35 साल के रोमेन फुकन को अभी भी भरोसा नहीं हो रहा है कि वह जिंदा हैं. उन्होंने पिछले हफ्ते मणिपुर में आए भूस्खलन की भयावह आंखों देखी कहानी बयां की. उनका कैंप भूस्खलन की चपेट में आ गया था, जिसके बाद चारों तरफ मदद के लिए चीख-पुकार ही सुनने को मिल रही थी. उन्होंने बताया कि कैसे उनके दोस्त ने उनकी जान बचाई, बाद में उनके सामने ही दोस्त ने दम तोड़ दिया.
फुकन उन 80 लोगों में शामिल थे, जो बुधवार की रात घटना स्थल पर मौजूद थे, जब एक विनाशकारी भूस्खलन नोनी जिले के तुपुल में उनके शिविरों को बहा ले गया. ये लोग पत्थर और मिट्टी के नीचे दब गए. अभी तक इसमें 42 लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी है.
फुकन असम के मोरीगांव के रहने वाले हैं. इसमें जख्मी होने के बाद उनका अभी इम्फाल में क्षेत्रीय आयुर्विज्ञान संस्थान में इलाज चल रहा है. वहां भूस्खलन के बाद बचाए गए दर्जनों अन्य लोग भी मौजूद हैं.
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वह पिछले पांच साल से एक प्राइवेट कंस्ट्रक्शन कंपनी में बतौर मजदूर काम कर रहे हैं. यह कंपनी केंद्र सरकार के मेगा प्रोजेक्ट 111 किलोमीटर लंबी जिरीबाम-इम्फाल रेल लिंक का काम कर रही है.
वह याद करते हुए बताते हैं, 'यह एक सामान्य रात थी - जब तक धरती हिल नहीं गई.'
असम से चार महीने पहले ही काम पर लौटे फुकन बताते हैं, 'हम एक फिल्म देख रहे थे और आधी रात के बाद सो गए थे. हम गहरी नींद में थे लेकिन भूकंप की तरह धरती के हिलने पर हमारी नींद खुल गई. जल्द ही पहाड़ी टूटकर नीचे आने लगी. चारों तरफ मिट्टी और पत्थर थे. हमारा कैंप और लोग नदी में बहकर चले गए.'
उन्होंने एनडीटीवी को बताया, 'मैं मिट्टी के नीचे दब गया था. लेकिन किसी तरह मैं कीचड़ को हटाने में कामयाब रहा.'
नदी का जलस्तर बढ़ रहा था और लोग मदद के लिए चिल्ला रहे थे. फुकन ने बताया, 'वे 'बचाओ बचाओ' चिल्ला रहे थे, लेकिन कोई भी दूसरे की मदद नहीं कर सका.'
फुकन ने बताया, 'मुझे मेरे दोस्त गोपाल फुकन ने बचाया. उसने मुझे पानी से दूर धकेल दिया. लेकिन कुछ देर बाद ही वह खुद कीचड़ में डूब गया. जैसे ही पानी का स्तर बढ़ा, मदद की पुकार सुनाई देना बंद हो गई.' अगली सुबह फुकन को ग्रामीणों ने बचाया.
मृतकों और घायलों में से करीब 25 असम के रहने वाले थे, राज्य सरकार शवों और घायल मजदूरों को वापस लाने के लिए काम कर रही है. असम के कैबिनेट मंत्री पीयूष हजारिका घायलों के इलाज के काम की की देखरेख कर रहे हैं.
टुपुल के ग्रामीणों का कहना है कि पहाड़ियों में भूस्खलन आम बात है, लेकिन एक पूरी पहाड़ी का टूटकर नीचे आ जाना, ऐसा उन्होंने कभी नहीं देखा.
बचाव अभियान में मदद कर रहे एक स्थानीय युवक कुमार खुंबा ने कहा, 'यह अब तक का सबसे बड़ा भूस्खलन है. हमने अब तक इतना बड़ा कुछ नहीं देखा है. स्थानीय लोगों ने हमारे पास जो कुछ भी है, उससे लोगों को कीचड़ से निकाला.'