आम को यूं ही फलों का राजा नहीं कहा जाता इसकी मिठास, सुगंध और स्वाद पूरे देश की गर्मियों को खास बना देता है. लेकिन इस बार सवाल उठ रहा है कि क्या इस साल आम उतना ही मीठा है जितनी उम्मीद थी? बगीचे से लेकर मंडियों तक, और मंडियों से लेकर महानगरों की दुकानों तक आम को लेकर तस्वीर पहले जैसी नहीं है. कहीं फसल बंपर है, तो कहीं मौसम और कीटों ने तबाही मचाई है.
उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में आम की फसल ने रिकार्ड तोड़े हैं, लेकिन कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में किसान नुकसान की बात कर रहे हैं. वहीं दिल्ली, मुंबई, चेन्नई जैसे बड़े शहरों में आम की कीमतें ₹100 से ₹180 किलो तक जा पहुंची हैं, जबकि बिहार-पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में यही आम ₹50–₹70 किलो में बिक रहा है. बढ़ती गर्मी, बदलते मौसम और किसानों की चुनौतियों के बीच आम केवल स्वाद का विषय नहीं रह गया यह एक आर्थिक मुद्दा बनता जा रहा है.
मौसम की मार ने आम को बना दिया खास?
भारत में गर्मियों का मतलब है आम का मौसम, और 2025 में यह मौसम हर क्षेत्र में अलग-अलग रंग लिए हुए है. उत्तर प्रदेश, खासकर मलिहाबाद और सहारनपुर, दशहरी और लंगड़ा आम की भरपूर पैदावार के साथ बागवानों के लिए खुशखबरी लेकर आया. इन क्षेत्रों में बाग खिले हुए हैं, और स्थानीय बाजारों में इन किस्मों की मांग ने किसानों के चेहरों पर मुस्कान बिखेर दी.
महाराष्ट्र में हापुस (अल्फोंसो) ने एक बार फिर अपनी बादशाहत कायम रखी. इसकी मलाईदार मिठास और निर्यात में बढ़ती मांग ने इसे बाजार का सितारा बनाया, लेकिन कुछ हिस्सों में असमय बारिश ने फसल को नुकसान पहुंचाया. हापुस की अंतरराष्ट्रीय मांग, खासकर यूरोप और खाड़ी देशों में काफी अधिक है.
दक्षिण भारत में स्थिति उतनी अनुकूल नहीं रही. कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में कीटों और ओलावृष्टि ने बंगनपल्ली और तोतापुरी जैसी किस्मों को प्रभावित किया. किसानों ने बताया कि फफूंदी और कीटों के हमले ने फसल की गुणवत्ता और मात्रा दोनों को कम किया. इसके उलट, बिहार और पश्चिम बंगाल में दूधिया मालदह, लंगड़ा और हिमसागर की अच्छी पैदावार ने स्थानीय बाजारों को मिठास से भर दिया. इन क्षेत्रों में कीमतें भी अपेक्षाकृत किफायती रहीं, जिससे आम आदमी की थाली तक ये फल आसानी से पहुंचा.
महानगरों में आम की क्या है कीमतें: जेब पर कितना असर?
भारत के बड़े शहरों में आम की कीमतें इस साल मौसम और क्षेत्रीय उपलब्धता के हिसाब से उतार-चढ़ाव भरी रहीं. दिल्ली में दशहरी और लंगड़ा 120-160 रुपये प्रति किलो के बीच बिके, जबकि मुंबई में हापुस और केसर की कीमतें 150-180 रुपये तक पहुंच गईं. चेन्नई में बंगनपल्ली और तोतापुरी 130-160 रुपये प्रति किलो रहीं, लेकिन कोलकाता और पटना जैसे शहरों में हिमसागर और मालदह 50-90 रुपये प्रति किलो की किफायती रेंज में उपलब्ध है.
शहर | औसत कीमत (₹/किलो) | प्रजातियां |
दिल्ली | ₹120 – ₹160 | दशहरी, लंगड़ा |
मुंबई | ₹150 – ₹180 | हापुस, केसर |
चेन्नई | ₹130 – ₹160 | बंगनपल्ली, तोतापुरी |
कोलकाता | ₹60 – ₹90 | हिमसागर, मालदह |
भारत में आम का कितना बड़ा है बाजार?
2024 में भारत ने लगभग 18-20 मिलियन टन आम का उत्पादन किया, जो 2023 के 20.77 मिलियन टन से थोड़ा कम था. यह गिरावट जलवायु परिवर्तन और क्षेत्रीय मौसम की अनियमितताओं का परिणाम रही. फिर भी, उद्योग विशेषज्ञों का अनुमान है कि 2030 तक भारत का आम उत्पादन 4.4% की वार्षिक वृद्धिी दर (CAGR) के साथ 23.3 मिलियन टन तक पहुंच सकता है. निर्यात के मोर्चे पर भारत ने शानदार प्रदर्शन किया. 2024 में आम के निर्यात में 20% की वृद्धि दर्ज की गई, जिसमें हापूस, बंगनपल्ली और केसर ने यूरोप, मध्य एशिया और खाड़ी देशों के बाजारों में धूम मचाई.
Fresh Fruit Portal की 2024 की रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीय आम की गुणवत्ता और स्वाद ने इसे वैश्विक बाजार में एक अलग पहचान दिलाई है.. खासकर हापूस की मांग ने भारत को आम निर्यात में शीर्ष स्थान पर बनाए रखा.
भारत की कौन-कौन सी है प्रमुख आम प्रजातियां
भारत में आम की विविधता इसकी सांस्कृतिक और कृषि धरोहर का हिस्सा है. यहां की सात प्रमुख प्रजातियां हर क्षेत्र में अपनी खासियत लिए हुए हैं:
- हापुस (Alphonso): मलाईदार गूदा, रेशा-रहित बनावट और तीव्र मिठास इसे निर्यात का सुपरस्टार बनाती है.
- केसर (Kesar): गुजरात की यह किस्म अपनी तीव्री खुशबू और सुनहरे रंग के लिए जानी जाती है.
- दशहरी (Dasheri): उत्तर भारत का गौरव, यह मध्यम मिठास और रसीलेपन के लिए लोकप्रिय है.
- बंगनपल्ली: दक्षिण भारत का बड़ा और रेशा-रहित आम, जो अक्सर कम आंका जाता है.
- लंगड़ा: बनारस की शान, इसका खट्टा-मीठा स्वाद इसे अनूठा बनाता है.
- हिमसागर: पश्चिम बंगाल की यह किस्म कम पैदावार के बावजूद मिठास में बेजोड़ है.
- तोतापुरी: अचार और सलाद के लिए मशहूर, इसका कम मीठा स्वाद इसे बहुमुखी बनाता है.
आम का क्या है इतिहास?
आम का इतिहास भारत की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर से गहराई से जुड़ा है. वैदिक काल में इसे "आम्र" कहा जाता था, और महाभारत, बौद्ध ग्रंथों और मुगलकालीन साहित्य में इसका विशेष उल्लेख मिलता है. मुगल सम्राट अकबर ने लखनऊ के दशहरी और फैजाबाद के लंगड़ा को बढ़ावा दिया, और उनके बागों में 300 से अधिक आम की किस्में उगाई गईं.
दूधिया मालदह: बिहार का गौरव
बिहार के दीघा, आरा और पटना में उगाया जाने वाला दूधिया मालदह अपनी सिल्की बनावट, दूध जैसी त्वचा और फाइबर-रहित मिठास के लिए मशहूर है. स्थानीय लोग इसे हापुस से भी बेहतर मानते हैं, और कहावत है, “खालो मालदह, भूल जाओ हापुस.” इस आम को GI टैग मिलने की प्रक्रिया चल रही है, जो इसे वैश्विक पहचान दे सकता है.
आम पर बढ़ता खतरा
2025 का आम मौसम जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से अछूता नहीं रहा. असमय बारिश, लू और तापमान में उतार-चढ़ाव ने कई क्षेत्रों में फूलों को झड़ा दिया, जिससे उत्पादन प्रभावित हुआ. कीट और फफूंदी जैसे रोगों ने भी फसल को नुकसान पहुंचाया. छोटे किसानों के लिए यह चुनौती और गंभीर रही, क्योंकि उनके पास कीटनाशक और सिंचाई की सुविधाएं सीमित हैं. आम अब सिर्फ एक फल नहीं, बल्कि जलवायु संकट और बाजार की असमानताओं का प्रतीक बनता जा रहा है.
2025 में भारत का आम मौसम मिठास और चुनौतियों का मिश्रण रहा. जहां कुछ क्षेत्रों में बंपर पैदावार ने बागवानों और ग्राहकों को खुशी दी, वहीं जलवायु परिवर्तन और कीटों ने कई किसानों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया. निर्यात में उछाल और दूधिया मालदह जैसी किस्मों की बढ़ती लोकप्रियता भारत के आम को वैश्विक मंच पर ले जा रही है. लेकिन, अगर मिठास को बरकरार रखना है, तो टिकाऊ खेती और जलवायु संरक्षण के कदम उठाने होंगे. आम सिर्फ फल नहीं, भारत की संस्कृति, स्वाद और संघर्ष की कहानी है.