मणिपुर हिंसा: सीबीआई ने 27 प्राथमिकियों की जांच की जिम्मेदारी संभाली

सूत्रों ने बताया कि नवीनतम आंकड़ों के अनुसार सीबीआई ने अब तक राज्य पुलिस द्वारा उसे सौंपे गए 27 मामलों में फिर से प्राथमिकी दर्ज की है. इनमें, महिलाओं के खिलाफ अपराध के 19, भीड़ द्वारा शस्त्रागार में लूट के तीन, हत्या के दो और दंगे व हत्या, अपहरण तथा सामान्य आपराधिक षडयंत्र से संबंधित एक-एक मामला शामिल है.

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नई दिल्ली: केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने मणिपुर में जातीय हिंसा के सिलसिले में दर्ज 27 प्राथमिकियों की जांच की जिम्मेदारी संभाल ली है, जिनमें 19 मामले महिलाओं के खिलाफ अपराध के हैं. अधिकारियों ने यह जानकारी दी. मणिपुर में लगभग चार महीने पहले शुरू हुई हिंसा में 160 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है.

घटनाक्रम से अवगत सूत्रों ने बताया कि नवीनतम आंकड़ों के अनुसार सीबीआई ने अब तक राज्य पुलिस द्वारा उसे सौंपे गए 27 मामलों में फिर से प्राथमिकी दर्ज की है. इनमें, महिलाओं के खिलाफ अपराध के 19, भीड़ द्वारा शस्त्रागार में लूट के तीन, हत्या के दो और दंगे व हत्या, अपहरण तथा सामान्य आपराधिक षडयंत्र से संबंधित एक-एक मामला शामिल है.

उन्होंने कहा कि एजेंसी ने इन मामलों को फिर से दर्ज किया है, लेकिन पूर्वोत्तर राज्य में मौजूदा स्थिति की संवेदनशीलता के कारण इनका विवरण सार्वजनिक नहीं किया है. सूत्रों ने बताया कि सीबीआई के दलों ने अपराध स्थलों के मुआयने के बाद संदिग्धों और पीड़ितों से पूछताछ शुरू कर दी है.

उन्होंने कहा कि सीबीआई के शीर्ष अधिकारियों ने मामलों की जांच के लिए देश भर में अपनी विभिन्न इकाइयों से 29 महिलाओं सहित 53 अधिकारियों की एक टीम बुलाई, जिसके बाद जांच में तेजी आई है. सूत्रों ने कहा कि सीबीआई ने मणिपुर में मामलों की जांच के लिए 30 अन्य अधिकारियों को तैनात किया है.

एजेंसी के करीब 100 अधिकारी 27 मामलों की जांच को अंजाम तक पहुंचाने के लिए जमीन पर काम कर रहे हैं. सूत्रों ने कहा कि मणिपुर में जातीय आधार पर समाज के बंटे होने के चलते सीबीआई के समक्ष जांच के दौरान पक्षपात के आरोपों से बचने की चुनौती है.

उच्चतम न्यायालय पहले ही मणिपुर हिंसा से जुड़े सीबीआई मामलों को असम स्थानांतरित करने का आदेश दे चुका है. उन्होंने कहा कि सीबीआई ऐसे कई मामलों की जांच कर रही है, जिनमें अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति अधिनियम, 1989 के प्रावधान लगाये जा सकते हैं. पुलिस उपाधीक्षक (डीएसपी) स्तर के अधिकारी ही इन मामलों की जांच कर सकते हैं.

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उन्होंने कहा कि चूंकि पुलिस उपाधीक्षक इन मामलों में पर्यवेक्षी (सुपरवाइजरी) अधिकारी नहीं हो सकते, इसलिए एजेंसी ने जांच की देखरेख और निगरानी के लिए पुलिस अधीक्षक रैंक के अपने एक अधिकारी को तैनात किया है.

सूत्रों ने बताया कि टीम में तीन उपहानिरीक्षक (डीआईजी) - लवली कटियार, निर्मला देवी और मोहित गुप्ता - तथा पुलिस अधीक्षक राजवीर भी शामिल हैं, जो समग्र जांच की निगरानी कर रहे एक संयुक्त निदेशक को रिपोर्ट करेंगे. उन्होंने कहा कि यह अपनी तरह की पहली तैनाती मानी जा रही है जहां इतनी बड़ी संख्या में महिला अधिकारियों को एक साथ तैनात किया गया है.

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उन्होंने बताया कि दो अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक और छह पुलिस उपाधीक्षक (सभी महिलाएं) भी 53 सदस्यीय दल का हिस्सा हैं. मणिपुर में अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मेइती समुदाय की मांग के विरोध में पर्वतीय जिलों में तीन मई को ‘आदिवासी एकजुटता मार्च' के आयोजन के बाद राज्य में भड़की जातीय हिंसा में अब तक 160 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है.

राज्य की आबादी में मेइती समुदाय की हिस्सेदारी करीब 53 प्रतिशत है और वे मुख्य रूप से इंफाल घाटी में रहते हैं. वहीं, नगा और कुकी जैसे आदिवासी समुदायों की आबादी 40 प्रतिशत है और उनमें से ज्यादातर पर्वतीय जिलों में रहते हैं.

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