महाराष्ट्र में इन 13 चेहरों की हार-जीत का दर्द और खुशी समझिए

Maharashtra Assembly Election Results 2024: जिस राज्य में किसी जमाने में सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस होती थी वहां अब वह सिमट चुकी है. अब सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी है. यहां हम उन 13 नेताओं के चुनाव के नतीजों का जिक्र करेंगे, जिनकी हार-जीत बहुत मायने रखती है.

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नई दिल्ली:

Maharashtra Assembly Election Results: महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में कई दिग्गजों की प्रतिष्ठा जहां दांव पर लगी थी वहीं कई नए चेहरों ने मुख्य धारा की राजनीति में अपना पहला कदम रखा. ऐसे कई नेता हैं जिनकी जीत का लंबा इतिहास है, तो कई ऐसे हैं जिन्होंने वंश की राजनीतिक विरासत को संभाल रखा है. इस चुनाव में इनमें से कुछ नेता सफल हुए तो कुछ को पराजय की पीड़ा झेलनी पड़ी. महाराष्ट्र के राजनीतिक इतिहास में यह विधानसभा चुनाव पिछले चुनावों से कहीं अधिक महत्वपूर्ण इसलिए है क्योंकि इस बार राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) और शिवसेना (Shiv Sena) के दो-दो गुट आमने सामने थे. बीजेपी (BJP) और कांग्रेस (Congress) के साथ दोनों के एक-एक गुट थे. महाराष्ट्र की राजनीति में शिवसेना और एनसीपी बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं. जिस राज्य में किसी जमाने में सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस होती थी वहां अब वह सिमट चुकी है. अब सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी है. यहां हम उन 13 नेताओं के चुनाव के नतीजों का जिक्र करेंगे, जिनकी हार-जीत बहुत मायने रखती है.         

येवला सीट पर एनसीपी के छगन भुजबल फिर सफल

नासिक जिले की येवला विधानसभा सीट पर एनसीपी के नेता छगन भुजबल एक बार फिर जीते हैं. उनके खिलाफ मैदान में उतरे एनसीपी (शरद पवार) के नेता माणिकराव शिंदे को पराजय का सामना करना पड़ा. माणिक शिंदे पहले छगन भुजबल के निकट सहयोगी थे. येवला ऐसी सीट है जिस पर इस बार किसी जमाने में शरद पवार के निकटस्थ रहे छगन भुजबल के खिलाफ खुद शरद पवार ने चुनाव प्रचार किया था. एनसीपी के टूटने के बाद छगन भुजबल पार्टी के अजित पवार के नेतृत्व वाले गुट के साथ चले गए थे.     

छगन भुजबल येवला सीट का प्रतिनिधित्व 15 साल से कर रहे हैं. उन्होंने यहां से पहला विधानसभा चुनाव 2009 में जीता था. पहले चुनाव में करीब 50 हजार वोटों से विजय पाने वाले भुजबल ने 2014 के चुनाव में भी 46 हजार वोटों से जीत हासिल की थी. इसके बाद उन्होंने लगातार तीसरा चुनाव 2019 में 56 हजार वोटों से जीता. उस चुनाव में उन्होंने शिवसेना के संभाजी साहेबराव पवार को हराया था. अब यह चौथा विधानसभा चुनाव है जिसमें भुजबल की जीत हुई है.

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बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले ने साबित की अपनी अहमियत

महाराष्ट्र के विदर्भ की कामठी विधानसभा सीट पर चुनाव लड़े बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले का मुकाबला कांग्रेस के सुरेश भोयर से हुआ. इस सीट पर महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा सीटें जीतने वाली बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष की प्रतिष्ठा दांव पर लगी थी. हालांकि बावनकुले की जीत करीब तय हो चुकी है. वे 10 हजार से अधिक वोटों से आगे हैं.      

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चंद्रशेखर बावनकुले पहले भी कामठी सीट से तीन विधानसभा चुनाव जीत चुके हैं. वे सन 2014 से 2019 तक देवेंद्र फडणवीस सरकार में ऊर्जा और उत्पाद शुल्क मंत्री भी रहे थे. बावनकुले को साल 2019 के चुनाव मे पार्टी ने टिकट नहीं दिया था. इसको लेकर विदर्भ का तेली समाज नाराज हो गया था. बावनकुले तेली समाज से हैं. इसके बाद बावनकुले पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष की हैसियत से चुनाव लड़े और जीत की ओर अग्रसर हैं.

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सातवीं बार विधायक बने बीजेपी के सुधीर मुनगंटीवार

चंद्रपुर जिले की बल्लारपुर सीट पर बीजेपी के सुधीर मुनगंटीवार की मुकाबला कांग्रेस के संतोष सिंह रावत से था. मुनगंटीवार छह बार विधायक रह चुके हैं. इस चुनाव में भी उनकी जीत निश्चित हो चुकी है. वे मतगणना में लगातार आगे चल रहे हैं. सन 2019 के विधानसभा चुनाव में मुनगंटीवार का मुकाबला कांग्रेस के विश्वास आनंदराव जाडे से हुआ था. मुनगंटीवार 33 हजार मतों से जीते थे. मुनगंटीवार राज्य में मंत्री भी रहे हैं. 

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कांग्रेस के दिग्गज बालासाहेब थोरात का विजय का पहिया रुका

महाराष्ट्र के कांग्रेस के दिग्गज नेता बाला साहेब थोरात संगमनेर से 8 बार विधायक रह चुके हैं. उन्होंने 9वीं बार चुनाव लड़ा लेकिन अब उनका विजय रथ थम गया है. उनका मुकाबला शिवसेना के एकनाथ शिंदे के गुट के अमोल खाटल से था. उनकी हार कांग्रेस के लिए बड़ा झटका है. चुनाव आयोग की जानकारी के मुताबिक अमोल खाटल को 111495 मत मिले, जबकि थोरात को 99643 वोट मिले. यानी वे वह 11852 वोटों से चुनाव हार गए.

बालासाहेब थोरात संगमनेर से लगातार आठ बार चुनाव जीते हैं. वे सबसे पहले 1978 में विधायक बने थे. तब उन्होंने तत्कालीन मंत्री  बीजे खाटल पाटील को हराया था. उन्होंने सन 1985 में निर्दलीय चुनाव लड़ा था और जीते थे. साल 1990 में वे कांग्रेस के प्रत्याशी बने और जीते. इसके बाद वे लगातार कांग्रेस से साल 2019 तक चुनाव जीतते रहे. इस बार पराजय मिलने से बालासाहेब थोरात को तगड़ा झटका लगा है.  

शिवसेना (यूबीटी) को राहत देने वाली आदित्य ठाकरे की जीत 

शिवसेना (यूबीटी) के प्रमुख उद्धव ठाकरे के पुत्र आदित्य ठाकरे मुंबई की वर्ली विधानसभा सीट पर जीत दर्ज की है. उनके खिलाफ शिवसेना के एकनाथ शिंदे गुट के नेता मिलिंद देवड़ा चुनाव मैदान में थे. वर्ली विधानसभा सीट पर चुनावी लड़ाई बहुत रोचक थी. आदित्य के खिलाफ शिवसेना ने अपने सांसद मिलिंद देवड़ा को चुनाव मैदान में उतारा था. आदित्य ठाकरे उस सीट पर दूसरी बार लड़े और जीतने में सफल भी हुए. हालांकि आदित्य ठाकरे की जीत का अंतर करीब 9 हजार वोटों का ही रहा. वर्ली मुंबई दक्षिण लोकसभा क्षेत्र के तहत आती है. यह क्षेत्र देवड़ा परिवार का गढ़ रहा है. मिलिंद देवड़ा शिवसेना से पहले कांग्रेस में थे. वे मुंबई दक्षिण लोकसभा सीट का 14वीं और 15वीं लोकसभा में प्रतिनिधित्व कर चुके हैं. महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में विपक्ष के इंडिया गठबंधन को करारी शिकस्त मिली है. इस स्थिति में आदित्य ठाकरे की जीत शिवसेना (यूबीटी) और उद्धव ठाकरे के लिए राहत देने वाली है. 

एनसीपी के दिलीप वलसे पाटिल का लगातार आठवीं जीत का रिकॉर्ड बना

अंबेगांव विधानसभा सीट पर अजित पवार के एनसीपी के गुट के नेता दिलीप वलसे पाटिल का मुकाबला एनसीपी (शरद पवार) के नेता देवदत्त निकम से हुआ. पाटिल का अंबेगांव से लगातार 7 बार जीतने का रिकॉर्ड था, जो अब लगातार 8 चुनाव जीतने का रिकॉर्ड बन गया है. दिलीप वलसे पाटिल अब तक कोई चुनाव नहीं हारे. दिलीप वलसे पाटिल पिछले साल राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के टूटने पर अजीत पवार के गुट में शामिल हो गए थे. वे राज्य की बीजेपी-शिवसेना-एनसीपी सरकार में मंत्री भी बने थे. 

सदा सरवणकर की हार से क्या एकनाथ शिंदे लेंगे सबक? 

मुंबई की माहीम विधानसभा सीट पर रोचक मुकाबला था. इस सीट पर मूल शिवसेना पार्टी के तीन धड़ों के बीच मुकाबला हुआ. इनमें से एक शिवसेना (यूबीटी), दूसरा धड़ा एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना है और तीसरा धड़ा महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) है जिसका नेतृत्व राज ठाकरे करते हैं. राज ठाकरे ने काफी पहले शिवसेना की विरासत के अधिकार को लेकर उद्धव ठाकरे से विवाद के बाद अपनी अलग पार्टी बनाई थी. इस बार के विधानसभा चुनाव में उद्धव ठाकरे की शिवसेना (यूबीटी) को जीत हासिल हुई जबकि शिवसेना और एमएनएस को हार का सामना करना पड़ा.        

माहिम विधानसभा सीट पर उद्धव ठाकरे गुट के उम्मीदवार महेश सावंत ने जीत हासिल की है. उन्होंने शिवसेना के एकनाथ शिंदे गुट के सदा सरवणकर को पराजित कर दिया है. राज ठाकरे के बेटे एमएनएस के प्रत्याशी अमित ठाकरे हार के साथ तीसरे नंबर पर रहे. बताया जाता है कि बीजेपी ने एकनाथ शिंदे से कहा था कि वे माहीम में अपना उम्मीदवार उतारने के बजाय अमित ठाकरे को समर्थन दें. लेकिन शिंदे इसके लिए तैयार नहीं हुए. वे सरवणकर के लिए अड़े रहे. नतीजे में शिंदे को झटका मिला. 

सदा सरवणकर के लिए यह पराजय बड़ा झटका है. उन्होंने साल 2014 और 2019 में इस सीट पर शिवसेना प्रत्याशी के रूप में जीत हासिल की थी. पार्टी में बंटवारा होने के बाद वे एकनाथ शिंदे के साथ चले गए थे. हालांकि वे अपनी जीत की हैट्रिक लगाने में सफल नहीं हो पाए. 

अजीत पवार ने नहीं मानी बीजेपी की बात, नवाब मलिक की शर्मनाक हार    

मानखुर्द शिवाजीनगर विधानसभा सीट पर एनसीपी (अजित पवार) के कद्दावर नेता नवाब मलिक को करारी हार का सामना करना पड़ा है. उन्हें समाजवादी पार्टी के अबू आजमी ने हरा दिया है. बीजेपी शुरुआत से ही नवाब मलिक की उम्मीदवारी के खिलाफ थी, लेकिन एनसीपी ने उन्हें मैदान में उतार दिया था. नबाब मलिक को बड़ा झटका लगा है क्योंकि वे तीसरे नंबर पर रहे हैं. अबू आसिम आजमी जीते और ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम के प्रत्याशी अतीक अहमद खान दूसरे नंबर पर रहे. नवाब मलिक को महज 15 हजार 442 वोट ही मिले और वे तीसरे नंबर पर रहे. 

बीजेपी के आपत्ति जताने के बावजूद एनसीपी नेता अजित पवार ने नवाब मलिक को मानखुर्द सीट से अपना उम्मीदवार बनाया था. नामांकन के आखिरी दिन अंतिम समय में उनकी उम्मीदवारी को हरी झंडी दी गई थी. बीजेपी ने नवाब मलिक के पक्ष में प्रचार भी नहीं किया था. दूसरी तरफ शिवसेना के शिंदे गुट ने भी इस सीट पर अपना उम्मीदवार उतारकर नवाब मलिक की उम्मीदवारी का साफ विरोध दर्ज कर दिया था. 

एनसीपी के धनंजय मुंडे ने परली सीट रखी बरकरार

बीजेपी के दिग्गज नेता स्वर्गीय गोपीनाथ मुंडे के गढ़ परली विधानसभा सीट पर उनके भतीजे और एनसीपी के उम्मीदवार धनंजय मुंडे विजयी हुए हैं. इस सीट पर एनसीपी के ही दोनों गुटों के बीच मुकाबला था. एनसीपी (शरद पवार) ने धनंजय के खिलाफ राजासाहेब देशमुख को चुनाव मैदान में उतारा था. गोपीनाथ मुंडे यहां से पांच बार चुनाव जीते थे. हालांकि 2019 में पिछले चुनाव में परली में एनसीपी की जीत हुई थी और धनंजय विधायक चुने गए थे. इस बार बहुजन समाज पार्टी से धोंडीराम उजगरे भी चुनाव मैदान में ते. 

कर्जत जामखेड़ में शरद पवार के पोते रोहित पवार की जीत 

अहमदनगर जिले की कर्जत जामखेड़ विधानसभा सीट पर शरद पवार के पोते रोहित पवार जीत गए हैं. उनके खिलाफ बीजेपी के राम शिंदे चुनाव मैदान में थे. राम शिंदे कैबिनेट मंत्री रहे हैं. साल 2019 के चुनाव में रोहित पवार ने पहली बार इस सीट पर जीत दर्ज की थी. उन्होंने बीजेपी के राम शिंदे को करारी शिकस्त दी थी. इस सीट पर एक बार फिर इन दोनों के बीच चुनावी जंग हुई है.

रोहित पवार आक्रामक चुनाव प्रचार करते रहे. उन्होंने महायुति पर तीखे वार किए थे. रोहित पवार ने एक चुनावी सभा के दौरान देवेंद्र फडणवीस की तुलना क्रूर अंग्रेज जनरल से कर दी. साथ ही उन्होंने फडणवीस को महंगाई और बेरोजगारी के मुद्दे पर भी आड़े हाथों लिया था.  

भोकर में श्रीजया चव्हाण का राजनीति में पहला कदम 

नांदेड़ जिले की भोकर विधानसभा सीट पर बीजेपी की श्रीजया चव्हाण जीत गई हैं. वे नांदेड़ क्षेत्र के चव्हाण राजनीतिक घराने में तीसरी पीढ़ी की नेता हैं. यह उनका पहला चुनाव है.  उनका मुकाबला कांग्रेस की तिरुपति कोंधेकर से था. सन 2019 के चुनाव में यहां कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी. कांग्रेस के अशोकराव शंकरराव चव्हाण ने बीजेपी के बापूसाहेब गोरथेकर को हराया था. 

नारायण राणे के पुत्र नीलेश राणे ने हासिल की जीत

कुदाल विधानसभा सीट पर शिवसेना के नीलेश राणे चुनाव जीत गए हैं. पूर्व मुख्यमंत्री नारायण राणे के पुत्र नीलेश का मुकाबला शिवसेना (यूबीटी) के वैभव नाइक से था. साल 2019 के चुनाव में अविभाजित शिवसेना के वैभव नाइक ने जीत हासिल की थी. इस बार नीलेश ने वैभव को आठ हजार से अधिक वोटो से पराजित कर दिया. नीलेश राणे चुनाव से कुछ अरसे पहले ही शिवसेना में शामिल हुए थे. तब उन्होंने कहा था कि अब वे उसी चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ेंगे, जिसके साथ उनके पिता नारायण राणे ने राजनीति की शुरुआत की थी. 
 

राजनीति की नई जमीन पर सफल हुए बीजेपी के चंद्रकांत पाटिल

कोथरूड विधानसभा सीट पर बीजेपी के वरिष्ठ नेता चंद्रकांत पाटिल ने जीत हासिल की है. उन्होंने शिवसेना (यूबीटी) के चंद्रकांत मोकटे को पराजित कर दिया. बीजेपी के नेता और मंत्री चंद्रकांत पाटिल मूल रूप से कोल्हापुर जिले के हैं. वे अब पुणे जिले में अपनी नई राजनीतिक जमीन बनाना चाहते हैं. कोथरूड विधानसभा क्षेत्र पुणे जिले में है. यह सीट पुणे लोकसभा क्षेत्र में आती है. यहां की राजनीति पर हमेशा शिवसेना और बीजेपी ही हावी रही है. इस बार शिवसेना और एनसीपी के दोनों गुट थे. ऐसी स्थिति में मुकाबला रोचक था. 

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