मणिपुर हादसा भारत की सबसे भयावह भूस्खलन की घटनाओं में एक रही, कम से कम 50 जिंदा दफन हुए

घटना में जान गंवाने वाले 14 जवान गोरखा सैनिक हैं. बता दें कि युद्ध के अलावा गोरखा जवानों के हताहत होने की यह अब तक की सबसे बड़ी घटना है.

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भूस्खलन की घटना में कइयों की गई जान
नई दिल्ली:

रोमेन फुकन एक फिल्म देखकर सो रहे थे तभी उनके आसपास की दुनिया एकाएक ढह गई. घटना रेलवे निर्माण स्थल के पास की है, जहां एक ऊंची पहाड़ी पर भूस्खलन हुआ. 35 वर्षीय रोमेन यहीं काम कर रहे थे.ये भूस्खलन अभी तक देश के सबसे भायवह घटनाओं में से एक है. इस घटना में अभी तक कम से कम 48 लोगों के मारे जाने की खबर है. मरने वालों में सेना के 29 जवान भी शामिल हैं जो वहां उस दौरान निर्माण स्थल की सुरक्षा में तैनात थे. घटना में जान गंवाने वाले 14 जवान गोरखा सैनिक हैं. बता दें कि युद्ध के अलावा गोरखा जवानों के हताहत होने की यह अब तक की सबसे बड़ी घटना है. बचाव दल दिन रात एक करके उन लापता 13 लोगों की तलाश में जुटा है जिनका बीते कई दिनों से कोई सुराग तक नहीं मिला है. 

भूस्खलन की यह घटना देर रात को हुई, जब टुपुल जिले स्थित निर्माण स्थल पर ज्यादातर मजदूर जल्दी से जल्दी सोने की कोशिशों में जुटे थे. निर्माण स्थल इंफाल से दो घंटे की दूरी पर है. निमार्ण क्षेत्र पहाड़ के ठीक नीचे है. इसके आसपास दो नदियां हैं. घटना स्थल से महज 30 किलोमीटर दूर वह रेलवे ब्रिज बनना है, जो दुनिया में अपनी तरह का सबसे ऊंचा ब्रिज है. बता दें कि बीते एक महीने में पूर्वोत्तर के राज्यों में जबरदस्त बारिश हो रही है. असम में तो बाढ़ की ऐसी स्थिति है कि राज्य सरकार को हजारों लोगों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाना पड़ा है. 

इस इलाके में रेलवे लाइन का निर्माण मणिपुर के लिए काफी महत्वपूर्ण है. खासकर तब जब यह राज्य परिवहन के लिए सिर्फ सड़कों के जाल पर निर्भर है. यह प्रोजेक्ट पीएम मोदी की उस परियोजना का भी हिस्सा है जिसके तहत उन्होंने पूर्वोत्तर के सभी आठ राज्यों को रेलवे लाइन से जोड़ने की बात कही थी. राज्य के अंदरूनी हिस्सों तक रेलवे की कनेक्टिविट पहुंचाने के लिए कुल 12000 करोड़ रुपये का बजट है. इस रूट के निर्माण से मणिपुर समेत पूर्वोत्तर के तमाम राज्यों में उद्योग और व्यापार को बढ़ावा देने में भी मदद मिलेगा. 

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एनएफआर के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी (सीपीआरओ) सव्यसाची डे ने कहा कि भूस्खलन के बाद इस परियोजना से जुड़े तमाम सुरंग और ब्रिज सुरक्षित हैं. ज्यादातर जगहों पर भूस्खलन का असर हमारे ब्रिज और सुरंग पर नहीं पड़ा है. सिर्फ यार्ड स्टेशन को नुकसान पहुंचा है. लेकिन नुकसान का आकलन करने वाले पर्यावरणविद इससे सहमत नहीं हैं. "जब इस तरह की स्थलाकृति में एक रेलवे लाइन या सड़क का निर्माण किया जाता है, तो इसमें बहुत सारी वनस्पतियों को साफ करना, ढलान को काटना और उसके बाद मिट्टी भरना शामिल है, लेकिन हम देख रहे हैं कि ये गतिविधियां मिट्टी को बहुत ढीली कर दे रही है जिससे कटाव होने का खतरा बना रहता है. तमिलनाडु के भू विश्लेषक राज भारत पी ने रेलवे निर्माण स्थल से जुड़ी चार अलग-अलग उपग्रह चित्रों का अध्ययन किया.

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इन चित्रों में से एक 2009 का है, जो भूस्खलन की जगह पर हरी भरी पहाड़ी को दिखा रहा है. जबकि 2018 के चित्र में भूस्खलन वाली जगह पर स्लोप के साथ कटाव और इलाके से जंगल कम होते देखा जा सकता है. बता दें कि ये वही समय है जब इस इलाके में रेलवे का निर्माण कार्य शुरू हुआ था. निर्माण कार्य के बढ़ते रहने के साथ 2021 के चित्र में जंगल क्षेत्र में बड़ी कमी दिख रही है. चौथे चित्र में लाल रंग से उस पहाड़ी को दिखाया गया है जहां ये भूस्खलन हुआ है. 

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रेलवे अधिकारियों का दावा है कि उनके इंजीनियरों ने मणिपुर रेलवे परियोजना में 47 सुरंगों और 156 पुलों को सुरक्षित रखने के लिए किसी भी तरह की कमजोरियों को पहले ही दूर कर लिया है. विशेषज्ञों का कहना है कि मणिपुर में जहां मूसलाधार बारिश हुई, वहीं जून में सामान्य से करीब 25 फीसदी कम बारिश होती थी. इसलिए, भारी बारिश की वजह से भूस्खलन हुआ. 

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