कैसे होगी महायुति में सीट शेयरिंग? चुनाव से पहले महाराष्ट्र में बढ़ी BJP की टेंशन!

लोकसभा नतीजों के बाद, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के करीबी माने जाने वाले साप्ताहिक ऑर्गनाइज़र के एक लेख में अजित पवार की राकांपा के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ने के लिए भाजपा की आलोचना की गई थी.

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मुंबई:

महाराष्ट्र में इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए सत्तारूढ़ एनडीए गठबंधन में सीट बंटवारे को लेकर बातचीत अभी तक आधिकारिक तौर पर शुरू नहीं हुई है, लेकिन निर्वाचन क्षेत्रों के लिए खींचतान शुरू हो चुकी है. सूत्रों ने एनडीटीवी को बताया कि विधानसभा की 288 सीटें हैं, सबकी अपनी-अपनी मांग है. जब इन सीटों को घटक दलों की मांगों के मुताबिक देखें, तो महायुति के लिए कोई गणित काम नहीं कर रहा है.

सूत्रों ने कहा कि भाजपा कम से कम 150 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है. वहीं मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना कम से कम 100 सीटों का लक्ष्य लेकर चल रही है, जबकि उपमुख्यमंत्री अजित पवार की राकांपा भी 80 सीटों पर लड़ना चाहती है. इन सीटों को जोड़ दें तो ये आंकड़ा लगभग 330 पहुंच जाता है. ऐसे में लगभग 40 सीटें ऐसी होंगी, जिसको लेकर असहमति और लंबी बातचीत के लिए मंच तैयार हो रहे हैं.

मतभेद और समीकरण को सही करना और भी महत्वपूर्ण हो जाता है, क्योंकि गठबंधन अभी भी लोकसभा चुनावों के दौरान राज्य में मिली हार से उबर रहा है. उस वक्त विपक्षी महा विकास अघाड़ी को 48 में से 30 सीटें मिली थी, जबकि महायुति सिर्फ 17 सीटें जीतने में ही कामयाब रही थी. इस खराब प्रदर्शन के कई कारण थे. विश्लेषकों का कहना है कि चुनाव के दौरान सीट बंटवारे को लेकर मतभेद ने भी इस खराब प्रदर्शन में अहम भूमिका निभाई.

अजित पवार ने फडनवीस के साथ अमित शाह से की मुलाकात
सूत्रों ने कहा कि अजित पवार ने गुरुवार को नई दिल्ली में बीजेपी नेता और अपने सहयोगी उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडनवीस के साथ गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की और सीटों के बंटवारे पर चर्चा हुई.सूत्रों ने बताया कि पवार पर उनकी पार्टी के नेताओं का दबाव है कि वे 80-90 सीटों से कम पर समझौता ना करें. उनका तर्क है कि उन्हें उन सभी 54 निर्वाचन क्षेत्रों में चुनाव लड़ना चाहिए जो अविभाजित राकांपा ने 2019 के विधानसभा चुनावों में जीते थे और इसके अलावा कम से कम 30 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहिए.

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शरद पवार के नेतृत्व वाली अविभाजित राकांपा ने 2019 के चुनाव में कांग्रेस के साथ गठबंधन में 120 से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ा था. सत्तारूढ़ गठबंधन के अंदरूनी सूत्रों ने कहा कि पार्टी के अजित पवार गुट को पता है कि वो एक मुश्किल स्थिति में है, क्योंकि वो शरद पवार गुट द्वारा जीती गई आठ लोकसभा सीटों के मुकाबले केवल एक लोकसभा सीट जीतने में कामयाब रहे. यहां तक ​​कि वह बारामती सीट भी हार गए, जिसे अजित पवार ने अपनी चचेरी बहन और शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले के खिलाफ अपनी पत्नी सुनेत्रा को मैदान में उतारकर प्रतिष्ठा की लड़ाई बना दिया था.

अजित पवार पर बढ़ रहा पार्टी नेताओं का दबाव
पिछले महीने घोषित हुए लोकसभा नतीजों के बाद से ऐसी अटकलें लगाई जा रही हैं कि पिछले साल जुलाई में राकांपा के विभाजन के बाद अजित पवार की पार्टी के सदस्य वहां लौटने के लिए शरद पवार के गुट के संपर्क में हैं. इससे अजित पवार पर ये सुनिश्चित करने का दबाव बढ़ रहा है कि पार्टी पर्याप्त उम्मीदवार उतार सके ताकि असंतोष और संभावित पलायन को कम रखा जा सके.

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लोकसभा नतीजों के बाद, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के करीबी माने जाने वाले साप्ताहिक ऑर्गनाइज़र के एक लेख में अजित पवार की राकांपा के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ने के लिए भाजपा की आलोचना की गई थी और तब से महायुति में दरार की चर्चा चल रही है.

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हालांकि इस महीने की शुरुआत में विधान परिषद सदस्य (एमएलसी) चुनावों में गठबंधन ने अच्छी संख्या में जीत हासिल की थी. इसके बाद भाजपा नेता और केंद्रीय मंत्री नारायण राणे के बयान ने हलचल मचा रखी है, हालांकि सहयोगियों ने ऐसी किसी भी मतभेद की चर्चा को खारिज कर दिया है.

संवाददाता सम्मेलन में जब नारायण राणे से पूछा गया कि विधानसभा चुनाव में भाजपा कितनी सीटों पर चुनाव लड़ेगी तो उन्होंने मजाक में कहा, "मैं तो चाहूंगा कि भाजपा सभी 288 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे."

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