असमान वेतन: गुजारा चलाने के लिए शिक्षण के अलावा मजदूरी करने को मजबूर शिक्षक

महाराष्ट्र में बिना अनुदान वाले कॉलेजों के शिक्षक समान वेतन की मांग को लेकर 16 दिनों से कर रहे आंदोलन

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प्रतीकात्मक फोटो.
मुंबई:

मुंबई (Mumbai) के आज़ाद मैदान में बड़ी तादाद में शिक्षक (Teachers) पिछले 16 दिनों से समान वेतन के अधिकार के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं. बिना अनुदान (Unaided) कॉलेज के यह शिक्षक पिछले कई सालों से समान वेतन (Similar Wages) की मांग करते आए हैं. काफी कम वेतन पर काम करने वाले यह शिक्षक शिक्षण के अलावा दूसरे व्यवसाय करके गुजारा चलाने के लिए मजबूर हैं. इन शिक्षकों की मजबूरी की इतहां देखिए कि कुछ ऐसे शिक्षक भी हैं जो जिन बच्चों को पढ़ाते हैं उन्हीं बच्चों के खेतों में मजदूरी भी करते हैं.

शिक्षक प्रदीप चौधरी कहते हैं कि ''शुरू-शुरू में मैंने दो-चार साल राह देखी, लेकिन कई सारी दिक्कतें आईं, इसलिए स्कूल के साथ ही मैंने खेतों में मजदूरी करना शुरू किया. पिछले 5 साल से मैं स्कूल के अलावा मेडिकल में काम करता हूं. सुबह 8 से 5 स्कूल में रहता हू और उसके बाद रात 10 बजे तक मेडिकल में काम करता हूं.''

महाराष्ट्र के जलगांव जिले में कक्षा 8 से 10 के छात्रों को पढ़ाने वाले प्रदीप चौधरी को एडेड शिक्षकों की तरह समान वेतन नहीं मिलने के वजह से उन्हें स्कूल में पढ़ाने के बाद पार्ट टाइम नौकरी करनी पड़ती है. वे अकेले नहीं हैं. उन्हीं की तरह महाराष्ट्र में करीब 60 हज़ार शिक्षक ऐसे हैं जिन्हें समुचित वेतन नहीं मिलता है और इसका असर उनके जीवन पर पड़ रहा है. इसी के विरोध में यह शिक्षक मुंबई के आज़ाद मैदान में प्रदर्शन कर रहे हैं. 

राज्य के परभणी जिले से आए शादुला अंसारी कक्षा 11 और 12 के छात्रों को बायोलॉजी पढ़ाने के साथ ही मसाले बेचने का काम करते हैं. इन्हें सब मसाले वाले गुरुजी कहते हैं. शादुला अंसारी कहते हैं कि ''ना संस्था संचालक और ना ही सरकार पगार देती है, इसलिए मैं हमारे गांव से 20 से 30 किलोमीटर दूर जाकर होटलों में मसाले बेचता हूं. आज पूरे गांव के लोग मुझे मसाले वाले गुरुजी कहते हैं. वेतन नहीं है इसलिए हमारी पहचान बदल गई.''

यह शिक्षक प्रशासन से एडेड कॉलेज और स्कूल को मिलने वाली सुविधाएं दिए जाने की मांग कर रहे हैं. पिछली तीन सरकारों से इन्हें आश्वासन ज़रूर मिला, लेकिन हुआ कुछ नहीं. जिसके बाद यह शिक्षक एक बार फिर से प्रदर्शन कर रहे हैं. प्रदर्शन स्थल पर ही 37 शिक्षकों के नाम लिखे गए हैं जिन्होंने आर्थिक तंगी में आत्महत्या कर ली है.

प्रदर्शनकारी शिक्षक अपना दुखड़ा सुनाते हैं - ''लॉकडाउन में हमें इतनी परेशानी उठानी पड़ी, हम सोचते हैं कि हम टीचर क्यों बने, अगर मजदूर बनते तो मजदूरी तो मिलती. हम वही काम करते हैं जो ग्रांटेड स्कूल के टीचर काम करते हैं, इसके बावजूद हमें 8 से 10 हज़ार वेतन दिया जाता है. कई शिक्षकों को वेतन नहीं मिलता, वो स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों के खेत में काम करते हैं.''

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इस मामले में शिक्षा विभाग की ओर से कहा गया कि विभाग इन शिक्षकों के लिए जल्द ही कोई कदम उठाने वाला है और आने वाले दिनों में कैबिनेट में इस पर चर्चा भी की जाएगी.

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