प्रज्ञा सिंह: कैसे "आतंकवादी" के ठप्पे ने भगवाधारी महिला को संसद तक पहुंचाया

प्रज्ञा सिंह की गिरफ्तारी उस समय हुई, जब महाराष्ट्र में कांग्रेस-एनसीपी की सरकार थी और केंद्र में यूपीए-1 सत्ता में था. बीजेपी और अन्य भगवा संगठनों ने प्रज्ञा के पक्ष में मोर्चा खोल दिया.

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  • मालेगांव ब्लास्ट मामले में प्रज्ञा सिंह ठाकुर पर आरोप लगे थे.
  • प्रज्ञा सिंह को महाराष्ट्र एटीएस ने आतंकवादी बताया था.
  • मालेगांव ब्लास्ट मामले में विशेष एनआईए अदालत ने प्रज्ञा सिंह को सभी आरोपों से बरी कर दिया.
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मुंबई :

"छुपा हुआ आशीर्वाद" और "आपदा में अवसर" जैसी कहावतें मध्य प्रदेश की भगवाधारी महिला प्रज्ञा सिंह ठाकुर पर सच साबित हुई हैं, जिन्हें उनके समर्थक साध्वी कहते हैं. साल 2008 में महाराष्ट्र एटीएस (एंटी-टेररिस्ट स्क्वॉड) ने उन्हें "आतंकवादी" बताया, लेकिन यही आरोप बाद में उन्हें लोकसभा तक पहुंचाने का रास्ता बना. वो भोपाल से बीजेपी की टिकट पर सांसद चुनी गईं.

मालेगांव ब्लास्ट मामला

29 सितंबर 2008 को महाराष्ट्र के उत्तर में स्थित मालेगांव शहर में एक जबरदस्त धमाका हुआ. शुरू में एटीएस को शक था कि इसमें स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (SIMI) जैसे प्रतिबंधित मुस्लिम संगठनों का हाथ हो सकता है, क्योंकि पहले हुए धमाकों में पाकिस्तान समर्थित और देशी मुस्लिम आतंकी संगठनों की भूमिका सामने आ चुकी थी. लेकिन एटीएस के तत्कालीन प्रमुख, दिवंगत आईपीएस अधिकारी हेमंत करकरे के नेतृत्व में हुई जांच ने देश को चौंका दिया. जांच में सामने आया कि मालेगांव ब्लास्ट में शामिल सभी आरोपी हिंदू थे और इसे "भगवा आतंकवाद" का मामला बताया गया.

प्रज्ञा सिंह का नाम क्यों आया

जांच में यह भी सामने आया कि धमाके में इस्तेमाल की गई बाइक कथित रूप से प्रज्ञा सिंह के नाम पर रजिस्टर्ड थी. वही बाइक धमाके के लिए इस्तेमाल की गई थी. प्रज्ञा सिंह मध्य प्रदेश के भिंड की रहने वाली हैं. उनके पिता आयुर्वेदिक डॉक्टर थे और प्रज्ञा को मोटरसाइकिल चलाने का शौक था. छात्र जीवन में वे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) से जुड़ी थीं और बाद में कई अन्य आरएसएस से जुड़े महिला संगठनों से भी जुड़ी रहीं. एटीएस ने उन्हें गिरफ्तार कर पूछताछ की और आरोप लगाया कि वे मालेगांव धमाके की साजिशकर्ता थीं. इस धमाके में छह लोगों की मौत हुई थी और सैकड़ों घायल हुए थे.

प्रज्ञा सिंह के आरोप और श्राप

प्रज्ञा सिंह ने आरोप लगाया कि एटीएस ने उन्हें हिरासत में प्रताड़ित किया और उन्होंने एटीएस प्रमुख करकरे और आईपीएस अधिकारी परमबीर सिंह पर उत्पीड़न के गंभीर आरोप लगाए. उन्होंने अदालत में शपथपत्र देकर इन बातों को दर्ज कराया. जब 26 नवंबर 2008 को करकरे की मौत मुंबई आतंकी हमलों में हुई, तो प्रज्ञा ने कहा कि उनकी मौत उनके दिए गए श्राप का नतीजा है. हालांकि मानवाधिकार आयोग की जांच में यह आरोप साबित नहीं हो सके.

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कांग्रेस की सरकार थी

उनकी गिरफ्तारी उस समय हुई, जब महाराष्ट्र में कांग्रेस-एनसीपी की सरकार थी और केंद्र में यूपीए-1 सत्ता में था. बीजेपी और अन्य भगवा संगठनों ने प्रज्ञा के पक्ष में मोर्चा खोल दिया. उनका कहना था कि "भगवा आतंकवाद" की कहानी जानबूझकर बनाई गई थी, ताकि 2009 के महाराष्ट्र चुनाव में मुस्लिम वोट हासिल किए जा सकें. कांग्रेस और एनसीपी खुद को धर्मनिरपेक्ष बताते हैं, लेकिन चुनावों में अल्पसंख्यक वोटों पर निर्भर रहते हैं. इस बीच यह खबर आई कि जेल में रहते हुए प्रज्ञा को कैंसर हो गया है. उन्होंने दावा किया कि उन्होंने गोमूत्र और पंचगव्य के सेवन से खुद को ठीक किया.

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जांच एजेंसी जहां उन्हें मुख्य साजिशकर्ता बता रही थी, वहीं भगवा संगठनों ने उन्हें कांग्रेस-एनसीपी शासन में हिंदुओं पर हुए कथित अत्याचारों की प्रतीक के रूप में प्रचारित किया. बीजेपी ने इस छवि को भुनाया और उन्हें 2019 में भोपाल से लोकसभा का टिकट दे दिया. उन्होंने कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह को 3,64,822 वोटों से हराया. हालांकि, 2024 के चुनाव में बीजेपी ने उन्हें टिकट नहीं दिया और उनकी जगह आलोक शर्मा को मैदान में उतारा.

अब हुईं बरी

एक विशेष एनआईए (राष्ट्रीय जांच एजेंसी) अदालत ने प्रज्ञा सिंह को सभी आरोपों से बरी कर दिया. अदालत ने माना कि अभियोजन यह साबित नहीं कर पाया कि विस्फोटक उन्हीं की बाइक पर रखा गया था या वह बाइक उन्हीं की थी. यह विडंबना रही कि सरकार के कई वरिष्ठ अधिकारी इस नतीजे से खुश नजर आए और सरकार ने इस फैसले को ऊपरी अदालत में चुनौती नहीं देने का संकेत दिया. हालांकि, मालेगांव धमाके के पीड़ित परिवारों ने इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती देने का ऐलान किया है.

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