मोदी vs ममताः बंगाल की पेचीदा राजनीति में चुनावी मुहिम में जुटी बीजेपी, क्या है रणनीति?

बिहार के नतीजे अभी आए भी नहीं थे कि बीजेपी ने संगठन स्तर पर बंगाल का रुख कर लिया. अगले साल यहां विधानसभा चुनाव होने हैं. बीजेपी की यहां योजना क्या है और क्या हैं चुनौतियां? इससे निपटने के लिए पार्टी ने क्या मारक प्लान बनाया है?

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  • बिहार के नतीजे अभी आए भी नहीं थे कि BJP ने संगठन स्तर पर बंगाल का रुख कर लिया. 2026 में यहां चुनाव होने हैं.
  • PM नरेंद्र मोदी ने अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं को एक स्पष्ट संकेत दिया कि अगला महामुकाबला पश्चिम बंगाल में है.
  • पश्चिम बंगाल के चुनाव सिर्फ BJP की राजनीतिक दशा दिशा नहीं तय करेंगे, ये भारतीय राजनीति पर भी असर डालेंगे.
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चुनाव की जटिल, रणनीतिक और निरंतर बदलते नाजुक दौर में सफलता पाने के लिए टाइमिंग और नैरेटिव के साथ-साथ संगठन का मजबूत होना भी उतना ही अहम है. जैसे ही बिहार में चुनावी प्रक्रिया अपने अंतिम चरण में पहुंची, बीजेपी ने मानों कयास लगाने की कला में महारत हासिल कर ली हो, उसने अपनी चाल ठीक उसी अंदाज में चलने शुरू कर दिए जैसे कोई कंडक्टर किसी ऑर्केस्ट्रा को गाइड करता है. अभी बिहार चुनाव के नतीजे भी नहीं आए थे कि बीजेपी अपनी अगली बड़ी कामयाबी- पश्चिम बंगाल में 2026 के विधानसभा चुनावों के लिए जमीन तैयार करने की दिशा की ओर बढ़ गई. पार्टी के काम करने की यह दोहरी प्रकृति न केवल उसकी महत्वकांक्षा को दर्शाती है बल्कि मुकाबले के नियमों को फिर से गढ़ने की उसकी लगातार कोशिश का भी पता चलता है.

भारतीय राजनीति के केंद्र से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं को एक स्पष्ट संकेत दिया कि अगला महामुकाबला पश्चिम बंगाल में है. पीएम मोदी ने कहा कि बिहार से बहने वाली गंगा बंगाल में महत्वकांक्षा को भी बढ़ावा देती है. हालांकि उनकी यह घोषणा निश्चित रूप से तात्कालिक माहौल की जल्दी में ली गई लगती है पर ये साफ तौर पर झलकता है कि बीजेपी के अंदर यही अनवरत चलने वाली प्रक्रिया है कि चुनाव का काम कभी नहीं रुकता है. एक चुनाव खत्म हुआ नहीं कि दूसरे की तैयारी शुरू हो जाती है. इससे दुनिया की इस सबसे बड़ी पार्टी में राजनीति हमेशा हलचल में बनी रहती है. निश्चित तौर पर ये थकाऊ है पर रोमांच बराबर बना रहता है.

15 साल की सत्ता विरोधी राजनीति से गुजर रही ममता

यक्ष प्रश्न ये है कि क्या मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी लगातार तीसरे कार्यकाल वाली ममता बनर्जी के लीडरशिप वाली टीएमसी को 2026 में पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनावों में हरा सकती है? भारतीय राजनीति में ममता का नाम उन बड़े नेताओं में शुमार है, जो जितनी तारीफ बटोरते हैं उतनी ही उनकी आलोचना भी होती है. नाम में नरमी है पर वो उसके उलट एक सख्त, स्मार्ट स्ट्रीट फाइटर लगती हैं. 2011 में उन्होंने बंगाल पर 34 सालों से राज कर रही सीपीआई-एम को अकेले दम पर हरा दिया था.

ममता बनर्जी में दृढ़ता, जनप्रियता और अपनी जड़ों से गहरे जुड़ाव का अनोखा मिश्रण है. ठीक वैसे ही जैसे कोई संगीतकार अलग-अलग सुरों को एक धुन में पिरोता है, ठीक इसी तरह ममता का मंत्र—‘मा, माटी, मानुष'—पश्चिम बंगाल की जनता के दिलों में गूंजता है और उन्हें जोड़ता है. पर जैसे-जैसे 2026 के विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं, ममता को अब एक ऐसी जनता का सामना करना है जो अधूरे वादों और घोटालों से थक चुकी है. इस राजनीतिक उथल-पुथल के बीच पश्चिम बंगाल में हिंसा और निराशा का माहौल है, बीजेपी इसे ‘जंगल राज' का बंगाल संस्करण कहती है.

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9 अगस्त 2024 को, पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता के मशहूर आरजी कर मेडिकल कॉलेज और हॉस्पिटल की 31 साल की महिला पोस्टग्रेजुएट रेजिडेंट डॉक्टर का रेप किया गया और उनकी हत्या कर दी गई. इस दुखद घटना ने पूरे राज्य को हिला कर रख दिया, सड़कों पर विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए जो दिखाते हैं कि लोगों में उस सरकार को लेकर गहरी नाराजगी और बढ़ती बेचैनी है, एक ऐसी सरकार जिसे लोग इस तरह महसूस करते हैं कि वह उन्हीं लोगों से दूर है, जिनकी सेवा करने का दावा वह करती है. 

राज्य आर्थिक मोर्चे पर भी गंभीर स्थिति में है. बंगाल में वृद्धि दर के स्तर पर तटीय राज्यों तमिलनाडु, गुजरात, कर्नाटक और महाराष्ट्र के मुकाबले पीछे है. कभी औद्योगिक ताकत रहा बंगाल आज संरचनात्मक कमजोरियों से जूझ रहा है, जो राज्य में उद्योगों को आकर्षित करने की ममता बनर्जी की कोशिशों में रुकावट बन रहा है. रोजमर्रा के जीवन में मुश्किलें आम जनता की नाराजगी को और बढ़ा रही हैं- यहां नौकरशाही की सुस्ती और सिस्टम की खामियों की कहानियां बहुत आम हो चली हैं.

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बंगाल के चुनावी मैदान के लिए बीजेपी की तैयारी की शांत और सटीक झलक 

2016 से ममता के खिलाफ लगातार हारने के बावजूद, बीजेपी ने विधानसभा चुनाव से महीनों पहले चुनावी तैयारियों शुरू कर दी हैं. इस जटिल राजनीतिक चाल में बीजेपी का संगठन पर इतना ध्यान वाकई ध्यान खींचता है. बिहार के नतीजे आने से पहले ही, बीजेपी के सेंट्रल कमांड ने छत्तीसगढ़, हिमाचल, हरियाणा और कर्नाटक जैसे छोटे राज्यों के रणनीति मंत्रियों और महासचिवों की एक सूची बना ली थी, जिन्हें पश्चिम बंगाल में तैनात करने की तैयारी थी. बंगाल बीजेपी संगठन में भीतरखाने चल रही राजनीतिक गुटबाजी को देखते हुए, इनमें से अधिकतर रणनीतिकार बाहरी राज्यों के हैं, ताकि वो बिना किसी स्थानीय दबाव के, पेशेवर तरीके से निष्पक्ष होकर काम कर सकें.

2026 के विधानसभा चुनाव करीब आते ही पश्चिम बंगाल का राजनीतिक माहौल पूरी तरह गरम हो चुका है. बीजेपी इस चुनाव को सिर्फ राज्य की लड़ाई नहीं, बल्कि अपनी राष्ट्रीय साख से जुड़ा महत्व‍पूर्ण मुकाबला मान रही है. इसी वजह से वह बड़ी सावधानी से बनी रणनीति के साथ ममता की अगुवाई वाले टीएमसी के गढ़ में सेंध लगाने की तैयारी कर रही है. इस रणनीति का सबसे अहम हिस्सा है एक ‘क्रैक टीम' बनाना, जिसका काम है पूरे बंगाल में पहुंच बढ़ाना, संगठन को मजबूत करना और वोटरों को बड़े पैमाने पर सक्रिय करना.

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Photo Credit: PTI

6 अलग-अलग चुनावी क्षेत्रों वाले बंगाल का बदलता राजनीतिक नक्शा

इस रंग-बिरंगी (कैलीडोस्कोप जैसी) योजना में बंगाल को छह अलग-अलग राजनीतिक जोन में बांटा गया है. हर जोन की जिम्मेदारी ऐसे नेता को दी गई है, जिनका चुनावी चुनौतियों से निपटने का अनुभव अच्छा रहा है, या जो दूसरे राज्यों में संगठन को मजबूती से चलाने का अनुभव रखते हैं. यह बारीकी से बनाई गई रणनीति बीजेपी के दो बड़े मकसद साफ दिखाती है:

पहला— टीएमसी की जिलास्तर पर बनी मजबूत पकड़ को कमजोर करना, और

दूसरा— अपने बूथ स्तर के संगठन को मजबूत करना, खासकर उन इलाकों में जहां 2021 के चुनाव में पार्टी कमजोर साबित हुई थी.

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1. दार्जिलिंग और फूटहिल्स: नैरेटिव वॉर जोन

प्रदीप भंडारी – बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता और पूर्व टीवी पत्रकार

पंकज कुमार सिंह – पूर्व आईपीएस अधिकारी, पूर्व डिप्टी एनएसए, और अलग गोरखालैंड की मांग पर गोरखा नेताओं से बातचीत कराने वाले मध्यस्थ

बीजेपी की सबसे मजबूत पकड़ उत्तर बंगाल में है, जो भूटान, नेपाल और असम से घिरा हुआ इलाका है. गोरखालैंड का इलाका—खासकर खूबसूरत दार्जिलिंग—बीजेपी के लिए बेहद रणनीतिक माना जाता है. 2021 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने अलीपुरद्वार और दार्जिलिंग में जबरदस्त जीत दर्ज की थी. इस क्षेत्र की सभी 10 सीटें बीजेपी के खाते में गई थीं. यहां टीएमसी को एक भी सीट नहीं मिली थी. कूचबिहार में भी बीजेपी ने शानदार प्रदर्शन किया था और 9 में से 7 सीटें जीती थीं. अब नैरेटिव की इस लड़ाई में बीजेपी की रणनीति को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी दो लोगों को दी गई है—प्रदीप भंडारी, जो नैरेटिव बनाने में माहिर माने जाते हैं, और पंकज कुमार सिंह, जो गोरखा नेताओं के साथ बातचीत कराने वाले मुख्य मध्यस्थ रहे हैं.

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2. रार बंगा बेल्ट: बीजेपी के विस्तार का अगुवा क्षेत्र

पवन कुमार साई- छत्तीसगढ़ में बीजेपी के राज्य महासचिव (संगठन)

डॉ. धन सिंह रावत- उत्तराखंड की बीजेपी सरकार में स्वास्थ्य, शिक्षा और सहकारिता मंत्री 

रार (लाल माटी वाला) इलाका पश्चिम बंगाल का वो भौगोलिक क्षेत्र है, जहां दामोदर, अजय और मयूराक्षी नदियां बहती हैं. यह छोटानागपुर पठार और गंगा डेल्टा के बीच में स्थित है. इसमें पुरुलिया, बांकुड़ा, बीरभूम, पूर्व और पश्चिम बर्धमान जिले शामिल हैं. इनमें से नया बना पश्चिम बर्धमान जिला का मुख्यालय आसनसोल सबसे बड़ा शहर है. आसनसोल-बर्नपुर-दुर्गापुर का औद्योगिक क्षेत्र बड़ी संख्या में गैर-बंगाली, खासकर बिहार और उत्तर प्रदेश से आए मजदूरों से भरा है. इस वजह से हिंदीभाषी आबादी के बीच बीजेपी की स्वाभाविक पकड़ है. 2024 के लोकसभा चुनाव में भी टीएमसी ने आसनसोल और बर्धमान-दुर्गापुर सीटें जीतने के लिए बिहारी नेताओं, जैसे शत्रुघ्न सिन्हा (जिन्होंने 2019 में भी जीते थे) और कीर्ति आजाद को टिकट दिया था. 

रार बंगाल इलाका 2019 के बाद बीजेपी का सबसे मजबूत और उम्मीदों वाला क्षेत्र माना जाता है. इसी वजह से पार्टी ने छत्तीसगढ़ से संगठन के अनुभवी नेता पवन साई को यहां की जिम्मेदारी दी है, और उनके साथ उत्तराखंड के धन सिंह रावत को सहयोगी नेता बनाया है. यह टीम न केवल संगठन को मजबूत करने पर ध्यान देगी, बल्कि उन कल्याणकारी योजनाओं पर भी फोकस करेगी, जिनसे बीजेपी को पहले फायदा मिला था. कल्याणकारी योजनाओं पर जोर यह दिखाता है कि पार्टी समझती है कि इस क्षेत्र में वोटिंग पर सामाजिक और आर्थिक विकास का बड़ा असर पड़ता है.

3. हावड़ा–हुगली–मिदनापुर त्रिकोणः एक अस्थिर राजनीतिक केंद्र

पवन राणा – हिमाचल प्रदेश में बीजेपी के राज्य संगठन महासचिव

संजय भाटिया – हरियाणा के पूर्व सांसद और बीजेपी के राज्य महासचिव

हावड़ा–हुगली–मिदनापुर क्षेत्र में बीजेपी का प्रदर्शन अलग-अलग रहा. पार्टी ने यहां अधिकतर सीटें मिदनापुर जिले से हासिल की थीं लेकिन हावड़ा और हुगली में एक भी सीट नहीं जीती. 2021 में टीएमसी ने इस पूरे क्षेत्र की सभी सीटों पर जीत दर्ज की थी. इसी वजह से बीजेपी ने इस राजनीतिक रूप से संवेदनशील इलाके—हावड़ा, हुगली और मिदनापुर—के लिए पवन राणा और संजय भाटिया को जिम्मेदारी सौंपी है, ताकि टीएमसी की मजबूत स्थानीय मशीनरी के खिलाफ रणनीति बनाई जा सके. बीजेपी मानती है कि इस प्रतिस्पर्धी इलाके में मजबूत जमीनी नेतृत्व की जरूरत है. यह रणनीतिक कदम दिखाता है कि पार्टी न केवल खोए हुए मैदान पर अपना दावा करना चाहती है बल्कि इन अहम क्षेत्रों में राजनीतिक समीकरण भी बदलना चाहती है.

4. कोलकाता मेट्रोपॉलिटन और दक्षिण 24 परगना: शहरी किले में सेंध लगाना

एम. सिद्धार्थन, जो हिमाचल प्रदेश में बीजेपी के संगठन के महासचिव के तौर पर काम कर रहे थे, उन्हें अब पश्चिम बंगाल में कोलकाता और दक्षिण 24 परगना जोन के लिए जिम्मेदार बनाया गया है.

चिक्कमगरावल्ली थिम्मे रवि गौड़ा (सीटी रवि) कर्नाटक से बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव हैं. उन्होंने चिकमगलुर सीट से चार बार चुनाव जीता है और कर्नाटक में कैबिनेट मंत्री भी रह चुके हैं.

कोलकाता मेट्रोपॉलिटन इलाका टीएमसी के मजबूत प्रभाव वाला इलाका माना जाता है. यह क्षेत्र बीजेपी के लिए एक खास चुनौती पेश करता है. सिद्धार्थन और रवि को यहां भेजकर, बीजेपी इस शहरी किले के चारों ओर लंबे समय से बनी अटूट छवि को तोड़ने की कोशिश कर रही है. मजेदार यह है कि बीजेपी भारत के अन्य राज्यों में शहरी पार्टी मानी जाती है, लेकिन बंगाल में ऐसा नहीं है, जहां शहरी इलाकों में जमीनी स्तर पर टीएमसी मजबूत है. इस नई स्ट्राइक टीम का मकसद है कि वे नए तरीके अपनाकर मतदाताओं तक पहुंचें, और यही सबसे जरूरी है ताकि बंगाल के शहरी इलाकों में बीजेपी की सीमित लोकप्रियता के बारे में बनी धारणाओं को तोड़ा जा सके.

5. नबाद्वीप और उत्तर 24 परगना: ध्रुवीकरण वाला इलाका

मधुकर नुकाला आंध्र प्रदेश में राज्य बीजेपी के महासचिव हैं.

धार्मिक नजरिए से बेहद महत्वपूर्ण इस इलाके में जनसंख्या लगातार बदल रही है. इसकी जिम्मेदारी एन. मधुकर को सौंपी गई है. 2021 में बीजेपी ने 24 परगना के पांच सीटों पर जीत हासिल की थी, लेकिन बाकी जगह टीएमसी ने बाजी मार ली. बीजेपी का मानना है कि यहां अभी भी छिपी हुई संभावनाएं मौजूद हैं. उनका मानना है कि भले ही पार्टी की उपस्थिति यहां कमजोर है, फिर भी लोग इसे समर्थन देते हैं. इस जिले में बड़ी मुस्लिम आबादी है, और कई सीटें, खासकर बोंगांव और बसीरहाट के इलाके में, जैसे मुर्शिदाबाद जिले में मुस्लिम मतदाता बहुमत में हैं. पार्टी की रणनीति इन धार्मिक रूप से संवेदनशील इलाकों में काफी नाजुक और सोची-समझी होगी, ताकि मतदाताओं की राय को बदलकर पार्टी की जमीन पर पकड़ मजबूत की जा सके.

6. उत्तर बंगाल: पेचीदगी और अनिश्चितताएं

त्तर बंगाल हमेशा बीजेपी का मजबूत इलाका रहा है, लेकिन अब यहां की राजनीति काफी बंटी हुई दिख रही है. मालदा और सिलीगुड़ी में बीजेपी नेताओं को जिम्मेदारी दी गई है. पार्टी का ध्यान अब छोटे स्तर पर काम करने और जातीय गठबंधनों को संभालने पर केंद्रित लगता है, ताकि इस अहम इलाके में अपनी पहले जैसी पकड़ फिर से बनाई जा सके.

मौजूदा मुश्किलों के बीच दीर्घकालीक योजनाएं

बंगाल, अपनी जटिल ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पहचान के चलते बीजेपी के लिए एक लंबी अवधि का प्रोजेक्ट बना हुआ है. 2019 में पार्टी ने जबरदस्त रफ्तार दिखाई थी, तब उसने 40% वोट हासिल किए और बंगाल की 42 लोकसभा सीटों में से 18 पर कब्जा किया था. पर चुनावी रास्ते हमेशा आसान नहीं होते. 2021 के विधानसभा चुनावों में इसकी कमजोरी सामने आई. ममता बनर्जी के नेतृत्व वाले टीएमसी ने जोरदार वापसी की और 213 सीटें जीत लीं. बीजेपी का वोट शेयर थोड़ा घट कर 39% रह गया, लेकिन उसे केवल 77 सीटें मिलीं. यह एक चेतावनी भरे सबक की तरह साबित हुई.

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लोकनीति-सीएसडीएस के सर्वे के मुताबिक, टीएमसी को मुस्लिम मतदाताओं का समर्थन 2019 के लोकसभा चुनावों में 70% से बढ़कर 2021 के विधानसभा चुनावों में 75% हो गया. वहीं, हिंदू मतदाताओं में भी टीएमसी का समर्थन बढ़कर 32% से 39% हो गया. बीजेपी के लिए खबर कुछ अच्छी नहीं रही, उसे हिंदू मतदाताओं का समर्थन 2019 के लोकसभा चुनावों में हासिल हुए 57% से घटकर 2021 के विधानसभा चुनावों में 50% रह गया.

बीजेपी अब इस्तीफों की वजह से 65 सीटों तक रह गई है, लेकिन उसका वोट शेयर अभी भी 39% है. इससे पता चलता है कि उसकी विचारधारा अब भी लोगों के बीच असर रखती है. पार्टी की रणनीति सिर्फ चुनाव प्रचार तक सीमित नहीं है. खासकर अनुसूचित जातियों के बीच बीजेपी स्थानीय कहानियों और समुदाय के अनुभवों से जुड़कर अपनी पकड़ मजबूत करती है.

बीजेपी का नमसुद्रा (मटुआ) और राजबंशी समुदाय में जुड़ाव

बंगाल में मुस्लिम आबादी 27% से अधिक है, जो असम के 34.22% के बाद दूसरे नंबर पर है. राज्य में अनुसूचित जातियों की आबादी भी लगभग 23.5% है, जो इसे इस मामले में तीसरे स्थान पर लाती है. इन समुदायों में अधिकतर राजबंशी, नमसुद्रा और मटुआ हैं. नमसुद्रा एक अनुसूचित जाति समूह है, जबकि मटुआ एक धार्मिक संप्रदाय है, जो जातिवाद के खिलाफ नमसुद्रा समुदाय के भीतर बना था.

उत्तर 24 परगना के बोंगांव उप-क्षेत्र, नदिया, कूचबिहार, दिनाजपुर और बर्धमान के अन्य मटुआ गढ़ों की तरह, मटुआ वोटों के लिए एक प्रमुख चुनावी मैदान है और टीएमसी और बीजेपी के बीच सत्ता पर नियंत्रण की लड़ाई का केंद्र है. 

मटुआ समुदाय की आबादी लगभग 50 मिलियन है, जिनमें से करीब 30 मिलियन लोग पश्चिम बंगाल में रहते हैं और 15 मिलियन मतदाता हैं. यह समुदाय 19वीं सदी के अविभाजित बंगाल से जुड़ा है और माना जाता है कि ये लगभग 30 विधानसभा सीटों के नतीजे बदल सकते हैं और अन्य 50 सीटों पर भी असर डाल सकते हैं.

प्रधानमंत्री मोदी ने 26 मार्च, 2021 को बांग्लादेश की यात्रा के दौरान मटुआ संप्रदाय के संस्थापक हरिचंद ठाकुर को उनके पवित्र मंदिर में श्रद्धांजलि दी. इसके बाद बीजेपी की मटुआ, नमसुद्रा और राजबंशी जैसे अनुसूचित जाति समुदायों में मजबूत लोकप्रियता बनी हुई है.

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2019 के लोकसभा चुनावों के बाद से बीजेपी और टीएमसी दोनों ने मटुआ समुदाय को लुभाने की पूरी कोशिश की है. 2019 में बीजेपी ने टीएमसी के मजबूत इलाके उत्तर 24 परगना में अपनी पकड़ बनाई. उत्तर 24 परगना में 33 से ज्यादा विधानसभा सीटें हैं और 2016 में टीएमसी ने 27 सीटें जीती थीं. 2019 के लोकसभा चुनावों में मटुआ समुदाय के समर्थन से टीएमसी 12 विधानसभा क्षेत्रों में बीजेपी से हार गई. बीजेपी ने मटुआ वोट बैंक के दम पर बर्कापोर और बोंगांव लोकसभा सीटों पर कब्जा किया. यह जीत नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के वादे की वजह से मिली, जिसमें पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए हिंदू, सिख, पारसी, बौद्ध और जैन को नागरिकता देने का प्रावधान था.

बीजेपी पश्चिम बंगाल में मटुआ समुदाय तक अपनी पहुंच बढ़ा रही है. पार्टी आगामी विधानसभा चुनावों से पहले सीएए कैंप और गली नुक्कर पर बैठकों जैसी पहलों पर ध्यान दे रही है. बीजेपी इस रणनीति पर जोर दे रही है और यह भी मान रही है कि मुस्लिम वोटों का एक बड़ा हिस्सा टीएमसी के पास जाने की संभावना है. इसके अलावा बीजेपी ने अपने प्रचार अभियान को मजबूत करने के लिए सांस्कृतिक जुड़ाव की रणनीति भी शुरू की है.

बड़ी लड़ाई से पहले की तैयारी

बीजेपी का जमीनी स्तर पर काम शुरू करने का जोश यह दिखाता है कि पार्टी का अभियान सिर्फ मौसमी नहीं है. यह उस पार्टी का अंदाज है जो चुनावी प्रक्रिया को पूरे समय चलने वाला काम समझती है. बिहार से बंगाल में अनुभवी नेताओं को जल्दी तैनात करना सिर्फ संगठनात्मक कदम नहीं है, बल्कि यह बीजेपी की राजनीतिक सूझबूझ और चुनाव से पहले नैरेटिव गढ़ने की तैयारी को दर्शाता है. पश्चिम बंगाल जैसे समृद्ध और उतार चढ़ाव वाले इलाके में हर कदम, हर रणनीतिक फैसला बड़े ध्यान से लिया जाता है, ताकि मतदाताओं की बदलती भावनाओं के साथ तालमेल बिठाया जा सके. आने वाले चुनावों के मुहाने पर खड़े होकर सिर्फ सत्ता की लड़ाई नहीं, बल्कि नैरेटिव, महत्वाकांक्षाओं और अपनेपन की हमेशा रहने वाली तलाश का जटिल तालमेल दिखाई देती है. बीजेपी इस जटिल खेल में पूरी तरह उतरने को तैयार है, यह दिखाते हुए कि राजनीति के मैदान में सही समय, रणनीति और संगठन ही चुनावी जीत हासिल करने का रास्ता है.

तूफान से पहले की खामोशीः साधारण मगर असरदार पहल

बीते चुनावों की तेज रफ्तार और जोरदार मुहिमों के बजाय, बीजेपी इस बार चुनाव से पहले की तैयारी में धीमी और सतर्क कदम उठा रही है. पार्टी स्थानीय स्तर पर संपर्क बनाने पर ध्यान दे रही है, जैसे कि मटुआ समुदाय तक पहुंच बनाना, सीएए कैंप और गली-नुक्कड़ों की बैठकों के जरिए लोगों तक पहुंचना. मुस्लिम मतदाताओं में टीएमसी से संभावित नुकसान को देखते हुए, बीजेपी की सांस्कृतिक जुड़ाव की रणनीति विभिन्न समुदायों के बीच अपनी छवि मजबूत करने और पारंपरिक वोट बैंक को लुभाने पर आधारित है.

पश्चिम बंगाल में 2026 के विधानसभा चुनाव सिर्फ बीजेपी की राजनीतिक दशा दिशा तय करने का मौका नहीं होंगे, बल्कि यह भारतीय राजनीति के बड़े परिदृश्य पर भी असर डालेंगे. एक मजबूत संगठन और सोच-समझकर तैयार की गई रणनीति के साथ बीजेपी अपनी राजनीतिक मशीन को उस अहम लड़ाई के लिए तैयार कर रही है जिसे वह निर्णायक मानती है.

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