 गंभीर हालत में हैं, कुछ वेंटिलेटर पर तो कुछ का डायलिसिस हो रहा है और किसी का पोस्टमार्टम तक नहीं हुआ. सवाल सीधा है - अगर तमिलनाडु छुट्टी में भी बच्चों की जान बचाने के लिए जांच कर सकता है, तो मध्यप्रदेश और राजस्थान मौतों के बाद भी सिर्फ़ “रिपोर्ट का इंतज़ार” क्यों करते रहे?