मालेगांव में 29 सितंबर 2008 की रात क्या क्या हुआ था, कौन सी बाइक मिली थी

मालेगांव में जिस समय धमाका हुआ था, वह रमजान का महीना था और कुछ दिन बाद ही नवरात्रि शुरू होने वाली थी. घटना के समय लोग रोजा खोलने के बाद अपने घरों को लौट रहे थे.

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  • मालेगांव में 29 सितंबर 2008 को रमजान के दौरान एक बम धमाका हुआ था. इसमें छह लोगों की मौत हो गई थी.
  • धमाके के लिए इस्तेमाल की गई बाइक प्रज्ञा सिंह ठाकुर के नाम पर थी लेकिन अदालत ने इसे ठोस सबूत नहीं माना.
  • महाराष्ट्र पुलिस की एटीएस ने सेना के कर्नल प्रसाद पुरोहित और मेजर (रिटायर) रमेश उपाध्याय को गिरफ्तार किया था.
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नई दिल्ली:

मालेगांव महाराष्ट्र के नाशिक जिले का एक छोटा सा शहर है. इस शहर में 29 सितंबर 2008 को एक बम धमाका हुआ था. यह धमाका शहर के अंजुमन चौक और भीकू चौक के बीच स्थित शकील गुड्स ट्रांसपोर्ट के सामने हुआ था. इस धमाके में छह लोगों की मौत हो गई थी और 101 लोग घायल हुए थे.मुस्लिमबहुल मालेगांव अपने पॉवरलमू के कपड़ों के लिए मशहूर है.

मालेगांव में कब हुआ था धमाका 

मालेगांव में धमाका रमजान के महीने में हुआ था. घटना के समय लोग ईशा की नमाज और रोजा खोलने के बाद अपने घरों को लौट रहे थे.मालेगांव मुस्लिम बहुल शहर है. इसलिए इस धमाके में मरने वाले मुसलमान ही थे. इस बम धमाके में फरहीन ऊर्फ शगुफ्ता शेख लियाकत, शेख मुश्ताक यूसुफ, शेख रफीक मुस्तफा, इरफान जियाउल्लाह खान, सैयद अजहर सैयद निसार और हारुन शाह की मौत हो गई थी.इस मामले की जांच करने वालों का मानना था कि हमले की साजिश रचने वालों ने जान-बूझकर हमले के समय का चुनाव किया था. घटना के समय रमजान चल रहा था और नवरात्रि आने वाली थी. उनको लगा होगा कि इस दौरान धमाका होने से हिंदू और मुसलमान आपस में लड़ने लगेंगे. इस धमाके में मारी गईं 10 साल की फहरीन अपने परिवार के लिए खाना लेने गई थीं.

पुलिस के मुताबिक धमाके में इस्तेमाल की गई बाइक प्रज्ञा सिंह ठाकुर की थी. लेकिन अदालत ने इसे ठोस सबूत नहीं माना.

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इस मामले की जांच पहले स्थानीय पुलिस ने शुरू की थी. लेकिन बाद में सरकार ने इस मामले की जांच महाराष्ट्र पुलिस की आतंकवाद विरोधी बल (एटीएस) को सौंप दी गई. एटीएस ने हेमंत करकरे के नेतृत्व में इस मामले की जांच की थी. करकरे 26 नवंबर 2008 को मुंबई पर हुए हमले में शहीद हो गए थे. मुंबई में हुआ हमला मालेगांव धमाकों के करीब दो महीने बाद हुआ था. 

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एटीएस को जांच में पता चला कि धमाके के लिए एलएलएम फ्रीडम नाम की बाइक का इस्तेमाल किया गया था.उस पर रजिस्ट्रेशन नंबर (एमएच-15-पी-4572) का नंबर प्लेट लगा हुआ था. पुलिस ने इस नंबर को फर्जी बताया था. जांच में पता चला कि बाइक का रिजस्ट्रेशन प्रज्ञा सिंह ठाकुर के नाम पर था.प्रज्ञा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की सदस्य रह चुकी थीं.एटीएस ने इस मामले की जांच पुणे, नासिक, भोपाल और इंदौर तक की. 

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इस दौरान सेना के एक सेवारत अधिकारी कर्नल प्रसाद पुरोहित और सेवानिवृत मेजर रमेश उपाध्याय का नाम सामने आया था. इन दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया था.कर्नल पुरोहित को मुंबई के कोलाबा स्थिति सेना के एक परिसर से गिरफ्तार किया गया था. एटीएस को जांच में पता चला कि पुरोहित 'अभिनव भारत' का नाम का एक हिंदूवादी संगठन चलाते थे. जांच में सुधाकर द्विवेदी उर्फ दयानंद पांडेय का नाम भी आया.एटीएस ने इस मामले में प्रज्ञा सिंह ठाकुर, कर्नल प्रसाद पुरोहित, मेजर रमेश उपाध्याय (सेवानिवृत्त) के अलावा अजय राहिरकर, सुधाकर द्विवेदी, सुधाकर चतुर्वेदी और समीर कुलकर्णी को गिरफ्तार किया था.

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अदालत ने कर्नल प्रसाद पुरोहित के खिलाफ पेश सबूतों को नहीं माना और उन्हें बरी कर दिया.

आरोपियों पर कौन सी धाराएं लगाई गई थीं

साल 2011 में इस मामले की जांच महाराष्ट्र पुलिस के आतंकवाद निरोधक दस्ते (एटीएस) से लेकर राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को सौंप दी गई थी. एनआईए का गठन आतंकवाद से जुड़े मामलों की जांच के लिए किया गया था. एनआईए ने यूएपीए की धारा 16 (आतंकवादी कृत्य करना) और 18 (आतंकवादी कृत्य करने की साजिश रचना) और भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराएं शामिल थीं. इनमें 120 (बी) (आपराधिक साजिश), 302 (हत्या), 307 (हत्या का प्रयास), 324 (स्वेच्छा से चोट पहुंचाना) और 153 (ए) (दो धार्मिक समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना) के साथ आरोप पत्र दाखिल किया था. एनआईए की एक विशेष अदालत ने इस मामले के सभी आरोपियों को विश्वसनीय और ठोस सबूत के अभाव में बरी कर दिया. 


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