महाराष्ट्र : चाचा-भतीजे की करीबी क्यों कचोट रही है ठाकरे सेना को?

चिंता की वजह साफ है. एनसीपी (शरद पवार गुट) और एनसीपी (अजीत पवार गुट) के बीच दूरियां अब कम होती नजर आ रही हैं. दोनों नेताओं की हालिया मुलाकातें और मंच साझा करना राजनीतिक गलियारों में हलचल पैदा कर चुका है.

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2019 की बात है. महाराष्ट्र में विधानसभा चुनावों के बाद सियासी हलचल तेज थी. शिवसेना और बीजेपी के बीच रिश्ते बिगड़ रहे थे, लेकिन राजनीति के चाणक्य माने जाने वाले शरद पवार बैकडोर से एक नया समीकरण गढ़ रहे थे, जिसका नाम था महाविकास आघाड़ी (MVA). तभी शिवसेना (UBT) के सांसद संजय राउत ने कहा था कि शरद पवार का दिमाग समझने के लिए सौ जन्म लेने पड़ेंगे. तब यह बयान पवार की तारीफ जैसा था, लेकिन आज छह साल बाद वही बयान राउत और उनकी पार्टी पर असर दिखाता नजर आ रहा है. उन्हें डर है कि कहीं उनकी पार्टी भी पवार की राजनीति का अगला शिकार न बन जाए.

पवार-अजीत की बढ़ती नजदीकियां

चिंता की वजह साफ है. एनसीपी (शरद पवार गुट) और एनसीपी (अजीत पवार गुट) के बीच दूरियां अब कम होती नजर आ रही हैं. दोनों नेताओं की हालिया मुलाकातें और मंच साझा करना राजनीतिक गलियारों में हलचल पैदा कर चुका है. चर्चा है कि दोनों गुट एक बार फिर एकजुट हो सकते हैं. राउत ने हाल ही में कहा कि अगर वे हमारे साथ आते हैं तो अच्छा है. नहीं आते तो भी हम रुकेंगे नहीं. तानाशाही के खिलाफ संघर्ष जारी रहेगा. यह कमजोर दिल वालों का काम नहीं है. उन्होंने संकेत दिया कि शरद पवार, अजीत पवार और देवेंद्र फडणवीस के बीच कोई त्रिपक्षीय समझौता हो सकता है.


राजनीति में रिश्ते भी बदलते हैं

याद कीजिए जुलाई 2023 में अजीत पवार ने बगावत कर बीजेपी की अगुवाई वाले महायुति से हाथ मिला लिया था. उनका गुट 'असली एनसीपी' घोषित हुआ और चुनाव आयोग ने उन्हें पार्टी का नाम और चुनाव चिन्ह (घड़ी) भी सौंप दिया. शरद पवार को नए नाम और चिह्न के साथ आगे बढ़ना पड़ा, लेकिन अब दो साल बाद चाचा-भतीजे की जंग में नई नरमी दिख रही है. शरद पवार ने एक इंटरव्यू में कहा कि पार्टी का एक धड़ा अजीत पवार से जुड़ने के पक्ष में है और अंतिम फैसला अगली पीढ़ी के नेताओं जैसे सुप्रिया सुले द्वारा लिया जाएगा.

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‘ऑपरेशन सिंदूर' पर भी मतभेद

इस बीच ‘ऑपरेशन सिंदूर' पर भी शरद पवार का रुख गठबंधन के बाकी दलों से अलग रहा. कांग्रेस ने संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग की, लेकिन पवार ने इसका विरोध करते हुए कहा कि ऐसे मुद्दे संसद में नहीं उठाए जाने चाहिए. यह भी एक संकेत है कि उनकी प्राथमिकताएं अब बदल रही हैं.

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शिवसेना (UBT) में बेचैनी क्यों है?

शिवसेना (UBT) की बेचैनी समझ में आती है. 2019 में MVA की रूपरेखा शरद पवार ने ही तैयार की थी. उन्होंने ही उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनाया और कांग्रेस जैसी प्रतिद्वंद्वी पार्टी से हाथ मिलाने का रास्ता खोला. पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनाव MVA ने एकसाथ लड़े, लेकिन हालिया विधानसभा चुनावों के बाद समीकरण गड़बड़ाने लगे हैं. अब अगर शरद पवार का गुट फिर से अजीत पवार की NCP में मिल जाता है तो MVA की नींव हिल सकती है.

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पवार और सत्ता: एक पुराना रिश्ता

शरद पवार की राजनीति का इतिहास देखें तो वे अक्सर चौंकाने वाले फैसले लेते आए हैं. पांच दशकों के करियर में वे मुश्किल से ही सत्ता से बाहर रहे हैं. ऐसे में अगर वे अब कांग्रेस और शिवसेना (UBT) को छोड़कर फिर से NCP को एक करने की राह पर बढ़ते हैं तो यह कोई चौंकाने वाला फैसला नहीं होगा.

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आखिरी सवाल: क्या फिर एक होंगे पवार और अजीत?

सवाल बड़ा है कि क्या शरद पवार फिर से अजीत पवार को गले लगाएंगे? और अगर ऐसा हुआ तो महाराष्ट्र की राजनीति में क्या नया मोड़ आएगा? राजनीति में कुछ भी स्थायी नहीं होता, न दोस्त, न दुश्मन. स्थाई होते हैं सिर्फ फायदे और शरद पवार, इस खेल के सबसे पुराने खिलाड़ी हैं.
 

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