मुश्किलों से घिरा रहा है मायावती को सफर, क्या बसपा को भंवर से निकाल पाएंगी बहनजी

बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती पहली बार 1995 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठी थीं. इस कुर्सी पर बैठने वाली देश की पहली दलित महिला थीं. वो चार उत्तर प्रदेश का सीएम रहीं. लेकिन इन दिनों उनकी पार्टी की लोकप्रियता में जबरदस्त गिरावट आई है.

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नई दिल्ली:

उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और बसपा नेता मायावती का आज 69वां जन्मदिन है. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने उन्हें जन्मदिन की शुभकामनाएं दी हैं. मायावती की पार्टी बहुजन समाज पार्टी उनका जन्मदिन कल्याणकारी दिवस के रूप में मना रही है. देश और उत्तर प्रदेश की राजनीति में बसपा के सितारे इन दिनों गर्दिश में चल रहे हैं. ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि मायावती अपने जन्मदिन पर 2027 के विधानसभा चुनाव के लिए किसी रोडमैप की घोषणा कर सकती हैं. 

कहां हुआ था मायावती का जन्म

मायावती का जन्म 15 जनवरी 1956 को दिल्ली में हुआ था. उनका परिवार आज के गौतम बुद्ध नगर के एक गांव का रहने वाला था. मायावती अपने भाई-बहनों में तीसरे नंबर की हैं.बहुत ही साधारण परिवार में पली-बढ़ीं मायावती ने संघर्ष के जरिए राजनीति में अपना मुकाम बनाया. उन्हें देश की पहली दलित महिला मुख्यमंत्री होने का गौरव हासिल है. वो चार बार अलग-अलग समय के लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठीं.

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कभी आयरन लेडी के नाम से मशहूर मायावती के सितारे राजनीति के मैदान में गर्दिश में चल रहे हैं. उत्तर प्रदेश में चार बार सरकार बनाने वाली बसपा का विधानसभा में केवल एक विधायक है. वहीं संसद में बसपा की संख्या शून्य है.इस हालात में मायावती के सामने सबसे बड़ी चुनौती बसपा को फिर से खड़ा करने की है. उम्मीद की जा रही है कि वो अपने जन्मदिन पर 2027 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए किसी रोडमैप का ऐलान करें. इसी वजह से मायावती ने अयोध्या के मिल्कीपुर में होने वाला विधानसभा चुनाव न लड़ने का फैसला किया है. 

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कैसी है बसपा की हालत

उत्तर प्रदेश की राजनीति में बसपा को प्रासंगिक बनाए रखने के लिए मायवती ने अपने जन्मदिन के अगले दिन पार्टी के वरिष्ठ पदाधिकारियों की बैठक बुलाई है. इस बैठक में पार्टी के सदस्यता अभियान, संगठन विस्तार, कार्यकर्ताओं का प्रशिक्षण कैंप आयोजित करने से लेकर गठजोड़ तक पर चर्चा हो सकती है. पार्टी की कोशिश अपने खोए हुए जनाधार को वापस पाने की है. इसके लिए वह अपने पुराने नेताओं और कार्यकर्ताओं को वापस लेने की कोशिशों में जुटी है. 

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बसपा अपना खोया हुआ जनाधार वापस पाने के लिए कितना परेशान है, इस बात से समझ सकते हैं कि एक समय उपचुनावों से दूरी बनाने वाली पार्टी उपचुनाव भी लड़ रही है. लेकिन उसे सफलता नहीं मिल रही है. पिछले साल नवंबर में हुए यूपी विधानसभा की नौ सीटों के उपचुनाव में बसपा ने सभी सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन उसे कहीं भी जीत नहीं मिली. कई जगह तो वो अपनी जमानत भी नहीं बचा पाई. ऐसा तब था जब उपचुनाव वाली सीटों में से कई पर पहले वो जीत दर्ज कर चुकी थी. इससे पहले वह लोकसभा चुनाव के साथ हुए पांच सीटों के उपचुनाव के मैदान में भी उतरी थी. लेकिन उसे कहीं सफलता नहीं मिली थी. 

किससे मिल रही है बसपा को चुनौती

उत्तर प्रदेश में बसपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी है. बसपा का वोट बैंक तेजी से उनकी तरफ शिफ्ट हो रहा है. चंद्रशेखर का मुकाबला करने के लिए मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद को पार्टी का राष्ट्रीय संयोजक बनाया लेकिन बात बनी नहीं. लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव में बसपा कोई भी सीट नहीं जीत सकी. ऐसे में लोगों की नजरें अब मायावती की तरफ हैं कि वो अपने जन्मदिन पर पार्टी को इस हाल से उबारने के लिए किस योजना का ऐलान करती हैं. 

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