निकाय चुनाव नतीजों ने बदला गेम, राउत ने मिलाया राहुल को फोन; क्या 15 जनवरी का डर विपक्ष को करेगा एकजुट?

मुंबई में उत्तर भारतीय और अल्पसंख्यक मुस्लिम वोट कांग्रेस के पारंपरिक समर्थक रहे हैं. उद्धव को पता है कि केवल मराठी वोटों के दम पर जीतना मुश्किल है, इसलिए उन्हें इन सेकुलर वोटों की ज़रूरत है जो कांग्रेस दिला सकती है.

विज्ञापन
Read Time: 4 mins
फटाफट पढ़ें
Summary is AI-generated, newsroom-reviewed
  • महाराष्ट्र के निकाय चुनावों में कांग्रेस ने बेहतर प्रदर्शन किया और उद्धव गुट ने राहुल गांधी से संपर्क साधा है
  • संजय राउत ने 15 जनवरी के नगर निगम चुनाव से पहले कांग्रेस के साथ गठबंधन की रणनीति पर जोर दिया है
  • उद्धव ठाकरे की शिवसेना को बीजेपी-शिंदे गठबंधन को हराने के लिए कांग्रेस के समर्थन की सख्त जरूरत है
क्या हमारी AI समरी आपके लिए उपयोगी रही?
हमें बताएं।
मुंबई:

महाराष्ट्र की सियासत में 24 घंटे के भीतर हवा का रुख बदल गया है. रविवार आए स्थानीय निकाय चुनाव के नतीजों ने जहां सत्ता पक्ष में उत्साह भरा है, वहीं विपक्ष के खेमे में खतरे की घंटी बजा दी है. इसी का नतीजा है कि कल तक “जिसे आना है आए, नहीं तो अकेले लड़ेंगे" कहने वाले संजय राउत ने कांग्रेस का “पंजा” पकड़ने के लिए अब सीधे राहुल गांधी को फोन मिला दिया.

नगर पंचायत और नगर परिषद के नतीजों में MVA के भीतर सबसे बेहतर प्रदर्शन करने वाली कांग्रेस (28 सीट) को मुंबई चुनावों में साथ लेने के लिए, सूत्र बताते हैं कि 9 सीट लाने वाले उद्धव गुट के सांसद संजय राउत ने राहुल गांधी को ही सीधे फोन कर दिया. ये कॉल महज शिष्टाचार नहीं, बल्कि 15 जनवरी के नगर निगम चुनावों से पहले की सर्वाइवल स्ट्रेटेजी दिखती है.

कुछ दिनों पहले तक राज ठाकरे को साथ लेने की जिद और कांग्रेस को किनारे रखने वाले तेवर अब ठंडे पड़ते दिख रहे हैं. राउत का ये कॉल साफ संकेत है कि बीजेपी के विजय रथ पर सवार शिंदे की शिवसेना का फैलाव रोकने के लिए उद्धव गुट को कांग्रेस के “हाथ” की सख्त जरूरत है.

संजय राउत की सबसे बड़ी दुविधा राज ठाकरे बनाम कांग्रेस रही है, इसलिए कांग्रेस ने भी स्पष्ट कर दिया था कि वे राज ठाकरे की विचारधारा के साथ मंच साझा नहीं करेंगे. ऐसे में राउत ने पहले कांग्रेस के बिना ही ठाकरे भाई के साथ लड़ने की हुंकार भरी थी, ये कहते हुए कि “हमारा फैसला हो चुका है, जिसे साथ आना है आए, नहीं तो ना सही”.

लेकिन रविवार के नतीजों ने बता दिया कि बिना कांग्रेस के वोटों के, बीजेपी-शिंदे गठबंधन को मात देना ठाकरे भाइयों के लिए शायद नामुमकिन है. राउत का कांग्रेस को कहना कि "बीजेपी को हराना है तो साथ लड़ना होगा," विपक्षी खेमे की छटपटाहट और हकीकत दोनों बयां करता है.

स्थानीय निकाय चुनावों में जिस तरह से बीजेपी ने अपनी पकड़ दिखाई है, उसने विपक्षी एकता की दरारों को भरने पर मजबूर कर दिया है. शिवसेना पिछले 25 सालों से बीएमसी की सत्ता में रही है. मुंबई पर नियंत्रण का मतलब है महाराष्ट्र की राजनीति पर नियंत्रण. अगर उद्धव यहां हारते हैं, तो उनकी पार्टी का आधार खत्म होने का खतरा है.

वहीं, भाजपा इस बार किसी भी कीमत पर BMC से ठाकरे परिवार का वर्चस्व खत्म करना चाहती है, जबकि उद्धव के लिए यह अपनी खोई हुई साख वापस पाने का आखिरी मौका है. इसलिए भाई के साथ पुराने गिले शिकवे सब भूलने पड़े. शिवसेना में फूट के बाद जिस मराठी वोट के बंटने का खतरा है, राज ठाकरे के साथ हाथ मिलाकर उसे दूर करने की उद्धव गुट की कोशिश है, लेकिन मुस्लिम वोटों की भी चिंता है, क्योंकि मुंबई जैसे शहर में अब मराठी वोटरों की संख्या भी घटी है, ऐसे में मुस्लिम वोटरों का सहारा है जो कांग्रेस के साथ के बिना मुश्किल है क्योंकि भाई राज ठाकरे की पिछली भूमिका वोटर भूले नहीं हैं.

मुंबई में उत्तर भारतीय और अल्पसंख्यक मुस्लिम वोट कांग्रेस के पारंपरिक समर्थक रहे हैं. उद्धव को पता है कि केवल मराठी वोटों के दम पर जीतना मुश्किल है, इसलिए उन्हें इन सेकुलर वोटों की ज़रूरत है जो कांग्रेस दिला सकती है.

Advertisement

राज ठाकरे और उद्धव की नजदीकी से कांग्रेस नाराज बतायी जाती है और उसने मुंबई में अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान किया है, क्योंकि कांग्रेस को लगता है कि राज ठाकरे की 'उत्तर भारतीय विरोधी' छवि उनके वोटों को नुकसान पहुंचाएगी.

वैसे, अगर कांग्रेस अलग लड़ती है, तो वोटों का बंटवारा होगा, जिसका सीधा फायदा भाजपा-शिंदे गठबंधन को मिल सकता है, इसीलिए उद्धव के लिए कांग्रेस को साथ रखना एक बड़ी चुनौती और ज़रूरत दोनों है.

Advertisement

Featured Video Of The Day
Aravalli पर SC का नया फैसला: 90% पहाड़ियां खतरे में? Akhilesh, गहलोत, TMC नेता का तीखा हमला