'मजबूरी वाली आवश्यकता' : दिल्ली पुलिस कमिश्नर राकेश अस्थाना की नियुक्ति का केंद्र ने SC में किया बचाव

एनजीओ सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (CPIL ) ने राकेश अस्थाना की नियुक्ति को चुनौती दी है और इसपर आज ही सुनवाई होनी है. इसके खिलाफ केंद्र ने हलफनामा दाखिल कर कहा है कि अस्थाना को दिल्ली में कानून-व्यवस्था की हालिया स्थिति पर प्रभावी पुलिसिंग प्रदान करने के लिए चुना गया था.

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राकेश अस्थाना की दिल्ली पुलिस आयुक्त के तौर पर नियुक्ति के खिलाफ SC में याचिका. (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:

राकेश अस्थाना की दिल्ली पुलिस के आयुक्त के तौर पर नियुक्ति का मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा हुआ है. बुधवार को इस मामले में दाखिल एक याचिका पर केंद्र ने हलफनामा जारी किया है. सुप्रीम कोर्ट को दिए गए हलफनामे में केंद्र सरकार ने अस्थाना की नियुक्ति का बचाव किया है. राकेश अस्थाना की नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र ने जवाब दाखिल किया है. केंद्र ने कहा है कि राकेश अस्थाना जैसे किसी व्यक्ति को दिल्ली पुलिस बल का नेतृत्व सौंपना एक 'मजबूरी वाली आवश्यकता' थी और अस्थाना को 'जनहित में' अंतर-कॉडर प्रतिनियुक्ति और सेवा का विस्तार दिया गया था.

केंद्र का कहना है कि अस्थाना की नियुक्ति दिल्ली की सार्वजनिक व्यवस्था की 'बेहद चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों', पुलिस के मुद्दों और राष्ट्रीय सुरक्षा पर उनके प्रभाव को देखते हुए की गई और उनकी नियुक्ति में कोई अवैधता नहीं हैं. केंद्र ने कहा है कि नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिकाएं खारिज हों.

दरअसल, एनजीओ सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (CPIL ) ने राकेश अस्थाना की नियुक्ति को चुनौती दी है और इसपर आज ही सुनवाई होनी है. केंद्र ने कहा है कि अस्थाना को दिल्ली में कानून-व्यवस्था की हालिया स्थिति पर प्रभावी पुलिसिंग प्रदान करने के लिए चुना गया था.

और क्या हैं केंद्र के तर्क

केंद्र ने अपने हलफनामे में कहा कि यह महसूस किया गया कि विभिन्न राजनीतिक और कानून व्यवस्था की समस्या वाली दिल्ली के लिए सीबीआई व अर्धसैन्य बल और पुलिस बल में काम करने वाले अधिकारी की जरूरत है. इस तरह का अनुभव अधिकारियों के वर्तमान पूल में नहीं था,  इसलिए सार्वजनिक हित में अस्थाना को दिल्ली पुलिस आयुक्त बनाने का निर्णय लिया गया.

गृह-मंत्रालय ने हलफनामे में कहा कि अस्थाना को चुनने के पर्याप्त तर्क के अलावा प्रकाश सिंह मामले में सुप्रीम कोर्ट के 2016 के आदेश का भी पालन किया गया है और उनकी नियुक्ति में कोई प्रक्रियात्मक या कानूनी खामी नहीं है.

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