बिहार की प्रचंड जीत के बाद अब मोदी सरकार ने सुधारों की दिशा में बड़ा और निर्णायक कदम बढ़ा दिया है. लंबे समय से ठंडे बस्ते में पड़े सुधारों को नई गति दी जा रही है. बिहार विधानसभा चुनाव में मिली जीत ने केंद्र की मोदी सरकार के लिए एक शक्तिशाली 'बूस्टर डोज़' का काम किया है. पिछले कुछ समय से जो आर्थिक और ढांचागत सुधार राजनीतिक नफ़ा-नुकसान के गणित में उलझकर ठंडे बस्ते में पड़े थे, उन्हें अब नई 'ऑक्सीजन' मिल गई है. आगामी शीतकालीन सत्र में सरकार का आत्मविश्वास और तेवर दोनों बदले हुए नज़र आएंगे, जिसका असर संसद की कार्यवाही और नए विधेयकों पर दिखना तय है.
इसकी शुरुआत पांच साल से ठंडे बस्ते में पड़े लेबर कोड को लागू कर की गई. मोदी सरकार का यही हौंसला सोमवार से शुरू हो रहे शीतकालीन सत्र में भी दिखाई देगा. सरकार एटमी ऊर्जा से लेकर उच्च शिक्षा और बीमा क्षेत्र में एफडीआई से लेकर वित्तीय सुधार के कई महत्वपूर्ण बिल लाने जा रही है. ये सभी सुधारों की रफ्तार को और तेज करेंगे.
इनमें सबसे अहम है एटॉमिक एनर्जी बिल, 2025, जो पहली बार भारत के न्यूक्लियर सेक्टर में निजी कंपनियों की भागीदारी का रास्ता खोलेगा. यह कदम ऊर्जा सुरक्षा और निवेश आकर्षण के लिहाज से ऐतिहासिक माना जा रहा है. स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कल इस बारे में कहा कि यह बड़े सुधार होने जा रहे हैं.
अब तक परमाणु ऊर्जा पर सरकार का पूर्ण एकाधिकार था, लेकिन सरकार एक ऐसा ऐतिहासिक बिल लाने की तैयारी में है जो इस संवेदनशील क्षेत्र में प्राइवेट सेक्टर की एंट्री का रास्ता साफ़ करेगा. छोटे मॉड्यूलर रिएक्टरों और स्वच्छ ऊर्जा के उत्पादन में निजी निवेश को मंज़ूरी देना एक क्रांतिकारी कदम होगा, जो भारत की ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए गेम-चेंजर साबित हो सकता है.
इसके अलावा, उच्च शिक्षा के क्षेत्र में भी बड़े सुधारों की रूपरेखा तैयार है. राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुरूप, सरकार उच्च शिक्षा आयोग के गठन और विदेशी विश्वविद्यालयों के लिए भारत के दरवाज़े खोलने जैसे कड़े फ़ैसले ले सकती है.
वित्तीय क्षेत्र में कॉर्पोरेट लॉज अमेंडमेंट बिल, आर्बिटेशन बिल, सिक्योरिटीज मार्केट्स कोड बिल और कॉरपोरेट लॉज़ अमेंडमेंट बिल निवेशकों के लिए पारदर्शिता और ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस को बढ़ावा देंगे. बीमा क्षेत्र में सुधार के लिए इंश्योरेंस लॉज़ अमेंडमेंट भी लाया जाएगा. इसके बाद 100 प्रतिशत विदेशी निवेश की अनुमति मिल जाएगी. राजमार्गों के निर्माण के लिए पारदर्शी और त्वरित गति से भूमि अधिग्रहण के लिए भी बिल लाया जा रहा है.
सरकार का मानना है कि ये सुधार भारत की आर्थिक संरचना को नई दिशा देंगे. पहले ही लेबर कोड लागू कर सरकार ने श्रम बाजार में लचीलापन और श्रमिक अधिकारों का संतुलन साधने की कोशिश की थी. अब ऊर्जा, वित्त और शिक्षा जैसे क्षेत्रों में सुधारों की नई लहर संसद में दिखाई देगी.
विपक्ष इन सुधारों पर तीखा रुख अपनाने की तैयारी में है. विपक्ष का कहना है कि न्यूक्लियर एनर्जी में निजी क्षेत्र की एंट्री से राष्ट्रीय सुरक्षा और संवेदनशील तकनीक पर खतरा बढ़ सकता है. वहीं उच्च शिक्षा सुधार को लेकर विपक्ष का कहना है कि इससे शिक्षा का निजीकरण बढ़ेगा और गरीब छात्रों के लिए अवसर सीमित होंगे.वित्तीय और बीमा क्षेत्र के सुधारों पर विपक्ष का आरोप है कि यह कॉरपोरेट हितों को साधने के लिए हैं, जबकि आम जनता को राहत नहीं मिलेगी. इसी तरह राजमार्गों के लिए भूमि अधिग्रहण बिल पर विपक्ष सवाल उठा सकता है.
विपक्ष संसद में इन बिलों को लेकर सरकार को घेरने की कोशिश करेगा, लेकिन बिहार की जीत से मिले आत्मविश्वास के साथ सरकार का तेवर बदला हुआ है. संकेत साफ हैं कि इस बार सुधारों को ठंडे बस्ते में नहीं डाला जाएगा, बल्कि उन्हें राजनीतिक ऑक्सीजन मिल चुकी है.कुल मिलाकर, बिहार के जनादेश ने सरकार को यह विश्वास दिलाया है कि जनता कड़े, लेकिन आवश्यक सुधारों के पक्ष में है. इस राजनीतिक पूंजी का इस्तेमाल करते हुए, मोदी सरकार शीतकालीन सत्र में 'रिफॉर्म के एक्सलरेटर' पर पैर रखने वाली है. विपक्ष के विरोध के बावजूद, सरकार का एजेंडा स्पष्ट है: बिना रुके और बिना झुके आर्थिक सुधारों को गति देना.














